विरोध के लिए विरोध है, नई संसद के उद्घाटन का बहिष्कार
नरेंद्र मोदी सरकार और भारतीय जनता पार्टी का मुकाबला करने के लिए कोई मुद्दा ढूंढने में नाकाम विरोधी दल अब संसद के नए भवन के उद्घाटन को लेकर हायतौबा मचा रहे हैं। कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस, द्रविड मुन्नेत्र कड़गम जनता दल, आम आदमी पार्टी, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी, शिवसेना (उद्धव बालासाहेब ठाकरे), मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी, समाजवादी पार्टी, राष्ट्रीय जनता दल, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी, इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग, झारखंड मुक्ति मोर्चा, नेशनल कांफ्रेंस,केरल कांग्रेस (मणि), रिवोल्यूशनरी सोशलिस्ट पार्टी, विदुथलाई चिरुथिगल काट्ची, मारुमलार्ची द्रविड मुन्नेत्र कड़गम और राष्ट्रीय लोकदल ने लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला के निमंत्रण पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा संसद के नए भवन के उद्घाटन का बहिष्कार केवल विरोध करने की राजनीति के तहत किया है। विपक्ष को कोई मुद्दा नहीं मिलता तो मोदी सरकार की योजनाओं का विरोध करने पर उतारू हो जाता है। इसी तरह विपक्ष ने सेंट्रल विस्टा का विरोध किया था। अग्निपथ योजना का भी विरोध किया था। कई जनकल्याणकारी योजनाओं का विरोध भी विपक्षी दल करते रहे हैं।
May this Temple of Democracy continue strengthening India’s development trajectory and empowering millions. #MyParliamentMyPride https://t.co/hGx4jcm3pz
— Narendra Modi (@narendramodi) May 27, 2023
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, केंद्रीय मंत्रियों, भाजपा शासित राज्यों के मुख्यमंत्रियों और मंत्रियों के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोप लगाने में नाकाम हताश और मुद्दाहीन विपक्ष ने अब संसद भवन के उद्घाटन में राष्ट्रपति द्रोपदी मुर्मू को आमंत्रित न करने पर बहिष्कार की घोषणा की है। ये वहीं विपक्षी दल हैं जिन्होंने राष्ट्रपति चुनाव में देश की पहली आदिवासी महिला उम्मीदवार का विरोध ही नहीं किया बल्कि अपमानजनक टिप्पणियां की थी। लोकसभा में विपक्ष के नेता अधीर रंजन चौधरी की विवादित टिप्पणी को लेकर तो पूरे देश में निंदा की गई थी। इसी तरह राष्ट्रीय जनता और तृणमूल कांग्रेस के नेताओं ने भी महिला आदिवासी राष्ट्रपति को लेकर गलत टिप्पणी थी। इन नेताओं के खिलाफ आदिवासी समाज की तरफ से देशभर में विरोध प्रदर्शन भी हुए थे।
कांग्रेस के राज में तमाम सरकारी योजनाओं, भवनों, विश्वविद्यालयों तथा शिक्षा संस्थानों, हवाई अड्डो, अस्पतालों, नए शहरों और कालोनियों के नाम गांधी परिवार के नाम पर रखे जाते थे। पूरे देश की बात न भी करें तो दिल्ली में ही देख लीजिए कि जवाहर लाल नेहरू, इंदिरा गांधी, राजीव गांधी, संजय गांधी के नाम पर कितने भवन और संस्थान है। हवाई अड्डे का नाम इंदिरा गांधी, विश्वविद्यालय का नाम जवाहर लाल नेहरू के नाम पर हैं। कनाट प्लेस का नाम बदला तो इंदिरा और राजीव चौक रखे गए। अस्पतालों के नाम भी गांधी परिवार के नाम पर रखे गए। अब गांधी परिवार के राहुल गांधी एक गरीब और पिछड़े परिवार से प्रधानमंत्री बने नरेंद्र मोदी को लेकर विरोध जता रहा है। कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों के नेताओं ने तो यह भी भुला दिया कि 1975 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी पार्लियामेंट एनेक्सी का उद्घाटन किया था। संसदीय ज्ञानपीठ का 1987 में तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने शिलान्यास किया था। नए संसद भवन की नींव प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रखी थी। तब से विपक्ष संसद भवन को लेकर सवाल उठाता रहा है। विपक्ष की तरफ से अशोक चिन्ह स्थापित करने पर भी आपत्ति जताई गई थी।
सबसे बड़ी बात यह है कि एक-दूसरे का विरोध करने वाले विपक्षी दल इस मुद्दे पर इकट्ठे होकर यह जता रहे हैं कि देश में विपक्षी एकता हो गई है। बीजू जनता दल,बहुजन समाज पार्टी, तेलुगू देशम पार्टी, वाईएसआर कांग्रेस, एआईडीएमके और अकाली दल के प्रतिनिधि उद्घाटन में शामिल होंगे। विपक्ष की तरफ से यह संदेश देने की कोशिश हो रही है कि मोदी के खिलाफ विपक्ष एकजुट हो गया है। लंबे समय से देश की कांग्रेस की दोगुली राजनीति को देखता आ रहा है। खासतौर पर पश्चिम बंगाल की बात करें तो वामपंथी सरकार द्वारा कांग्रेसियों के कत्लेआम के बावजूद केंद्र में सरकार बनाने के लिए कम्युनिस्टों की मदद ली गई। पश्चिम बंगाल वामपंथी दलों से गठबंधन करके कांग्रेस ने अपने कार्यकर्ताओं की सरेआम हत्याओं को भी भुला दिए। कांग्रेसियों पर अत्याचार के विरोध में ही ममता बनर्जी ने तृणमूल कांग्रेस बनाई थी। आज ममता बनर्जी को भी कम्युनिस्टों का साथ लेने में परहेज नहीं है। सच यही है कि विरोधी दलों का संसद भवन के उद्घाटन समारोह का बहिष्कार करना केवल विरोध करने के लिए विरोध है और विपक्षी एकजुटता का दावा एक छलावा है।