Public Removed Kejriwal’s Arrogance: दिल्ली की जनता ने निकाली केजरीवाल की हेकड़ी, ध्वस्त किया अहंकार 

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Public Removed Kejriwal’s Arrogance: दिल्ली की जनता ने निकाली केजरीवाल की हेकड़ी, ध्वस्त किया अहंकार 

रमण रावल

इंदिरा गांधी की तानाशाही,ज्यादती और अहंकार की हवा जिस तरह से 1977 में देश की जनता ने निकाल दी थी, वैसी ही दुर्गति दिल्ली की जनता ने 2025 के विधानसभा चुनाव में अरविंद केजरीवाल की कर दी। तब देश सांसें थामकर नतीजों का इंतजार रेडियो सेट और फोन पर कर रहा था और इस दौर में तो जन-जन की जेब में सूचना तंत्र सक्रिय था। रावण के अहंकार से कहीं अधिक, कंस की क्रूरता से कहीं ज्यादा,दुर्योधन से अनेक गुना धूर्तता और गिरगिट से कई गुना तेज रंग बदलने में माहिर अरविंद केजरीवाल का पराभव देखने को दिल्ली की जनता् के साथ ही देश भी उतावला था। भारतीय राजनीति के ज्ञात इतिहास में उससे ज्यादा शातिर,दोहरे आचरण वाला,वादों से सिरे से पलटने वाला और वचनबद्धता को उलट कर रख देने वाले चरित्र के केजरीवाल का दरअसल कोई स्थायी चरित्र ही नहीं था, जो दिल्ली में उसकी बुरी गत का कारण बना।

आम तौर पर राजनीति में भ्रष्ट,वादे से मुकरने वाले और जन कल्याण से परे निज हित का सोच रखने वालों की कोई कमी नहीं । लेकिन, यह सचमुच हैरान-परेशान कर देने वाली बात थी कि केजरीवाल इन सारे मानदंडों को ताक पर रखकर दोगलेपन की उन उंचाइयों पर सवार थे, जिसे वह अपनी सबसे बड़ी खासियत मानने लगे थे। एक तरह से उन्होंने जनता,प्रशासन ,व्यवस्था, विपक्ष सभी को नीरा मूर्ख,कम अक्ल और गैर जिम्मेदार मान लिया था। वे सार्वजनिक जीवन के प्रतिमानों को खूंटी पर टांगकर राजनीति कर रहे थे।

पिछले करीब पांच साल से तो देश के कमोबेश तमाम मोबाइल धारकों के बीच उनके सैकड़ों वीडियो प्रवाहित हो रहे थे, जिनमें वे अपनी कही बातों को सिरे से खारिज करते हुए आचरण करते दिखाई दे रहे थे। यह संभव ही नहीं कि इन तमाम बातों से वे अनजान होंगे या उनके सलाहकार, राजनीतिक मित्र, सहयोगी, विपक्षी गठबंधन के नेता कुछ कहते-बताते नहीं होंगे।मजाल है कि इस बंदे पर राई-रत्ती भर भी उसका असर हुआ हो। वह तो स्वयं को बेताल, मसीहा सुपरमैन जैसा ही कुछ समझने लगा था। जन आंदोलन खड़ा करने वाले अण्णा हजारे, कुमार विश्वास, आशुतोष जैसे अनगिनत सहयोगियों, प्रेरक लोगों को वह मक्खी की तरह बाहर फेंकता रहा और अकेला ही विजय पथ पर ऐसा बढ़ते रहा, जैसे उसे संसार में अकेले को ही अवतार की तरह धरती पर भेजा हो।

मुझे केजरीवाल के निकृष्ट आचरण के मद्देनजर उन राजनीतिक दलों के कर्ता-धर्ताओं की समझ पर संदेह होता है, ,जिन्होंने पता नहीं किस सोच के तहत लोकसभा चुनाव में उसे अपने साथ शामिल किया था। यह इस बात का प्रमाण ही था कि उनका एकमात्र उद्देश्य भाजपा और नरेंद्र मोदी को सत्ता से हटाना था, जिसके लिये कोई नीति,नियम, सिद्धांत,नियत,शुचितापूर्ण आचरण की आवश्यकता ही नहीं थी। उन लोगों को और खास तौर से कांग्रेस को जब लगा कि केजरीवाल की भस्मासुरी प्रवृत्ति उनके अस्तित्व के लिये खतरा हो सकती है, तब वे उसके विरुद्ध खड़े हुए। हालांकि तब तक दिल्ली की जनता अच्छे से अपना मानस बना चुकी थी और नतीजे के प्रकट होने भर की देरी थी।

केजरीवाल का समग्र राजनीतिक आचरण देश में लोकतंत्र के प्रति उस विश्वास के साथ कुठाराघत है, जिसमें जनता यह अपेक्षा करती है कि विपक्षी राजनीति में ऐसे तत्व शामिल रहेंगे, जो सत्ता पक्ष को तानाशाही और मनमर्जी करने से रोक सकें। अभी तो राजनीति में वो दृश्य दिखाई देने प्रारंभ होंगे, जो केजरीवाल की कल्पना से बाहर होंगे। कुछ ही दिनों में आम आदमी पार्टी की नाव से यात्रियों के एक-एक कर कूदने का सिलसिला शुरू होने वाला ही है। उनके अपने लोग भी अब उनके कारनामों को उजागर करने से पीछे नहीं हटेंगे। सबसे उल्लेखनीय भूमिका में पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत सिंह मान रहेंगे। वे केजरीवाल की करतूतों के सबसे बड़े गवाह हैं। केजरीवाल उन्हें अपने निज सहायक की तरह नचाते रहे हैं। देश भर में चुनावी सभाओं में वे पंजाब सरकार के विमान से घूमते थे, ताकि दिल्ली सरकार के बजट में उनका यात्रा खर्च दर्ज न हो।

दिल्ली सरकार के सचिवालय को सील करने की घटना भी संभवत देश के इतिहास में पहली बार हुई होगी और उसके ठोस कारण हैं। यह अ‌वश्यंभावी था कि केजरीवाल एंड कंपनी सचिवालय के अहम फाइलें,दस्ताबेज,कम्प्यूटर,हार्ड डिस्क व अन्य सामग्री ले जाते। वे इस मुगालते में तो थे ही कि जनता उन्हें इस तरह तो खारिज नहीं करेगी कि वे सरकार ही न बना सकें। बेशक, यदि पदारूढ़ होने वाली सरकार के हाथ ऐसे प्रमाण लगते हैं, जो भ्रष्टाचार को इंगित करते हों तो केजरीवाल का लंबा समय सींखचों के पीछे बीत सकता है।