

विश्व संग्रहालय दिवस पर विशेष -रघुनाथ कृष्ण फड़के निर्मित फड़के स्टूडियो, धार
Phadke Studio Dhar: बेमिसाल शिल्प की जीवंतता
डॉ. तेज प्रकाश व्यास
श्री फड़के ने अनेक स्वतंत्रता सेनानियों – गांधीजी, जवाहरलाल नेहरू, बाल गंगाधर तिलक, राजा राममोहन राय आदि की अत्यंत सजीव मूर्तियाँ गढ़ी थीं। इसके अतिरिक्त राजाओं, रानियों एवं स्थानीय धर्मगुरुओं की अत्यंत सुंदर मूर्तियाँ उकेरी थीं। उनकी बनाई मूर्तियाँ धार, इंदौर, देवास, उज्जैन एवं मुम्बई में स्थापित हैं। वर्तमान में उनकी बनाई अनेक मूर्तियाँ एवं उनकी प्रतिकृतियाँ स्टूडियो की अलमारी में रखी हुई हैं। श्री फड़के को कला के क्षेत्र में उनके योगदान के लिए 1961 में भारत सरकार द्वारा पद्मश्री से सम्मानित किया गया था। 1971 में उन्हें विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन द्वारा डॉक्टरेट की उपाधि प्रदान की गई। 1972 में श्री फड़के की मृत्यु के बाद, उनकी कलाकृतियाँ आज भी स्टूडियो में जीवित हैं। इस प्रसिद्ध शिल्प संग्रहालय का हाल ही में जिला प्रशासन द्वारा सीएसआर के तहत जीर्णोद्धार किया गया है।इसकी सैर करवा रहे है श्री तेजप्रकाश व्यास –
सम्पादक
धार ;अंतरराष्ट्रीय संग्रहालय दिवस के अवसर पर, हम धार स्थित फड़के स्टूडियो और इसके संस्थापक, पद्मश्री डॉ. रघुनाथ कृष्ण फड़के के अद्वितीय योगदान को हृदय से स्मरण करते हैं। उनकी कला और समर्पण ने भारतीय मूर्तिकला को एक नई ऊँचाई प्रदान की।श्री रघुनाथ कृष्ण फड़के के शिल्पकला के लिए प्रसिद्ध फड़के आर्ट स्टूडियो धार के मांडव रोड पर शासकीय भोज अस्पताल के पास खंडेराव टेकरी पर स्थित है। फड़के स्टूडियो की स्थापना कलाकार एवं मूर्तिकार रघुनाथ कृष्ण फड़के ने की थी, जो धार नरेश के बुलावे पर मुम्बई से धार आए थे। उन्होंने 1933 में इस आर्ट स्टूडियो की स्थापना की थी, जहां उनकी मूर्तियाँ संग्रहित हैं।
फड़के स्टूडियो की स्थापना और विकास
1933: धार के महाराज उदाजीराव पंवार के आमंत्रण पर रघुनाथ कृष्ण फड़के मुंबई से धार आए। यहाँ की सांस्कृतिक समृद्धि और शांत वातावरण ने उन्हें इतना प्रभावित किया कि उन्होंने यहीं बसने का निर्णय लिया। वो ऐसे भारतीय मूर्तिकार थे जिन्होंने मूर्तिकला के क्षेत्र में बहुत नाम अर्जित किया था। रघुनाथ कृष्ण फड़के को भारत सरकार ने ‘पद्म श्री’ से सन् 1961 में सम्मानित किया था।
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रघुनाथ कृष्ण फड़के ने अपनी प्रारंभिक स्कूली शिक्षा बेसिन इंग्लिश स्कूल में प्राप्त की।
धार (मध्य प्रदेश) के महाराजा कला के संरक्षक थे और अक्सर कई कलाकारों को अपने राज्य में आमंत्रित करते थे। रघुनाथ कृष्ण फड़के उनमें से एक थे जिन्हें 20वीं शताब्दी के पूर्वार्द्ध में महाराजा ने आमंत्रित किया।
महाराज के अनुरोध पर 1933 में रघुनाथ कृष्ण फड़के ने एक आर्ट स्टूडियो शुरू किया।
उसके बाद वह वह धार में ही बस गए। उनके स्टूडियो को ‘फड़के आर्ट स्टूडियो’ के नाम से जाना जाता है। यह धार क़िले के बाहर स्थित है।
मूर्तिकार पद्मश्री रघुनाथ कृष्ण फड़के की कला की अपनी व्यक्तिगत विरासत धार, इंदौर और उज्जैन में सार्वजनिक स्थानों पर स्थापित प्रतिमाओं में देखी जा सकती है।
गवर्नमेंट इंस्टीट्यूट ऑफ फाइन आर्ट्स, धार की स्थापना 24 नवंबर 1939 को रघुनाथ कृष्ण फड़के के मार्गदर्शन में हुई थी। यह सर जे. जे. स्कूल ऑफ आर्ट्स, मुंबई और इंदिरा कला संगीत विश्वविद्यालय, खैरागढ़, राजनादगांव, छत्तीसगढ़ से संबद्ध है।
1939: फड़के ने “लक्ष्मी कला मंदिर” की स्थापना की, जो आज “धार स्कूल ऑफ आर्ट्स” या “ललित कला महाविद्यालय” के नाम से जाना जाता है।
फड़के स्टूडियो में महात्मा गांधी, जवाहरलाल नेहरू, बाल गंगाधर तिलक, राजा राममोहन राय, स्वामी विवेकानंद, गुरु नानकदेव, नाना साहेब तराणेकर सहित कई महान विभूतियों की जीवंत प्रतिमाएं बनाई गईं।
सम्मान और पुरस्कार
1961: भारत सरकार ने रघुनाथ कृष्ण फड़के को कला के क्षेत्र में उनके योगदान के लिए “पद्मश्री” से सम्मानित किया।
1971: उज्जैन स्थित विक्रम विश्वविद्यालय ने उन्हें डॉक्टरेट की मानद उपाधि प्रदान की।
कला की विशेषताएं और विरासत
फड़के की मूर्तियों में आंखों की गहराई, चेहरे की मांसपेशियों की बारीकियां, त्वचा की झुर्रियां, और कपड़ों की सिलवटें इतनी सजीवता से उकेरी गई हैं कि वे जीवंत प्रतीत होती हैं।
उन्होंने न केवल महापुरुषों की, बल्कि आम लोगों की भी प्रतिमाएं बनाईं, जिससे उनकी कला जनसामान्य से जुड़ी रही।
फड़के ने अपने शिष्यों को मूर्तिकला का प्रशिक्षण दिया, जिनमें शंकर राव दवे, दिनकर राव दवे, राजाभाऊ मेहुणकर और श्रीधर मेहुणकर प्रमुख हैं।
वर्तमान में फड़के स्टूडियो
फड़के स्टूडियो आज भी धार में स्थित है और उनकी मूल कलाकृतियों को संजोए हुए है। भारत एवं विश्व के पर्यटक फड़के स्टूडियो को अवलोकन करने आते हैं।
यह स्थान न केवल एक संग्रहालय है, बल्कि मूर्तिकला के प्रशिक्षण और कला के प्रचार-प्रसार का केंद्र भी है।
यहाँ बनी प्रतिमाओं की प्रतिकृतियाँ देश के विभिन्न स्थानों पर स्थापित हैं, जैसे इंदौर के रीगल तिराहे पर महात्मा गांधी की प्रतिमा और मुंबई की चौपाटी पर बालगंगाधर तिलक की प्रतिमा।
फड़के स्टूडियो और रघुनाथ कृष्ण फड़के की कला भारतीय सांस्कृतिक विरासत का अमूल्य हिस्सा हैं। उनकी मूर्तियाँ न केवल इतिहास को जीवंत करती हैं, बल्कि आने वाली पीढ़ियों को भी प्रेरणा प्रदान करती हैं। संग्रहालय दिवस पर, हम उनके योगदान को स्मरण करते हुए, कला और संस्कृति के संरक्षण के प्रति अपनी प्रतिबद्धता को दोहराते हैं।
डॉ. तेज प्रकाश व्यास ,इंदौर
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