टीकाकरण प्रमाणपत्र से फोटो का हटना

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भला हो विधानसभा चुनावों का जो कोरोना टीकाकरण के प्रमाणपत्र से साहब की तस्वीर छुपाई जा रही है .हटाई नहीं जा रही ,अन्यथा जहाँ भी जाओ साहब को साथ में लेकर जाओ .साहब मुफ्त में ही दुनियाभर की यात्रा कर रहे थे.भले ही वैसे घर-घर मोदी हो या न हो लेकिन प्रमाणपत्रों ,थैलों,बोरियों के जरिये वे घर-घर पहुँचने में कामयाब हो गए थे .

अच्छी खबर है कि जिन पांच राज्यों में विधानसभा के चुनाव होने वाले हैं, वहां जारी किये जाने वाले कोविड टीकाकरण प्रमाणपत्र पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तस्वीर नहीं होगी, क्योंकि वहां आदर्श आचार संहिता लागू हो गई है.

स्वास्थ्य मंत्रालय ने प्रधानमंत्री मोदी की तस्वीर हटाने के लिए कोविड प्लेटफॉर्म पर जरूरी फिल्टर लगा दिया है.आपको याद होगा कि मार्च 2021 में, स्वास्थ्य मंत्रालय ने कुछ राजनीतिक दलों की शिकायतों के बाद चुनाव आयोग के सुझाव पर असम, केरल, तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल और पुडुचेरी में चुनावों के दौरान भी इसी तरह के कदम उठाये थे.

कोरोना टीका प्रमाणपत्र पर प्रधानमंत्री जी का फोटो किसने और क्यों लगवाया है ये खोज का विषय है ,क्योंकि संयोग से हमारे पास अमेरिका में कराये गए टीकाकरण का प्रमाणपत्र है ,उसके ऊपर जो बाइडन का फोटो नहीं है .प्रमाणपत्र भी विजटिंग कार्ड जैसा है .अमरीका और भारत में यही फर्क है.

वहां के नेता अक्सर होर्डिंग्स,और विज्ञापनों से बचकर रहते हैं और हमारे यहां अक्सर योजनाबद्ध तरीके से छपते हैं .प्रमाणपत्रों,थैलों,खाद की बोरियों,स्कूली बस्तों के जरिये घर-घर पहुँचने का ये रोग पुराना है. कांग्रेस के जमाने में घर-घर नेहरू-गांधी पहुँचते थे और छपास के नए वेरिएंट के जरिये मोदी जी और उनके दूसरे इंजन के रूप में जनसेवा कर रहे मुख्यमंत्रियों की तस्वीरें छपती हैं .

सरकारी दस्तावेजों पर हमारे राजचिन्ह तो हमेशा से अंकित होते आये हैं और ये अच्छी बात भी है लेकिन हमारे राजनेताओं ने इन राजचिन्हों को हटाकर अपनी तस्वीरें लगवाना शुरू कर दिन ,ये हास्यास्पद है ,घर-घर पहुँचने की इस कोशिश ने कांग्रेस का भत्ता बैठा दिया ,और अब यही सब भाजपा तथा अन्य राज्यों में सत्तारूढ़ दलों के नेता कर रहे हैं. केरल जैसे इक्का-दुक्का राज्य इसके अपवाद हैं .कायदे से सरकारी खर्चे पर सरकारी दस्तावेजों के साथ ही सरकारी सहायता के लिए वितरित की जाने वाली किसी भी सामग्री पर राजनेताओं की तस्वीरें नहीं होना चाहिए .

आजादी के बाद नेताओं की जो पीढ़ी थी वो हमारे लिए आदर्श मानी जाती थी लेकिन उस पीढ़ी के बाद जो नेता सामने हैं उनमने से बहुत कम ऐसे हैं जिन्हें राष्ट्रीय हीरो कहा जा सके. किसी का दामन दूध का धुला नहीं है. इंदिरा गांधी से लेकर नरेंद्र मोदी तक और राज्यों में अधिकाँश मुख्यमंत्रियों के दामन पर घपले-घोटालों,भाई-भतीजावाद के दाग लगे हैं .इन दाग-दगीले नेताओं की तस्वीरें देखकर हमारी जनता,बच्चे और युवा आखिर कैसे प्रेरणा ले सकते हैं ?किसी पर दंगे का आरोप है ,किसी पर नरसंहार का .कोई डम्पर घोटाले वाला है तो कोई सीमेंट घोटाले वाला .

हमारे मध्य्प्रदेश में तो नेताओं को अपने फोटो छपने-छपवाने का ऐसा भूत सवार है कि वे सड़कों पर लगे होर्डिंग्स के साथ-साथ मरघटों और शौचालयों तक छा गए हैं .किसी का आगमन हो,जन्मदिन हो ,पुण्यतिथि हो ,उद्घाटन,लोकार्पण ,नियुक्ति यानि कुछ भी हो नेताओं की तस्वीरों के पोस्टरों से शहर पाट दिए जाते हैं .अब तो नेताओं के साथ उनके बच्चे इस प्रतियोगिता में शामिल हो गए हैं .आप जानते हैं कि युवाओं में कितना जोश होता है .

कोरोना टीकाकरण के प्रमाणपत्रों से माननीय प्रधानमंत्री जी की तस्वीर हटाने के भारत निर्वाचन आयोग के निर्देश की सराहना की जाना चाहिए. ऐसा करने से माननीय के मन में कोई कमी होने वाली नहीं है बल्कि इससे उनका मान और बढ़ेगा. इस बारे में पूर्व में लोग अदालतों में भी गए,अदालतों ने निर्देश भी दिए लेकिन मानता कौन है ? गनीमत है कि आयोग की बात स्वास्थ्य मंत्रालय ने मान ली और प्रधानमंत्री जी कि तस्वीर पर फिल्टर लगा दिया.बेहतर हो कि भविष्य में ऐसे किसी भी प्रमाणपत्र या सरकारी दस्तावेज पर नेताओं की तस्वीरें आएं ही न.

मुझे लगता है कि सरकारी दस्तावेजों तथा अन्य सामग्रियों पर नेताओं की तस्वीर छपने का चलन चापलूस नौकरशाही की देन है. कांग्रेस के समय में पड़ी इस गलत परम्परा को बंद करने के बजाय बीते सात साल में भाजपा ने इसका जमकर दुरूपयोग किया है। इस परम्परा के कारण नेताओं का अहम भले संतुष्ट होता हो लेकिन इससे होती जग हंसाई ही है .ऐसा करने से वोट नहीं मिलते.प्रधानमंत्री जी की तस्वीरें टीका प्रमाणपत्रों के जरिये उन घरों तक भी पहुंची है जो प्रधानमंत्री जी के समर्थक नहीं हैं .सरकारी दस्तावेजों पर नेताओं के चित्र लगाने को कदाचरण माना जाना चाहिए।

दुर्भाग्य ये है कि हमारे नेता अब गांधीवादी नहीं है.वे उपाध्ययवादी भी नहीं है. वे आजकल मॉडलों से प्रतिस्पर्धा करते दिखाई देते हैं. दिन में पांच बार कपडे बदलने के आदि हैं. कांग्रेस में शिवराज पाटिल जैसे नेता दिन में तीन बार कपडे बदलते थे। कपड़े तस्वीरें खिंचवाने के लिए ही बदले जाते हैं. ये मानवीय कमजोरी है. मै भी नए-नए वेश-भूषा का प्रेमी हूँ लेकिन मैंने आजतक अपनी तस्वीरें किसी दूसरे तरीके से नहीं छपवायीं.आप कह सकते हैं कि मुझे मौक़ा ही नहीं मिला ,लेकिन जो गलत है सो गलत है .इस मामले में मोदी जी के तमाम उत्तराधिकारी उनसे कमतर थे.डॉ मनमोहन सिंह हों या अटल बिहारी बाजपेयी कभी भी मॉडलिंग की प्रतिस्पर्धा में शामिल नहीं हुए .

छपास की बीमारी का कोई इलाज भी नहीं है. ये ऐसा रोग है कि यदि एक बार लग जाये तो इससे मुक्ति पाना आसान नहीं .विदेश के नेताओं में ये रोग कम है .वे प्राय:एक ही तरीके कपडे पहने दिखाई देते हैं और गनीमत है कि सरकारी दस्तावेजों पर तो बिलकुल नहीं दिखाई देते .मै विदेशी नेताओं का अनुशरण करने की सलाह बिलकुल नहीं देता,क्योंकि हमारे पास तो विदेशी नेताओं से कहीं ज्यादा आदर्शवादी नेताओं के उदाहरण मौजूद हैं. हमें उनका अनुसरण करना चाहिए ,ताकि निर्वाचन आयोग या अदालतों को ऐसे निर्देश देने का मौक़ा ही न मिले जिससे चुनावों की आदर्श आचार संहिता प्रभावित हो .आदर्श स्थापित करना नेताओं का ही काम है लेकिन वे आजकल जैसे आदर्श स्थापित कर रहे हैं उनसे नई पीढ़ी का कल्याण होना नामुमकिन है .

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RAKESH ANCHAL
राकेश अचल

राकेश अचल ग्वालियर - चंबल क्षेत्र के वरिष्ठ और जाने माने पत्रकार है। वर्तमान वे फ्री लांस पत्रकार है। वे आज तक के ग्वालियर के रिपोर्टर रहे है।