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भोपाल। सूचना के अधिकार कानून के तहत तीस दिन की समय सीमा में जानकारी या जवाब नहीं देने और अपीलों की सुनवाइयों में नदारद चार अफसरों के रवैए पर राज्य आयुक्त विजय मनोहर तिवारी ने सागर संभाग के चार अफसरों पर सवा लाख रुपए के जुर्माने किए हैं। संभाग के नगरीय निकायों में सूचना के अधिकार कानून की सबसे ज्यादा खराब हालत दमोह में पाई गई है। आयोग ने प्रमुख सचिव को संज्ञान लेने के लिए कहा है।
केस-1
एक अफसर पर दो मामलों
में 50 हजार रुपए अर्थदंड
दमोह नगर पालिका परिषद के तत्कालीन लोक सूचना अधिकारी कपिल खरे को दो मामलों में 50 हजार रुपए का अर्थदंड किया गया है। दोनों ही मामलों में साधारण सी जानकारी के आवेदन अटकाकर रखे गए। प्रथम अपील आदेश के बावजूद जानकारी नहीं दी गई। यहां तक कि सुनवाई के अवसर देने के बावजूद लोक सूचना अधिकारी आयोग के समक्ष नहीं आए। एक मामले में 13 सुनवाइयां हुईं और दूसरे मामले में 11 बार तारीखें लगीं। आयोग ने इसे गंभीरता से लेते हुए लोक सूचना अधिकारी को जानबूझकर जानकारी नहीं देने, अपीलीय सुनवाई में बाधा पैदा करने और प्रकरण को अनावश्यक रूप से लंबा खींचने का दोषी करार दिया। दोनों मामलों में धारा 20 (1) के तहत 25-25 हजार रुपए की शास्ति के आदेश दिए गए। दमोह मेंं सूचना के अधिकार कानून के क्रियान्वयन की बदतर स्थिति को लेकर प्रमुख सचिव को भी निर्देशित किया गया है।
केस:2
अधिकारी को अपनी भूमिका
के बारे में कोई ज्ञान ही नहीं
राजनगर छतरपुर की सरोज पटेल ने संकुल प्राचार्य से सात बिंदुओें पर 18 जुलाई 2019 जानकारी चाही थी। 14 माह के विलंब से आधी-अधूरी जानकारी दी गई। लोक सूचना अधिकारी गणेश यादव वहां 2004 से पदस्थ हैं। आयोग ने कहा है कि अधिकारी को सूचना के अधिकार कानून में निर्धारित अपनी भूमिका का ही ज्ञान नहीं है। उन्हें अधिकतम शास्ति का कारण बताओ सूचना पत्र जारी किया गया था, लेकिन न वे आयोग के समक्ष उपस्थित हुए और न ही कोई स्पष्टीकरण प्रस्तुत किया। आयोग ने 25 हजार रुपए का अर्थदंड आरोपित किया है।
केस-3
जब रिकॉर्ड ही उपलब्ध नहीं था
तो यही जवाब क्यों नहीं दिया?
टीकमगढ़ जिले की मुहारा पंचायत के लोक सूचना अधिकारी रामस्वरूप घोष ने 19 सितंबर 2019 काे पांच बिंदुओं के एक ऐसे आवेदन को अटकाया, जिसमें चाही गई जानकारी से सबंधित कोई रिकॉर्ड ही उनके पास नहीं था। वे रिकॉर्ड अनुपलब्ध होने का कारण सहित यही जवाब 30 दिन की समय सीमा में दे सकते थे। लेकिन प्रकरण अटका रहा। आयोग ने पाया कि अनुपलब्ध रिकॉर्ड के बारे में वरिष्ठ अधिकारियों को भी नहीं बताया गया और न ही आवेदक को कोई जवाब भेजा गया। इस मामले में भी 25 हजार रुपए का जुर्माना किया गया।
केस-4
पहले आवेदन रद्द, फिर सवा दो
साल बाद जानकारी दी, जुर्माना
राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन छतरपुर की तत्कालीन लोक सूचना अधिकारी सोनू सुशीला यादव ने दिसंबर 2018 के एक आवेदन पर यह कहकर जानकारियां देने से इंकार कर दिया था कि चाही गई जाानकारी लोकहित में अस्पष्ट है। उन्होंने जानकारी मांगने का उद्देश्य भी पूछा। प्रथम अपीलीय अधिकारी के आदेश के बावजूद जानकारीनहीं दी गई। मामला आयोग में आने के बाद मार्च 2021 में सवा दो साल बाद जानकारी दे दी गई। आयोग ने कहा कि पहले अस्पष्ट बताकर आवेदन रद्द करना और इतने विलंब से जानकारी दे देना विरोधाभाषी है। एक लोक सूचना अधिकारी के रूप में यह भूमिका दोषपूर्ण है। अधिकारी को दस हजार रुपए की शास्ति लगाई गई।
-बार-बार नोटिस के बावजूद आयोग की सुनवाइयों में लोक सूचना अधिकारियों की गैर हाजिरी सूचना के अधिकार कानून का माखौल है। किसी आवेदन पर न समय पर जवाब देना, न जानकारी देना, न अपीलीय आदेश का पालन करना और न ही आयोग के समक्ष अपना पक्ष रखना, यह हर स्तर पर कानून की अवहेलना है। लोक सूचना अधिकारियों को धारा 20 (1) के जुर्माने के प्रावधान पता होने चाहिए। वह रिटायरमेंट के बाद भी पीछा नहीं छोड़ते।