“सीमा” के साहस को सलाम …

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मनचलों को सबक सिखाने के हौसले की जब भी चर्चा होगी, तब मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल की “सीमा” का नाम सबकी जुबां पर जरूर आएगा। एक गरीब परिवार की महिला सीमा पर औरत को अबला समझने वाली सोच से  मनचलों ने छेड़खानी करने का दुस्साहस किया था। जिसका जवाब सीमा ने थप्पड़ रसीद कर दे ही दिया था।
पर उन कायरों ने पति के साथ जा रही सीमा पर प्राणघातक हमला कर कानून को ठेंगा दिखाने का घृणित काम किया था। सीमा के चेहरे पर 118 टांके आए, तो समझा जा सकता है कि हमलावर कितने दुस्साहसी थे। पर सीमा का साहस इतना बुलंद था कि उसने हिम्मत नहीं हारी। 118 टांके लगने के बाद भी चेहरे पर सिकन नहीं आई और जब प्रदेश का मुखिया सीमा की कुटिया में पहुंचा, तब जरूर उसने ऐसे गुंडे-मवालियों के खिलाफ मदद की गुहार लगाई।
और मामा ने भी भाई का फर्ज निभाने और हरसंभव मदद का भरोसा दिलाया। मामला संज्ञान में आने के बाद ही उन्होंने पुलिस-प्रशासन की खैर-खबर ले ही ली थी। रविवार सुबह जब वह सीमा के घर पहुंचे, तब तक तीनों आरोपी गिरफ्तार कर लिए गए और दिन में ही मुख्य आरोपी का घर बुलडोजर की भेंट चढ़ गया।
भोपाल में महिला के चेहरे पर ब्लेड मारने से 118
कई बार यह सोच में आता है कि इन अपराधी अराजक तत्वों के घर पर बुलडोजर चलता है, तब परिवार वालों का क्या हाल होता होगा? पर दूसरे ही पल यह बात मन में खटकती है कि ऐसा संभव नहीं है कि घृणित काम करने वाले इन अराजक तत्वों के कारनामों की भनक इनके परिजनों को नहीं रहती। पता तो सबको रहता है, लेकिन समय रहते इन्हें परिजनों से सजा न मिलने से इनके दुस्साहस को जो शह मिलती है, वहीं बूंद-बूंद जुड़कर परिवार के लिए जहर की गागर बन जाती है। और तब फिर स्थितियां विस्फोटक हो जाती हैं।

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जिसका दंड बुलडोजर से घर ढहने पर पूरे परिवार को भुगतना पड़ता है। अगर घर के एक गुंडे-बदमाश की करनी के इस खामियाजे से सीख लें, तो परिवार का कोई दूसरा व्यक्ति इस राह पर चलने से परहेज जरूर करेगा। घर तो दूसरा बन सकता है, पर एक घर धराशायी होने से यदि गुनाह की राह पर न चलने का स्थायी परिणाम मिलता है तो समाज के लिए वह बहुत बड़ी उपलब्धि है। इससे पूरे समाज को यही सबक लेना चाहिए कि घर तभी सुरक्षित है, जब इसमें अपराधी न पल रहे हों। यदि लगता है कि घर का बच्चा गलत राह पकड़ रहा है, तो उसकी मरम्मत घर में ही कर दी जाए। ताकि यह नौबत न आए कि बुलडोजर से सबके हिस्से का घर पल भर में तबाह हो जाए और परिवार के सभी सदस्यों के सपने भी उजड़कर जमीन में मिल जाएं।
यह तो लाखों महिलाओं में एक “सीमा” का हौसला होता है कि मनचले को थप्पड़ मारकर प्रतिकार करने का साहस दिखाती है। वरना ऐसे कितने ही मामले सामने आते हैं, जहां जवान बेटियां मजबूर होकर मौत को गले लगा लेती हैं और राक्षसों का दंभ सिर चढ़कर बोलता है। यदि ऐसे अपराधी पकड़े भी जाते हैं, तो तब तक कितनी जिंदगी और कितने परिवार तबाह कर चुके होते हैं…वह बड़ा घृणित और दुःखद अध्याय बनकर अतीत में दफन हो चुका होता है।
जिसके पन्ने पलटने पर वह आक्रोश पैदा होता है कि क्यों न ऐसे घिनौने चेहरों को जिंदा दफन कर दिया जाए। चाहे अपराध बलात्कार के हों, गैंग रेप के हों, मासूम बच्चियों के साथ हों या लड़कियां-महिलाएं शिकार बनें। महिलाओं के प्रति अपराध पर अंकुश न लगा पाने के लिए पुलिस-प्रशासन और सरकार को कोसने भर से काम नहीं चलने वाला। उसके लिए भी समाज को आगे आना पड़ेगा। महिला अपराध उन्मूलन और सभी तरह के अपराधों के खात्मे में सक्रिय भागीदारी निभानी पड़ेगी।
ऐसे बादशाहों को सिर उठाने से पहले ही मिट्टी में मिलाना पड़ेगा, ताकि इनके घरों के मिट्टी में मिलने की नौबत न आए और परिवार की महिलाओं-बच्चों के सिर से छत या छप्पर न हट पाए। “सीमा” के साहस से हर महिला यह प्रेरणा ले सकती है कि किसी के भी दुस्साहस पर पहला थप्पड़ रसीद करने का हौसला दिखाना ही चाहिए। थप्पड़ की वही गूंज समाज को अपराधियों से मुक्त होने का रास्ता बनाएगी। गलत का विरोध करने पर जान भी गंवाना पड़े, तब वह भी शहादत के हिस्से में ही आती है।
ऐसी एक कुर्बानी लाखों दिलों में प्रेरणा बनकर जिंदा रहती है और सैकड़ों जिंदगी बचाने का जरिया भी बनती है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का सीमा के घर पहुंचकर खैर-खबर लेने का शुक्रिया और उसके साहस का यह कहकर “मदद के लिए मैं हूं न तुम्हारा भाई” सम्मान करना, वाकई तारीफ के काबिल है। सीमा तुम्हारे साहस को सलाम…यही इच्छा कि हर बहन-बेटी इसी तरह साहस की धनी बनकर मिसाल पेश करने का हौसला रखे। ताकि महिलाओं के खिलाफ होने वाले अपराध से समाज हमेशा-हमेशा के लिए मुक्त हो सके।