कांग्रेस को लोकतंत्र के समर की हकीकत बता रहे हैं संजय…
कौशल किशोर चतुर्वेदी
महाभारत में एक पात्र संजय थे। उन संजय ने धृतराष्ट्र को महाभारत-युद्ध का हर अंश सुनाया था। संजय के बारे में कहा जाता है कि वो यदाकदा युद्ध में भी शामिल होते थे। जब ये पक्का हो गया कि महाभारत के युद्ध को टाला नहीं जा सकता तब महर्षि वेदव्यास ने संजय को दिव्य दृष्टि प्रदान की थी। ताकि वो युद्ध-क्षेत्र की सारी बातों को महल में बैठकर ही देख लें और उसका हाल धृतराष्ट्र को सुनाएं। इसके बाद संजय ने नेत्रहीन धृतराष्ट्र को महाभारत-युद्ध का हर अंश सुनाया। ये भी कहा जा सकता है कि द्वापर युग में संजय को वेदव्यास ने डीटीएच यानि डायरेक्ट टू होम सुविधा उपलब्ध कराई थी, जो केवल महाभारत युद्ध तक 18 दिन के लिए ही संजय को मिली थी।
आज हम कलियुग के संजय की बात कर रहे हैं। जो लोकतंत्र के इस महाभारत में कांग्रेस को समर की हकीकत बताने का काम कर रहे हैं। कांग्रेस से निष्कासित या कांग्रेस से त्यागपत्र दे चुके संजय निरुपम ने कांग्रेस में पांच पावर सेंटर पर निशाना साधा है। सबसे पहली गौर करने वाली बात है कि उन्होंने जय श्रीराम के साथ संबोधन की शुरुआत की है। और वह इसके जरिए कांग्रेस को यह हकीकत बताकर पहली सीख भी दे गए हैं कि अब बिना राम को सुमिरे भारत में राजनीति नहीं की जा सकती। मुगल काल, अंग्रेजों के काल के बाद कांग्रेस का वह काल खत्म हो चुका है जब राम के देश में राम तंबू में रहने को मजबूर थे। अब राम का भव्य मंदिर बन गया है और राजनीति में भी राम राज का काल आ गया है। और इसीलिए पत्रकार से नेता बने संजय निरुपम ने लोकतंत्र के महाभारत का आंखों देखा हाल आंखें बंद किए बैठी कांग्रेस को बताने का सफल या फिर असफल प्रयास किया है।
संजय ने कांग्रेस को दिशाहीन बताते हुए कहा है कि पार्टी में संगठनात्मक ताकत नहीं है। गांधी परिवार और पार्टी आलाकमान पर निशाना साधते हुए निरुपम ने कहा कि कांग्रेस के पास पांच पावर सेंटर हैं। सभी पांचों सेंटर- सोनिया गांधी, राहुल गांधी, प्रियंका गांधी, मल्लिकार्जुन खड़गे और केसी वेणुगोपाल हैं। जिनकी अपनी-अपनी लॉबी हैं और वे एक-दूसरे मिलते हैं। निरुपम ने आगे कहा कि अब उनका धैर्य खत्म हो गया है। पार्टी कार्यकर्ताओं में भारी निराशा है। वैचारिक मोर्चे पर भी कांग्रेस खुद को धर्मनिरपेक्ष कहती है। महात्मा गांधी सर्वधर्म समभाव में विश्वास करते थे। सभी विचारधाराओं की एक समय सीमा होती है। धर्म को नकारने वाली नेहरूवादी धर्मनिरपेक्षता खत्म हो गई है। दुर्भाग्यपूर्ण बात यह है कि कांग्रेस इसे स्वीकार करने को तैयार नहीं है। निरुपम ने आगे दावा किया कि भारत अब ‘पूरी तरह से धार्मिक’ देश बन गया है। यहां तक कि उद्योगपति भी बड़े गर्व के साथ मंदिरों में जाते हैं। और वैचारिक और संगठनात्मक रूप से कांग्रेस पार्टी अव्यवस्था की स्थिति में है। कांग्रेस का वास्तविकता से संपर्क टूट गया है। उन्होंने कहा कि आधे लोग पुराने हो चुके हैं और उन्हें खत्म करना होगा।
तो संजय इस लोकतंत्र के समर से वास्तविकता का जो पाठ कांग्रेस को पढ़ाना चाहते हैं, वह पाठ कांग्रेस शायद ही सोनिया, राहुल और प्रियंका के रहते पढ़ने को तैयार हो। और इनके यही पाठ न पढ़ने की वजह से कांग्रेस छोड़कर भाजपा में जाने वाले दिग्गज कांग्रेसियों की कतार लगी है। बड़ा सवाल यह है कि कांग्रेस के पावर सेंटर राहुल गांधी की वापस अमेठी लौटने की हिम्मत क्यों नहीं हुई, उसकी वजह भी हकीकत से मुंह मोड़ना ही है। यदि वायनाड से मोहब्बत की दुकान चलाने को राहुल तैयार हैं तो कांग्रेस मुक्त भारत की कल्पना करना बेमानी नहीं है। निश्चित तौर पर संजय की खरी-खरी पर कांग्रेस के पावर सेंटर्स को गौर करना चाहिए। वरना लोकतंत्र के इस महाभारत में खुद के हासिए पर जाने के बहाने भले ही कांग्रेस तलाशती रहे लेकिन सत्ता के सिंहासन तक पहुंच पाना तो दूर खुद का अस्तित्व बनाए रखने के संकट से शायद ही कांग्रेस उबर पाए…।