“Sapanon Kee Duniya Mein black Hole” : वरिष्ठ साहित्यकार संतोष चौबे का सद्य प्रकाशित उपन्यास लोकार्पित
ग्रामीण समाज के स्वप्नों और चिंताओं को रचनात्मकता से रेखांकित करता हैं ‘सपनों की दुनिया में ब्लैक होल’– विनोद तिवारी
हिंदी कथा संसार के प्रतिष्ठित कथाकार– उपन्यासकार संतोष चौबे के नव प्रकाशित उपन्यास ‘सपनों की दुनिया में ब्लैक होल’ का लोकार्पण कुशाभाऊ ठाकरे इंटरनेशनल कन्वेंशन सेंटर (मिटों हॉल), भोपाल में समारोह पूर्वक किया गया है। यह समारोह ‘विश्व रंग’ के अंतर्गत आईसेक्ट पब्लिकेशन एवं वनमाली सृजन पीठ के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित किया गया।
समारोह की अध्यक्षता करते हुए ख्यात आलोचक डॉ. विनोद तिवारी, (नईदिल्ली) ने अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में कहा कि संतोष चौबे अपने कथा कहन में, किस्सागोई में कई तरह की युक्तियों का प्रयोग करते हैं। यह उनकी बहुत खुबसूरत और बेहतरीन खूबी है। इस उपन्यास में सपना एक डिवाइस की तरह आता है। वह सपना संसार से मुठभेड़ करता है।
उन्होंने आगे कहा कि कोई भी उपन्यास अपने अनुभव वितान से बाहर दिखता है लेकिन अंततः वह होता नहीं। हर उपन्यास आत्मकथात्मक होता है। संतोष चौबे मूलतः एक रचनाधर्मी है। एक लेखक है। उद्यमी वो उसके बहाने हैं। उद्यमी हैं इस बहाने लेखक हैं ऐसा नहीं है। उनके स्वप्नों, चिंताओं, रचनात्मकता तथा कल्पनाशीलता में ग्रामीण समाज के हितों की योजनाएँ निहित होती हैं। इस मामले में वे भिन्न तरीकों से सोचते हैं। यह उनकी खासियत है।
वरिष्ठ कवि-कथाकार, उपन्यासकार, विश्व रंग के निदेशक, संतोष चौबे ने अपने नवीन उपन्यास “सपनों की दुनिया में ब्लैक होल” के अंश का पाठ करते हुए अपनी रचना प्रक्रिया पर विचार व्यक्त करते हुए कहा कि तमाम जटिलताओं के बावजूद कथा कहने की चीज हैं। कथा को कहा जाना चाहिए। मैं कथा लेखन में इतिहास को रेखांकित करते हुए लोकेल की स्थापना को विशेष महत्व देता हूँ। इस नवीन उपन्यास ‘सपनों की दुनिया में ब्लैक होल’ में सपनें सूत्रधार की तरह आते हैं। उपन्यास लेखन एक उत्साह से भर देता हैं लेकिन वह आपको अवसाद और भीतर से उदासी से भी भर देता है। मैं इनसे बाहर आने के लिए अनवरत रचनात्मक और सृजनात्मक कार्यों में संलग्न रहता हूँ।
इस अवसर पर संतोष चौबे ने ‘सपनों की दुनिया में ब्लैक होल’ से कुछ महत्वपूर्ण अंशों का अविस्मरणीय पाठ किया।
लोकार्पित कृति पर अपने विचार व्यक्त करते हुए रचना समय के संपादक एवं कथाकार हरि भटनागर (भोपाल) ने कहा यह उपन्यास विचार की एक लंबी यात्रा की शुरुआत है। यह प्रतिकार का नया स्वप्न है। इस उपन्यास का केन्द्रीय भाव समाज के युवाओं के लिए सपने देखना है। यह उस दुरुह समय में सपने देखने की उम्मीद जगाता है जहाँ समाज के युवाओं के लिए न तो विकास की उम्मीद दिखाई पड़ती है न ही भरोसे की कोई गुंजाइश नजर आती है।
कथाकार प्रकाश कांत (देवास) ने कहा कि हमारे आसपास अभी भी ऐसे बहुत से क्षेत्र हैं जिस पर कथा कहना और लिखना शेष हैं। कथा कहन की दृष्टि यह उपन्यास पाठकों को एक अलग अनुभव संसार में ले जाता है। यह हमारे सपनों के अपहरण की मार्मिक कथा है। पहले कहा जाता था कि दुनिया में कोई भी चीज विकल्पहीन नहीं है। लेकिन अब यह स्थापित किया जा रहा है कि वह जो बता रहे हैं वहीं एक मात्र विकल्प है। इस सीमित होती दुनिया में कैसे सृजनात्मक सपनें देखे जा सकते हैं उसी विकल्प की तलाश करता है यह उपन्यास।
लोकप्रिय रचनाकार पंकज सुबीर (सीहोर) ने कहा कि यह उपन्यास पढ़ते समय इसके मुख्य पात्र कार्तिक की समाज के प्रति बैचेनी और छटपटाहट को मैंने अपने भीतर तक महसूस किया। यह लेखक की सफलता है कि उसके मुख्य पात्र की बैचेनी, द्वंद और छटपटाहट पाठक अपने भीतर तक महसूस करने लगें। यह जनता के सपनों के अपहरण की कथा है। यह उपन्यास हमें डराता है। यह डर बहुत जरूरी है। यह उपन्यास सत्ता और कॉरपोरेट के खेल को उजागर करता है। यह बिना डरे लिखा गया उपन्यास है। यह जन पक्षधरता का उपन्यास है।
युवा कथाकार आशुतोष (सागर) ने कहा कि हमारी दुनिया में फैलते जा रहे शोषण के मकड़जाल को संतोष चौबे अपने उपन्यास ‘सपनों की दुनिया में ब्लैक होल’ में नये स्थापत्य के साथ हमारे सामने रखते हैं। जनता के सपनों की सरकारी योजनाओं के बरक्स कार्तिक और उसके साथी सपना देखते हैं। सपने देखना मानवीय करण है। मुझे कन्हैया लाल नंद की पंक्तियाँ याद आती है–
‘जिंदगी को जीद है कि वह ख्वाब बनकर उभरेगी’
और नींद को गुमां है कि उम्र भर नहीं आएगी।’
कहना यह होगा कि नींद और ख्वाबों की इस आजमाइश में कार्तिक और उसके सृजनकर्ता संतोष चौबे जो सपना देख रहें है, उसमें ख्वाबों का पलड़ा भारी है। यह उपन्यास वास्तव में प्रस्थान बिंदु की तरह है।
युवा कथाकार प्रज्ञा रोहिणी, (नईदिल्ली) ने कहा कि इस उपन्यास में यथार्थ बहुत विस्तार और संश्लेषित रूप में आता है। यह उपन्यास सत्ताओं के भ्रमजाल, मायाजाल और सम्मोहन को सामने लाता है। यह उपन्यास उन चीजों का पर्दाफाश करता है जो युवाओं की उम्मीदों के सपनों को नाउम्मीदी के ब्लैक होल में धकेल रही है। यह उन आर्दशवादी युवाओं की कहानी है जो ग्रामीण अंचल का विकास मुख्यधारा में चलते हुए करना चाहते हैं। यह उन स्वप्नदर्शी युवाओं की कहानी है जो जनसंगठन और सूचना प्रौद्योगिकी के साथ एक सुनहरा सपना देखते हैं। यह उन युवाओं की कथा है जो यह मानते हैं कि बहुत बड़े परिवर्तनों के लिए सिर्फ पूंजी ही नहीं चाहिए वरन उसके लिए बड़े उद्देश्य और बड़ी दिशाएँ भी चाहिए। ये युवा यह भी मानते है कि परिवर्तनकारी घटकों में आंदोलनधर्मिता की भी जरूरत पड़ेगी।
चर्चित कथाकार–आलोचक राकेश बिहारी (मुजफ्फरपुर, बिहार) ने अपने लिखित वक्तव्य में कहा सामाजिक विकास में उद्यमशीलता की जरूरत और उसकी व्यवहारिक प्रविधियों पर बात करने वाला मेरी सीमित पढ़त में यह पहला उपन्यास है। सामाजिक दायित्व के समानांतर में इसे एक लेखकीय सामाजिक दायित्व के सर्वदा एक नवीन उदाहरण के रूप में देखता हूँ। यह एक ऐसा सामाजिक दायित्व है जो सिर्फ लेखन तक सीमित नहीं है बल्कि उद्यमशीलता के निजी अनुभवों को सामूहिक अनुभव में बदलने का एक रचनात्मक प्रयास भी है।
उल्लेखनीय है कि उपन्यासों की श्रृंखला में संतोष चौबे की यह चौथी कृति है जो सपनें बुनने वालों और उन्हें अपने रचनात्मक और सृजनात्मक दृष्टिकोण के साथ एक अंजाम तक पहुँचाने वालों के जद्दोजहद पर केंद्रित है।
कार्यक्रम का संचालन युवा आलोचक अरुणेश शुक्ल ने करते हुए कहा कि संतोष चौबे का यह नया उपन्यास हिंदी कथा परिसर में एक अलहदा रचनाकर्म को रेखांकित करता है। हिंदी कथा लेखन परंपरा में इस तरह के उपन्यासों की परपंरा नहीं है। पाठकीय बोध के स्तर पर भी नहीं हैं। यह उपन्यास हमारे समय के जटिल यथार्थ और सामाजिक सरोकारों की पक्षधरता को बयां करते हुए हमारे बरक्स एक नई बहस भी खड़ी करता है।
स्वागत वक्तव्य मुकेश वर्मा, वरिष्ठ कथाकार एवं अध्यक्ष, वनमाली सृजन पीठ, भोपाल ने दिया। आभार बलराम गुमास्ता, वरिष्ठ कवि, भोपाल द्वारा व्यक्त किया गया। उल्लेखनीय है कि इस अवसर पर बड़ी संख्या में साहित्यकारों और साहित्यप्रेमियों ने अपनी उपस्थिति दर्ज कराई।
क्या प्रवचनकार ‘हिन्दू राष्ट्र’ के संविधान पर भी कुछ बोलेंगे?