SC/ST Act: सिर्फ जाति का नाम लेने से जाति सूचक अपराध नहीं बनता!
Bengaluru : कर्नाटक हाईकोर्ट ने कहा कि किसी को सिर्फ जाति से संबोधित करना अपराध नहीं होता। जब तक कि संबंधित व्यक्ति का अपमान करने के इरादे से जाति का उल्लेख न किया गया हो। ‘अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989’ को लेकर कर्नाटक हाई कोर्ट ने बड़ा फैसला दिया है।
अत्याचार अधिनियम के प्रावधानों से संबंधित एक अभियुक्त के खिलाफ कार्यवाही को रद्द करते हुए हाईकोर्ट ने यह भी कहा कि नियम 7 के तहत, मामले की जांच एक डेप्युटी एसपी की रैंक वाले पुलिस अधिकारी को करनी चाहिए न कि सब-इंस्पेक्टर रैंक के अधिकारी को।
न्यायाधीश ने कहा कि इस मामले में, उक्त पहलू (अपमान करने का इरादा) स्पष्ट रूप से अनुपस्थित है। अत्याचार अधिनियम के तहत अपराधों के संबंध में आगे की कार्यवाही जारी रखने की अनुमति देना कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग होगा। न्यायाधीश ने कहा कि न तो चार्जशीट और बयान में इस तरह की परिस्थितियों को वर्णन किया गया है। सिर्फ शिकायतकर्ता के बेटे ने ही कहा कि जब उसे गालियां दी गईं तो जातिसूचक नाम का इस्तेमाल किया गया।
बेंगलुरु के ग्रामीण जिले के बंडेसंद्रा गांव के निवासी वी शैलेश कुमार की दायर याचिका को आंशिक रूप से स्वीकार करते हुए, न्यायमूर्ति एम नागप्रसन्ना ने कहा कि याचिकाकर्ता को IPC के तहत अपराध जैसे मारपीट, आपराधिक धमकी आदि के मामले में मुकदमे का सामना करना होगा।
2020 में दर्ज हुआ था मारपीट का मामला
यह मामला क्रिकेट मैच के बाद दो टीमों के बीच हुए विवाद से हुआ था। 14 जून, 2020 को इग्गलुरु गांव की जयम्मा ने शिकायत दर्ज कराई थी। उसने आरोप लगाया कि उसका बेटा मनोज और उसका दोस्त प्रदीप एक दुकान के पास खाना खा रहे थे। शाम करीब 4.30 बजे शैलेश कुमार 30 लोगों के साथ दोपहिया और एक कार पर वहां आया और मनोज के खिलाफ गालियां दीं। एक अन्य व्यक्ति ने उन पर हथियारों और बीयर की बोतलों से हमला कर घायल कर दिया और कार में ले जाकर उनके साथ भी मारपीट की।
पुलिस ने 2021 में दायर की चार्जशीट
पुलिस ने मामले की जांच की और अत्याचार अधिनियम और आईपीसी दोनों प्रावधानों को लागू करते हुए आरोप पत्र दायर किया। विशेष न्यायाधीश ने एक मार्च 2021 को एट्रोसिटीज एक्ट के तहत विशेष मामला दर्ज करने का आदेश दिया था। इसे शैलेश ने चुनौती दी थी, जिन्होंने दावा किया कि जाति का नाम लेकर गालियां दी गईं, हालांकि उन्होंने यह भी स्वीकार किया कि इसका इरादा अपमान करना नहीं था।