हर पल राम के आनंद में डूबे हैं शंकराचार्य स्वामी सदानंद …

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हर पल राम के आनंद में डूबे हैं शंकराचार्य स्वामी सदानंद …

जब पूरा देश राममय‌ है और शंकराचार्य के नाम पर विवादों को जन्म देने की लगातार कोशिश की जा रही है। इस बीच भोपाल आए द्वारका शारदापीठ के शंकराचार्य जगद्गुरु सदानंद सरस्वती का अद्भुत राम प्रेम आनंद की वर्षा करने वाला है। सहजता, सरलता, विनम्रता के साथ धर्म और ज्ञान की खान सदानंद जी शिशु रूप में अयोध्या में प्राण प्रतिष्ठित हो रहे भगवान राम का पलक पांवड़े बिछाकर स्वागत को आतुर हैं। वह मानो उस पल की प्रतीक्षा हर पल कर रहे हैं, जिन शिशु रूप राम की अयोध्या में प्राण प्रतिष्ठा का सपना उनके गुरुदेव जगद्गुरू स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती जी ने देखा था। वह पल अब साकार होने को है, जिसके लिए गुरुदेव ने आंदोलन भी किया था और गिरफ्तारी भी दी थी। और गिरफ्तारी के वक्त जगद्गुरू स्वामी सदानंद सरस्वती जी भी अपने गुरुदेव के साथ थे।
अब वह पल साकार हो रहे हैं। विवादित मुद्दों में मंदिर निर्माण कार्य अधूरा होने की बात‌ करने और मुहूर्त को लेकर सवाल खड़ा करने वालों को जगद्गुरू सदानंद दो टूक जवाब देते हैं कि “अब यह वक्त सवाल करने का नहीं है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी प्राण प्रतिष्ठा का संकल्प ले चुके हैं। विधि विधान से प्राण प्रतिष्ठा की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है। काशी और दक्षिण के आचार्य कार्य संपन्न करा रहे हैं। अब किसी तरह के सवाल करने का कोई वक्त नहीं है।‌ हम सभी को बालरूप में राम की प्राण प्रतिष्ठा का ह्रदय से स्वागत करना चाहिए।‌ यह पल लंबी प्रतीक्षा के बाद साकार हो रहे हैं।” जगद्गुरू सदानंद जी की आंखों में झांककर राम के प्रति प्रेम को देखा जा सकता है। उनके ह्रदय से निकल रही इस वाणी में राम को महसूस किया जा सकता है। और उनके चेहरे की मुस्कान में सनातन के प्रतीक भगवान राम का मान समाया हुआ है। ऐसे सदानंद सरस्वती जी खुद भी सदा राम नाम से आनंदित हैं और सभी धर्मावलंबियों को राम रंग में रंग कर सदा-सदा के लिए आनंदित होने का आशीर्वाद पल भर में दे देते हैं।
चारों पीठों के शंकराचार्य की इस अलौकिक आयोजन में अनुपस्थिति के सवाल पर भी सहजता से जवाब देते हुए शारदापीठ के शंकराचार्य जगद्गुरु सदानंद सरस्वती जी कहते हैं कि, “चारों शंकराचार्य नहीं जा रहे हैं क्योंकि वहां बहुत भीड़ होने वाली है, हमारे साथ हमारे भक्तगण भी जाते हैं। वहां की व्यवस्था में अव्यवस्था न हो इस कारण से हम प्राण प्रतिष्ठा में नहीं जा रहे हैं। लेकिन बाद में सब शंकराचार्य दर्शन करने जाएंगे और हर रामभक्त को अयोध्या में भगवान राम के शिशु रूप में दर्शन करने जाना चाहिए।”
इससे भी आगे जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा प्राण प्रतिष्ठा की बात आती है तो सदानंद जी कहते हैं कि ” हर राजा को धर्म के प्रति समर्पित होना चाहिए और देश के प्रधानमंत्री और राज्यों के मुख्यमंत्री को भी धर्म के प्रति समर्पित होना ही चाहिए। ऐसे में अयोध्या में मोदी द्वारा प्राण प्रतिष्ठा में सहभागिता धर्म के प्रति उनका सदाचरण ही है। इसमें किसी को क्या आपत्ति हो सकती है? उदाहरण भी देते हैं कि सोमनाथ मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा के समय डॉ. राजेंद्र प्रसाद और उप प्रधानमंत्री वल्लभभाई पटेल भी तो शामिल हुए थे।”
ऐसे में शंकराचार्य‌ को सीख देने के लिए उन सभी को यह उदाहरण देकर निराशा ही हाथ लगेगी कि 1951 में सोमनाथ मंदिर पूरा नहीं बना था,सिर्फ गर्भगृह बना था और शिवलिंग स्थापित करके भारत के राष्ट्रपति डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद जी ने उद्घाटन किया था। उसके बाद 1956 में मंदिर का कलश पूर्ण हुआ। सोमनाथ जो इन स्वयंघोषित शंकर अवतार के आराध्य का मंदिर था। वहां एक भी शंकराचार्य नहीं गया था और प्राणप्रतिष्ठा के बाद ही मंदिर बनना शुरु हुआ था। ऐसे उदाहरण देने वालों को जगद्गुरू शंकराचार्य सदानंद सरस्वती जी आइना दिखा रहे हैं और राम की प्रतिष्ठा को विवादों से दूर रखकर खुले मन से इन पलों का स्वागत करने का पाठ‌ पढ़ा रहे हैं। यही सनातन का असली चेहरा है। यही धर्म की सीख है और यही आचरण है जो शंकराचार्य को शीर्ष पर स्थापित करता है। और सदानंद तो प्रत्यक्ष‌ तौर पर आनंद के पर्याय ही हैं।
जगद्गुरू शंकराचार्य स्वामी सदानंद सरस्वती के मन में राम समाए हैं। रामचरित मानस की चौपाईं या दोहे, सोरठा और छंद हों या फिर शास्त्रों में संस्कृत में वर्णित श्लोक, जगद्गुरू के मुख और जिह्वा पर यह सहज ही विद्यमान हैं और उनके ऐसे उपदेश सुनकर श्रद्धालु धन्य-धन्य हो जाते हैं। जगद्गुरू शंकराचार्य स्वामी सदानंद सरस्वती ने भगवान राम को लेकर मुझसे यह दोहा साझा करते हुए आ‌शीर्वचन दिए कि “व्यापक ब्रह्म निरंजन निर्गुण विकट विनोद, सो अज प्रेम भगति वश कौशल्या के गोद।” बालकांड के इस दोहे में तुलसी के अनुसार परमात्मा राम सर्वव्यापक, निर्गुण, निराकार और अजन्मे  हैं। लेकिन प्रेम और भक्ति के वशीभूत होकर वह कौशल्या की गोद में खेल रहे हैं। सदानंद जी सरल शब्दों में समझाते हैं कि जो पैदा नहीं होता और निर्गुण होते हुए भी वह हमारे लिए सगुण हो रहा है। क्योंकि यदि उनका यानि राम का अवतार नहीं होता है तो हम उनका अनुभव ही नहीं कर पाते। क्योंकि हमारी नेत्र इंद्रिय बाह्य का ही दर्शन कर पाती हैं। भगवान राम और देवता तो परोक्ष हैं, हम उनके दर्शन कैसे करें? इसलिए उनका अवतार ही हमारे ज्ञान चक्षु को कृतार्थ करने के लिए है। उनके मुख से राम का यह अद्भुत वर्णन सुनकर मुझे सहज ही यह अनुभूति हुई कि ” हर पल राम के आनंद में डूबे हैं शंकराचार्य स्वामी सदानंद … अयोध्या और राम उनके मन में समाए हैं…।”