बसंत पाल की विशेष रिपोर्ट
शुक्रवार को सप्ताह के आखिरी कारोबारी दिन शेयर बाजार भारी गिरावट के साथ खुले। इससे पहले बुधवार को रिजर्व बैंक द्वारा रेपो रेट बढ़ाने की घोषणा के बाद भी बाज़ार में भारी गिरावट दर्ज की गई थी। आज बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज का 30 शेयरों वाला प्रमुख संवेदी सूचकांक सेंसेक्स 773 अंकों के नुकसान के साथ 54928 के स्तर पर खुला। वहीं, निफ्टी ने भी कारोबार की शुरुआत भारी गिरावट के साथ की। बाद में बाज़ार 1000 अंक तक गिरा था।
भारतीय बाजारों की तरह अमेरिकी शेयर बाजारों को भी वहां के फेड रिजर्व का ब्याज दरें बढ़ाने का फैसला रास नहीं आया। गुरुवार को अमेरिकी शेयर बाजार का प्रमुख संवेदी सूचकांक डाऊ जोंस 3.12 फीसदी यानी 1063 अंक टूट गया। नैस्डैक ने भी 4.99 फीसदी का गोता लगाया और एसएंडपी 153 अंक यानी 3.56 फीसद लुढ़ककर बंद हुआ। इसका असर आज घरेलू शेयर बाजार पर भी दिख रहा है। प्री-ओपनिंग में रिलायंस इंडस्ट्रीज को छोड़ सभी स्टॉक लाल निशान पर थे। सेंसेक्स 773 अंक नीचे था, जबकि निफ्टी 16415 के स्तर पर आ गया था। शुरुआती कारोबार में सेंसेक्स 900 अंकों की भारी गिरावट के साथ 54,801.53 के स्तर पर कारोबार कर रहा था। वहीं, निफ्टी 239.25 अंकों का गोता लगाकर 16,443.40 के स्तर पर कारोबार कर रहा था। सेंसेक्स पर केवल दो स्टॉक हरे निशान पर थे।
महंगाई की चिंता में गिर रहा बाजार
बढ़ती मुद्रास्फीति, ब्याज दरों में वृद्धि, चीन की आर्थिक मंदी और यूक्रेन में युद्ध सहित कई संकटों से इस साल वैश्विक बाजार प्रभावित हुए हैं। वहीं, कमजोर वैश्विक संकेतों को देखते हुए भारतीय शेयर बाजार और रुपया तेजी से गिरे। भारतीय रुपया आज अमेरिकी डॉलर के मुकाबले लुढ़क गया। 76.26 रुपये के पिछले बंद की तुलना में भारतीय मुद्रा डॉलर के मुकाबले 76.64 तक गिर गई।
सिक्योरिटी के रोहित निगम ने कहा, एफओएमसी की बैठक के बाद बुधवार को अमेरिकी बाजारों में राहत की रैली देखी गई, लेकिन बढ़ती ब्याज दरों पर अधिक चिंता के कारण गुरुवार को यह गिर गया। यूके की मंदी की आशंका से पाउंड भी गिर गया। विश्लेषकों का कहना है कि अमेरिकी गैर-कृषि पेरोल डेटा और बेरोजगारी दर की घोषणा आज की जाएगी, जो वैश्विक बाजारों की दिशा तय कर सकती है।
कच्चा तेल 14 साल के उच्च स्तर पर
मुद्रास्फीति की चिंताओं के कारण वॉल स्ट्रीट के बाद एशियाई शेयरों में आज गिरावट आई। वहीं, सऊदी अरब और रूस के नेतृत्व में प्रमुख तेल उत्पादकों द्वारा अपनी सीमित वृद्धि से अधिक उत्पादन उठाने से इनकार करने के बाद कच्चे तेल की क़ीमतों में वृद्धि हुई क्योंकि उन्होंने यूक्रेन युद्ध के कारण तंग आपूर्ति चिंता का विषय है। आज कच्चा तेल 14 साल के उच्चतम स्तर पर पहुँच कर 111 $ पर पहुँच गया।