प्रदेश में होने वाले उप चुनाव हों या आगामी आम चुनाव, चुनावी युद्ध के इस जंगी मोर्चे में कौन झंडे गाड़ने वाला है और किसका तंबू उखड़ सकता है, इसके संकेत महारथियों की सक्रियता को देखकर मिलने लगे हैं। एक तरफ हैं मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और उनकी सेना, दूसरी तरफ प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ एवं उनकी फौज। खास बात यह है कि मंत्रालय से लेकर दिल्ली और प्रदेश के शहरों, कस्बों, गांवों तक शिवराज लगातार सक्रिय हैं। लोगों को लुभाने एवं भाजपा के साथ जोड़ने का अभियान चलाए हुए हैं। सरकारी घोषणाएं कर रहे हैं। अफसरों को लताड़ लगा रहे हैं। कोरोना वैक्सीनेशन में मप्र अव्वल है। दूसरी तरफ कमलनाथ मोर्चे से पूरी तरह नदारद। अलबत्ता, ट्वीटर और बयान जारी करने की जवाबदारी संभालने वाले उनके सिपहसलार जरूर सक्रिय हैं। सितंबर माह में ही कमलनाथ भोपाल में बमुश्किल एक हफ्ते नजर आए, शेष दिन कहा रहे, कोई नहीं जानता। हां, प्रदेश से जुड़ा ऐसा कोई विषय नहीं रहा, जिस पर उनका ट्वीट न आया हो या बयान जारी न हुआ हो। सवाल यह है कि क्या कमलनाथ इस तरह मैदान में डटे शिवराज और उनकी टीम का मुकाबला कर पाएंगे? क्या उन्हें भी मैदान में मोर्चा नहीं संभालना चाहिए?
उल्टा पड़ा आदिवासी नेता को छेड़ने का दांव….
– समय खराब होता है तो कई बार सीधी बात उलटी पड़ जाती है। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता दिग्विजय सिंह को ही लें, वे हिंदू-मुस्लिम और मंदिर-मस्जिद मुद्दे पर जब भी बोलते हैं, भाजपा हमलावर हो जाती है। कांग्रेस को बचाव की मुद्रा में आना पड़ता है। इस बार वे भाजपा के एक आदिवासी नेता को छेड़ने के कारण घिर गए। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के जबलपुर दौरे के दौरान वन मंत्री विजय शाह को शहीद रघुनाथ शाह, शंकर शाह को पुष्पांजलि अर्पित करने से रोक दिया गया था। शाह की वहां मौजूद अफसरों से बहस हुई थी। दिग्विजय ने मौका देखा और विजय शाह को कांग्रेस में आने या भाजपा में रहकर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को हटाने के लिए अभियान चलाने की सलाह दे डाली। बस क्या था, विजय शाह भड़क गए। दिग्विजय सिंह के कार्यकाल में उन्हें जो जख्म दिए गए थे, वे ताजा हो गए। नतीजा, विजय शाह ने दिग्विजय के खिलाफ झंडा उठा लिया। वे हर कार्यक्रम में दिग्विजय को आदिवासी विरोधी ठहरा कर बता रहे हैं कि उनके कार्यकाल में किस कदर उन पर डंडे बरसाए गए थे जबकि वे एक आदिवासी की पुलिस हिरासत में मौत पर न्याय के लिए भाजपा विधायक के नाते आंदोलन कर रहे थे। इसे ही कहते हैं ‘दांव उलटा पड़ जाना।’
उमा उपेक्षा से दु:खी या कुछ मुद्दों पर गंभीर….
– लंबे समय तक राजनीति के शिखर पर रहीं पूर्व मुख्यमंत्री साध्वी उमा भारती इन दिनों चर्चा में हैं। कुछ समय से वे जैसे बयान दे रही हैं, इससे पता लगाना कठिन है कि उमा भाजपा में अपनी उपेक्षा के कारण दु:खी हैं या वास्तव में कुछ मुद्दों को लेकर गंभीर। सच यह है कि उनकी इमेज कह कर पलट जाने वाले नेता की बनती जा रही है। पहले भी उन्होंने शराबबंदी को लेकर बयान दिया था, बाद में कह दिया कि उन्होंने जागरूकता अभियान चलाने की बात कही थी। एक बार फिर उन्होंने समयसीमा निर्धारित कर अल्टीमेटम दे दिया कि यदि शराबबंदी न हुई तो वे अभियान चलाएंगी। शराबबंदी जागरूकता से नहीं, लट्ठ से होगी। बाद में उन्होंने कहा कि मुझे मालूम है कि शराबबंदी से शराब लॉबी भाजपा के खिलाफ खड़ी हो जाएगी। लट्ठ वाले बयान का पार्टी में ही विरोध हो गया। इसी प्रकार उन्होंने ब्यूरोक्रेसी को लेकर आपत्तिजनक बयान दिया। बाद में इससे भी पलट जाना पड़ा। सवाल यह है कि उमा ऐसा क्यों कर रही हैं? क्या वे नहीं जानती कि ऐसे बयान देने और पलट जाने से उनकी साख को बट्टा लग रहा है? इससे अच्छा तो वे फिर मानस प्रवचन करतीं तो अच्छी ख्याति अर्जित कर लेतीं। उनके कंठ में मां सरस्वती जो विराजती हैं।
भाजपा में शक्ति प्रदर्शन की शुरुआत के मायने….
– वजह लोकसभा एवं तीन विधानसभा सीटों के संभावित उप चुनाव हों या भाजपा के अंदर देश भर में चल रहे बदलाव का असर, पार्टी नेताओं के बीच एक बार फिर शक्ति प्रदर्शन की शुरुआत हो गई है। पहला प्रदर्शन तब हुआ था जब प्रदेश से केंद्र में मंत्री बने ज्योतिरादित्य सिंधिया मालवा एवं वीरेंद्र कुमार ग्वालियर, भोपाल, बुंदेलखंड तथा महाकौशल अंचल में जन-आशीर्वाद यात्रा लेकर पहुंचे थे। अब केंद्र में मंत्री बनने के बाद सिंधिया पहली बार ग्वालियर पहुंचे तो खासा शक्ति प्रदर्शन हुआ। इसके लिए उन्हें दूसरे केंद्रीय मंत्री और चंबल-ग्वालियर अंचल के स्थापित भाजपा नेता नरेंद्र सिंह तोमर की मदद लेना पड़ी। उद्देश्य था भाजपा के मूल कार्यकर्ताओं को मैसेज देना कि भाजपा ने सिंधिया को स्वीकार कर लिया है, आप भी करें। हैरानी तब हुई जब केंद्रीय मंत्री तोमर उसी रात 12 बजे भोपाल पहुंचे और हजारों भाजपा कार्यकर्ताओं ने पहुंच कर उनका स्वागत किया। यह भी शक्ति प्रदर्शन जैसा था। तोमर भोपाल आते रहते हैं लेकिन उनके स्वागत में इस तरह कभी भीड़ नहीं जुटी। इधर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के ताबड़तोड़ दौरे जारी हैं। प्रदेश के गृह मंत्री नरोत्तम मिश्रा भी लगातार अपनी ताकत दिखा रहे हैं। लोग इन शक्ति प्रदर्शनों के मायने तलाश रहे हैं।
राकेश की तारीफ, अनूप की जुगलबंदी क्यों….
– प्रदेश भाजपा की दो घटनाएं खास चर्चा में हैं। पहली घटना में जबलपुर पहुंचे केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह भाजपा सांसद राकेश सिंह की जमकर तारीफ कर गए। दूसरी में केंद्रीय मंत्री बनने के बाद पहली बार ग्वालियर पहुंचे ज्योतिरादित्य सिंधिया ने पूर्व मंत्री एवं भाजपा के कद्दावर नेता अनूप मिश्रा को खास अहमियत दी। अमित शाह द्वारा राकेश की तारीफ और अनूप की सिंधिया के साथ जुगलबंदी इस मायने में महत्वपूर्ण है क्योंकि विधानसभा चुनाव में पार्टी की पराजय के बाद राकेश सिंह घर जैसे बैठा दिए गए और अनूप दो-दो बार चुनाव हार कर लूपलाइन में हैं। राकेश सिंह को पहले से मोदी-शाह की पसंद का नेता माना जाता है। इसीलिए उन्हें प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया था। वे भाजपा संसदीय दल के सचेतक भी थे। इधर अनूप मिश्रा पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के भांजे हैं। दोनों नेता उपेक्षित हैं। ऐसे में अमित शाह की तारीफ और सिंधिया के तवज्जो देने से राकेश-अनूप को संजीवनी जैसी मिली है। भाजपा में चल रहे बदलाव के दौर में राकेश-अनूप कहीं एडजस्ट हो पाते हैं या नहीं, इसका इंतजार है।