प्रशासन जनसेवा करे या नेताओं की आवभगत ?

759

मध्यप्रदेश में लोकतंत्र बड़ी तेजी से फल-फूल रहा है. जिलों का प्रशासन जनता की बजाय लोकतंत्र के आधार स्तम्भ नेताओं की आव-भगत में ऐसा व्यस्त है कि उसे जनसेवा करने की ही फुरसत नहीं मिल रही है. मध्यप्रदेश में जनसेवकों की सेवा में लगे प्रशासन के पास जनसेवा की फुरसत ही नहीं है .अफसरों के दफ्तरों में फाइलों का ढेर, पहाड़ की शक्ल अख्तियार कर रहा है.

प्रशासन की दुर्दशा का नजारा देखना हो तो आपको ग्वालियर आना पडेगा. ग्वालियर में मध्य प्रदेश के आधा दर्जन मंत्रियों के अलावा दो केंद्रीय मंत्री भी हैं .इन सबके आये दिन होने वाले दौरे जिला प्रशासन के लिए सर दर्द बन गए हैं .
ग्वालियर संभागीय मुख्यालय है इसलिए यहां संभागीय स्तर के अधिकारियों से लेकर जिला स्तर के अधिकारियों की आफत आ गयी है. प्रशासन और पुलिस के अफसर नेताओं और मंत्रियों की अगवानी और विदाई में ही अपना सारा वक्त जाया कर रहे हैं .उनके पास अपना नियमित काम निबटाने की फुरसत ही नहीं है .

मध्यप्रदेश के तमाम जिलों में नेतागीरी की गतिविधियां प्रदेश में देश साल पहले हुए तख्ता पलट के बाद से ही शुरू हो गयी थीं ,लेकिन हाल ही में केंद्रीय मंत्रिमंडल में ज्योतिरादित्य सिंधिया को शामिल किये जाने के बाद ये गतिविधियां अचानक बढ़ गयीं .स्थिति ये है कि अब ग्वालियर-चंबल अंचल में एक न एक केंद्रीय मंत्री की मौजूदगी हर समय रहती है. इन केंद्रीय मंत्रियों की सेवा में राज्य मंत्रिमंडल के कम से कम आधा दर्जन मंत्री हर समय मौजूद रहते हैं .जब प्रदेश के इतने मंत्री हर हफ्ते पधारते हैं तो पूरा जिला प्रशासन चकरघिन्नी हो जाता है .हकीकत ये है कि अब केबिनेट मंत्रियों के अलावा राज्य मंत्रियों तक को वीआईपी ट्रीटमेंट की दरकार रहती है .प्रभारी मंत्री को मुख्यमंत्री के जैसा लवाजमा चाहिए. जो कम एक सब इंस्पेक्टर और एक नायब तहसीलदार का होता है ,वो काम अब कमिश्नर और आईजी स्तर के अधिकारी कर रहे हैं .किसी में इतना साहस नहीं कि वे मंत्री को मना कर सकें .

ग्वालियर में जब भी कोई केंद्रीय मंत्री आता है उसके समर्थक मंत्री पहले से पहुंच जाते हैं. केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह के पास तो समर्थक मंत्री कम ही हैं लेकिन सिंधिया की अगवानी में कम से कम आधा दर्जन मंत्री रहते ही हैं .प्रभारी मंत्री और बिजली मंत्री तो जैसे कहीं जाते ही नहीं हैं .पहले उपचुनावों की धमाचौकड़ी रही,फिर मंत्रिमंडल का पुनर्गठन और बाद में केंद्रीय मंत्रियों की जन आशीर्वाद यात्रा ने प्रशासन और पुलिस की कमर झुका दी है .हाल ही में सिंधिया की स्वागत रैली ने तो प्रशासन की कमर ही तोड़ दी .

प्रदेश का प्रशासन बैठकों,रैलियों,उद्घाटनों में ही मशगूल रहता है. ग्वालियर में अगले महीने उपराष्ट्रपति आने वाले हैं .उनके दौरे की तैयारियां चल ही रहीं थीं कि इसके पहले केंद्रीय मंत्रियों ने भी अपने दौरे बनाकर प्रशासन को इंतजाम में लगा दिया .अब चूंकि उप राष्ट्रपति आ रहे हैं तो मुख्यमंत्री को भी आना ही पडेगा .प्रशासन हलकान है कि किसके दौरे का इंतजाम करे ? कहाँ से संसाधन लाये.? शहर की सड़कों को चकाचक करे या मंत्रियों के लिए वाहनों का इंतजाम करे ? अक्सर मंत्रियों की एक साथ इतनी भीड़ होती है कि प्रशासन को उनके लिए टैक्सियां दूसरे शहरों से मंगाकर देना पड़ती हैं.मंत्रियों के अंधाधुंध दौरों की वजह से प्रशासन का खर्च और उधारी लगातार बढ़ रही है .

पहले ग्वालियर आने के लिए लालायित रहने वाले अधिकारी अब ग्वालियर के नाम से चमकने लगे हैं .क्योंकि ग्वालियर में काम बाढ़ इतनी है कि अधिकाँश अधिकारी बीमार हो चुके हैं .उनकी हालत सिपाही और पटवारी से भी गयी-गुजरी हो चुकी है .अधिकारी न जनता की सेवा कर पा रहे हैं और न अपने परिवार को वक्त दे पा रहे हैं .अधिकारियों के आवासीय दफ्तरों में लंबित फाइलों की संख्या सैकड़ों की सीमा पार कर चुकी हैं .यानि अधिकाँश प्रशासन पंगु है.

नेतानगरी बन जाने के कारण ग्वालियर में स्थानीय निकायों के तमाम संसाधन अब कम पड़ने लगे हैं. पूरा शहर अनाथ नजर आने लगा है. विकास के नाम पर शुरू किये गए तमाम काम धन के अभाव में अधूरे पड़े हैं.शहर की उखड़ी सड़कों की वजह से वायु प्रदूषण खतरे की सीमा को पार कर चुका है .होर्डिंग और बैनरों से पटे शहर की दुर्दशा देखकर दया आती है.रही -सही कसर नेता पुत्रों ने पूरी कर दी है.उनके जन्मदिन के बैनर और पोस्टर शहर को कुरूप बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ते. नेता अपने पुत्रों की इस हरकत को बाल सुलभ मानते हैं इसलिए उन्हें हड़काने या हतोत्साहित करने के बजाय और प्रोत्साहित करते हैं .

नेता पुत्रों के होर्डिंग लगवाकर स्वार्थी लोग पुत्रों को पुल बनाकर सत्ता के नजदीक पहुँचने की कोशिश करते हैं .ग्वालियर में आकर्षण के केंद्र जयविलास पैलेस के चरों मुख्यद्वारों पर सिंधिया भक्तों ने स्थायी होर्डिंग लगवा दिए हैं ,ताकि उनके आराध्य जब भी महल में प्रवेश करें अपने भक्तों की कागजी उपस्थिति देखकर प्रसन्न रह सकें .ये होर्डिंग देखकर स्थानीय नागरिक तो ठीक है सैलानी तक भौंचक नजर एते आते हैं .क्योंकि ये नए जमाने की नयी राजनीति जो है .

पूरे मध्यप्रदेश में नेतागीरी की वजह से प्रशासन के दुरूपयोग और जनता की उपेक्षा का ग्वालियर एक उदाहरण भर है,लेकिन स्थिति सब दूर एक जैसी है .मुख्यमंत्री असहाय है.वे केंद्रीय मंत्रियों की बैशाखी पर हैं .मुख्यमंत्री को कठपुतली की तरह केंद्रीय मंत्रियों के सामने नर्तन करना पड़ रहा है .दुर्भाग्य ये है कि मीडिया भी बदसूरत होते शहरों को देखकर अपनी आँखें बंद किये हुए हैं .उनके चेहरे भी शहरों की तरह विज्ञापनों से बदसूरत हो चुके हैं .अब राजनीति में शुचिता तो दूर की बात है उसमें प्रदूषण लगातार बढ़ रहा है .किस्से सैकड़ों हैं .आप पढ़ते रहिये,हम लिखते रहेंगे .