Shri Amrit Lal Nagar: बाबूजी को याद कर रही हैं, निकाह और बागबान जैसी हिट फिल्में लिखने वालीं उनकी बेटी डॉ .अचला नागर

महान साहित्यकार श्री अमृत लाल नागर की 107वीं जन्मतिथि पर विशेष

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Shri Amrit Lal Nagar: बाबूजी को याद कर रही हैं, निकाह और बागबान जैसी हिट फिल्में लिखने वालीं उनकी बेटी डॉ .अचला नागर

आज महान साहित्यकार श्री अमृत लाल नागर जी का जन्म दिवस है, अमृत लाल नागर का जन्म 17 अगस्त 1916 ई0 को आगरा (उत्तर प्रदेश) में एक गुजराती ब्राह्मण परिवार में हुआ। आपके पिता का नाम राजाराम नागर था। आपके पितामह पं. शिवराम नागर 1895 से लखनऊ आकर बस गए थे। आपकी पढ़ाई हाईस्कूल तक ही हुई। फिर स्वाध्याय द्वारा साहित्य, इतिहास, पुराण, पुरातत्व व समाजशास्त्र का अध्ययन। बाद में हिन्दी, गुजराती, मराठी, बंगला, अंग्रेजी पर अधिकार। पहले नौकरी, फिर स्वतंत्र लेखन, फिल्म लेखन का खासा काम किया। ‘चकल्लस’ का संपादन भी किया। आकाशवाणी, लखनऊ में ड्रामा प्रोड्यूसर भी रहे।1932 में निरंतर लेखन किया।

गोरा-चिट्टा रंग, स्वस्थ सुगठित शरीर, मुख में पान, आँखों में भांग के डोरे, कानों तक लटकते बाल- यह था श्री अमृतलाल नागर का व्यक्तित्व, अत्यन्त हँसमुख एवं मधुरभाषी थे. संक्षेप में नागरजी प्रियदर्शी एवं पीयूषवर्षी थे.नागरजी के रहन-सहन और आचार-व्यवहार में लखनवी नजाकत और नफासत घुल-मिल गई थी. नागरजी के व्यक्तित्व का यह स्वरूप उनके उपन्यासों में भी झाँकता हुआ दिखाई देता है.एक लेखक के शब्दों में, “यदि यह कहा जाए कि नागरजी लखनवी सभ्यता और संस्कृति के प्रतिनिधि थे, तो अतिशयोक्ति नहीं होगी.”

कुछ किस्से सोशल मिडिया पर याद कर रही है,हिंदी साहित्य के महान लेखक अमृतलाल नागर की पुत्री डॉ अचला नागर.जिन्हें बचपन से ही लिखने-पढ़ने का शौक था.साल 1982 की सुपरहिट फिल्म निकाह, आखिर क्यों, बागबान, बाबुल, ईश्वर, मेरा पति सिर्फ मेरा है, निगाहें, नगीना, सदा सुहागिन जैसी अनेकों फिल्मों की उन्होंने कहानी और पटकथा लिखी। आइये अचलाजी के वे संस्मरण हम यहाँ दे रहे है ,उनकी फेसबुक वाल से साभार .

पद्मभूषण अमृतलाल नागर जी Padmabhooshan Amritlal Naagar jee

किस्सा एक

“तीन चौथाई अमृत लाल नागर मेरी पत्नी प्रतिभा है “
जब भी बाबूजी का गुणगान होता वह यही बात कहते ,जो पूरी तरह से सच भी है।
गुड्डे गुडि़या जैसी 5 और 3 वर्ष की आयु में इन दोनों की सगाई हो गयी थी ,और ,15 व 13 में विवाह। पहली भेंट में ही जो बाबूजी , 12वर्ष  की आयु में तय कर चुके थे कि वह लेखक ही बनेंगे ये बात उन्होंने बा से कहीं ,तो ये जाने बिना कि लेखक क्या होता है ,
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( बा ने बताया था ) उन्होंने कहा ,”ठीक है मैं आपके साथ हूं “
पूरे पचपन वर्षों के साथ में बाबूजी बस लिखते रहे , और बा उनके पानदान से ले कर खानदान की जुगाड़ों में ही लगी रहीं। बाबूजी नहीं जानते थे वह घर कैसे चला रही हैं वह ।बाबूजी के कपड़े चकाचक तैयार रखना ,चप्पलें चमका के रखना , पान के बिलहरे में हर रोज़ लगभग सौ पान रखना ( बा की गोरी उंगलियां स्थायी रूप से कत्थई पड़ चुकी थीं ) जेब में पैसे रखना. .. यहां तक कि उनकी छड़ी तक चुन के रख देती थीं जिनका बाबूजी को युवावस्था से ही शौक रहा और जिनके अलग अलग नाम उन्होंने रख छोड़े थे. .. .नाज़ुक महल ,मोतीमहल आदि। बा द्वारा बाबूजी को पंखा झलते रसोई जिमाने का दृश्य तो मैं भूल ही नहीं सकती।
एक् बार थकी झुंझलाई बा के मुंह से निकल गया “तुम्हें लिखने के सिवाय आता ही क्या है “
बाबूजी चिढ़ कर बोले , “बताओ क्या काम है “
” बाहर जाओ तो रेडियो का चैक बेंक में डाल देना।” बाबूजी चैक ले कर बेंक चले गये।
थोड़ी ही देर में बेंक का चपरासी हाथ में चेक लिये आया बोला ” बहूजी बाबूजी से सायद ग़लती से ई चेक गिर गवा रहा ऊही देने आये रहे “

किस्सा दो 

जिसे बाबूजी कह्ते थे. .. .अचलकुमार,बा कहती थीं .. .. अच्चू ॥ तब वो ” शिवाजी पार्क बम्बई में रहती थी. .. रोड न. 2 के हर घर की लाड़ली. .सब उसके पसंदीदा पकवानों के साथ उसकी बाट जोहते रहते ..और मौका मिलते ही “म्याऊं ” ग़ायब. .. घरवाले माटुंगा तक ढूंढ़ने निकल पड़ते. .जब पकड़ी जाती, बा से पिटाई 😌 बड़ी जिज्ञासु भी थी ये लड़की, एक् शाम सड़क पार कर के अपने प्यारे ‘ बीच ‘ पर अकेली पहुंच गई. .. सोचने लगी ये समंदर कितनी दूर तक जाता होगा 😎वो किनारे खड़ी मछुवारे की एक् डोंगी में बैठी, और चल पड़ी समुद्र नापने. .. तभी शोर मच ग्या , शायद मछुवारा ही रहा होगा जो लहरों में उतरा और डोंगी किनारे ले आया. .. उस दिन पहले तो बा ने कूटा. .फिर सीने से लगा कर ख़ूब रोईं. .अपने हाथ से खाना खिलाया. .. और फिर बढई बुला कर ऊपर वाली सिटकनी लगवा कर चैन की सांस ली.
फ़ोटो के बारे में कोई जानकारी नहीं दी गई है.

किस्सा  तीन 

हर पल , हर दिन. .. सदा मां के लिये अपनी संतान से बढ़ कर कुछ भी सुंदर नहीं. . .. मां को और कुछ नहीं चाहिये अपने बच्चे की सलामती और खुशियों के सिवाय. .. . मेरी मां. .मेरी बा असंख्य बच्चों की मां थीं। स्वंय बस छठी तक पढाई कर सकीं , पर बाबूजी और परिवार को भोजन बना कर खिलाने के बाद गली के अनपढ़ बच्चों को अक्षर ज्ञान से ले कर पांचवीं तक की पढ़ाई करवातीं और स्कूल में भर्ती करवा देतीं ,थोड़ी बड़ी लड़कियों को कपड़ों की कटाई सिलाई सिखातीं. .. बिना एक भी पैसा लिये।
अमृतलाल नागर की कहानी- फिर प्रायश्चित - Story- Phir Prayashchit Written By Amritlal Nagar - Amar Ujala Hindi News Live
पद्मभूषण अमृतलाल नागर जी Padmabhooshan Amritlal Naagar jee
जब बा बाहर निकलतीं तो रास्ते भर ‘ बाजी नमस्ते ” सुनाई पड़ता रहता। बड़े हो चुके बच्चों को अगर बा ना पहचान पातीं तो बच्चे उन्हें अपना नाम बता याद दिला देते. .. .. ये सब तो था ही , पर उनका सबसे बड़ा काम पति सेवा था. .. .इसीलिये तो बाबूजी निश्चिंत हो कर लिख पाते थे और मेरी बा
को “तीन चौथाई अमृतलाल नागर,” कहते थे. .. बा यूँ तो रोज़ ही याद आती हैँ , पर आज के दिन पूरी दुनियां अपनी माताओं का स्मरण कर रही है , इसलिये सब के साथ मैं भी , आपको बाबूजी के साथ ही याद कर रही हूँ उन्हें पूरा करते हुए ।पगेलागूं बा _बाबूजी
फ़ोटो के बारे में कोई जानकारी नहीं दी गई है.
       डॉ .अचला नागर