Silver Screen:परदे से खिसककर अब हाशिये पर आ गई दिवाली!
हिंदी सिनेमा के पर्दे पर भी दिवाली का उजास कथानकों और गीतों से अनछुआ नहीं रहा! कुछ फिल्मों के गीतों व दृश्यों में दिवाली काफी अहम रही! कभी कथानक के महत्वपूर्ण दृश्य दिवाली की पृष्ठभूमि पर फिल्माए गए, तो कभी गीतों में दिवाली का उजास, खुशियां और भव्यता स्पष्ट दिखाई दी। सिनेमा में जिन त्यौहारों को कभी खुशी गम प्रकट करने का माध्यम बनाया जाता है, उसमें दिवाली भी उल्लेखनीय है। किंतु, कुछ समय से परदे से दिवाली का उजास कम हो गया। दिवाली के दृश्यों और गानों से बॉलीवुड ने किनारा कर लिया। विषयवस्तु में भी अब काफी बदलाव आ गया है।
दीपों के पर्व दिवाली पर प्रदर्शित फिल्मों की सफलता लगभग सुनिश्चित रहती थी। लेकिन, हाल के सालों में बड़े पर्दे पर इस त्यौहार को कम ही स्थान मिला। दूसरे त्योहारों के मुकाबले सिनेमा के परदे पर दिवाली के पटाखे कम ही फूटते हैं। ब्लैक एंड व्हाइट के ज़माने से परदे पर दिवाली का उजियारा छाता रहा। लेकिन, धीरे-धीरे परदे से दिवाली गायब होने लगी। फिल्मों का स्वरूप और दर्शकों का नजरिया बदलने से अब दिवाली के प्रसंगों को पहले की तरह शामिल नहीं किया जाने लगा! फिर भी साल, दो साल में एकाध फिल्म तो ऐसी आ ही जाती है, जिसमें दिवाली के दृश्य या गीत दिखाई या सुनाई पड़ते हैं। जबकि, गुज़रे जमाने की कई फिल्में दिवाली के आसपास ही घूमती रहती थी।
सिनेमा के परदे पर त्यौहारों का मनाया जाना, बिकाऊ पटकथा की मांग पर निर्भर हो गया! फिल्मकार नई शैली के साथ प्रयोग करके कुछ नया करना चाहते हैं। वे बॉलीवुड के वैश्विक पटल पर पहुंचने के साथ वैश्विक सिनेमा के प्रशंसकों को लुभाने वाले विषयों पर फिल्म बनाने की कोशिश में लगे रहते हैं। हर त्यौहार का बॉलीवुड कनेक्शन होता है। हमारी परंपराओं, व्रत-त्यौहारों को गीतों या फिल्मों के कथानक में पिरोकर दिखाया जाता रहा है। होली तो बॉलीवुड का सदाबहार त्यौहार है, लेकिन दीवाली कभी परदे का पसंदीदा त्योहार नहीं बन पाया। दिवाली पर प्रदर्शित फिल्मों की सफलता लगभग सुनिश्चित मानी जाती है! किंतु, हाल के सालों में फिल्मों में ये त्यौहार लगभग भुला दिया गया। जयंत देसाई के निर्देशन में 1940 में आई ‘दिवाली’ इसी परम्परा की फिल्म थी! इसके बाद 1955 में गजानन जागीरदार की ‘घर घर में दिवाली’ और इसके सालभर बाद 1956 आई में दीपक आशा की ‘दिवाली की रात’ में भी दिवाली को विषय वस्तु बनाकर फिल्म बनाई गई थी।
इसके बाद फ़िल्मो में गाहे-बगाहे दिवाली के प्रसंगों को जोड़ा तो गया, लेकिन इस त्यौहार को केंद्र में रखकर फ़िल्में बनाना लगभग थम सा गया। जिन फिल्मों में दिवाली के दृश्यों को प्रमुखता से शामिल किया गया, उनमें 1961 में आई राज कपूर, वैजयंती माला की ‘नजराना’ थी! इस फिल्म में ‘मेले है चिरागों के रंगीन दीवाली है’ गीत लता मंगेशकर ने गाया था। यह ब्लैक एंड व्हाइट दौर की खुशनुमा दीवाली का गीत है। इस गीत की खासियत है कि शुरू से अंत तक इसमें दीवाली की आतिशबाजी और भरपूर रोशनी नजर आती है। यह गीत आज भी देखने पर जीवंत नजर आता है। 1962 में आई ‘हरियाली और रास्ता’ में भी दिवाली के दृश्यों में नायक, नायिका का विरह दर्शाया गया था। वैजयंती माला दिलीप कुमार की ‘पैगाम’ और ‘लीडर’ में दिवाली के जरिए फिल्म के किरदारों को जोड़ने का प्रयास किया था। 1972 में ‘अनुराग’ में भी आपसी भरोसे और विश्वास को दिवाली से जोड़कर दर्शाया था। इसमें कैंसर से जूझ रहे बच्चे की अंतिम इच्छा पूरी करने के लिए पूरा मोहल्ला दिवाली मनाने में जुट जाता है।
दीवाली के पटाखों के धमाकों के बीच गोलियों की आवाज दबाकर पूरे परिवार के खत्म करने का दृश्य अमिताभ को सितारा बनाने वाली फिल्म ‘जंजीर’ में प्रभावशाली ढंग से फिल्माया किया गया था। फिल्म का ये दृश्य नायक अमिताभ को सपनों में हमेशा दिखाई देता है। कमल हासन की 1998 में आई ‘चाची 420’ में कमल हसन की बेटी के दिवाली के दिन पटाखों से घायल होने का प्रभावशाली दृश्य था। आदित्य चोपड़ा की ‘मोहब्बतें’ (2000) में दिवाली काफी अहम् थी। करण जौहर की 2001 में आई मल्टी स्टारर सुपरहिट फिल्म ‘कभी खुशी कभी गम’ का टाइटल सांग असल में एक दीवाली गीत है। जिसमें जया बच्चन दीवाली की पूजा करते हुए यह गाती है! पारंपरिक वेशभूषा और दमकती रोशनी से इस गीत की पृष्ठभूमि में दीवाली का भरपूर उजास नजर आता है।
दिवाली को पृष्ठभूमि में रखते हुए तैयार किए कुछ गानों को भी अपार लोकप्रियता हासिल हुई। इन गीतों में ‘नजराना’ का गीत ‘एक वो भी दीवाली थी’ ‘शिर्डी के साईं बाबा’ का गीत ‘दीपावली मनाई सुहानी’ के अलावा ‘खजांची’ का आई दीवाली आई, कैसी खुशहाली लाई, ‘पैगाम’ का दीवाली गीत ‘कैसे मनाएं हम लाला दिवाली’ और कुछ साल पहले गोविंदा अभिनीत फिल्म ‘आमदनी अठन्नी खर्चा रुपैया’ का गाना ‘आई है दिवाली, सुनो जी घरवाली’ दिवाली को केंद्र में ही रखकर रचे गए गीतों में थे। एसडी बर्मन के संगीत से सजी फिल्म ‘जुगनू’ फिल्म का गीत ‘छोटे नन्हे मुन्ने प्यारे प्यारे रे’ अपने समय में बेहद लोकप्रिय हुआ था। इसके अलावा ‘नमक हराम’ का राजेश खन्ना और अमिताभ पर फिल्माया गीत ‘दिये जलते हैं फूल खिलते हैं’ अपने बेहतरीन फिल्मांकन के लिए दर्शकों को आज भी याद है।
फिल्मों में दिवाली को लेकर कुछ ऐसे यादगार सीन भी फिल्माए गए जो अप्रासंगिक होते हुए भी दर्शकों को हमेशा याद रहते हैं। संजय दत्त अभिनीत फिल्म ‘वास्तव’ (1999) अपने समय की हिट फिल्मों में से एक है। इसमें दिवाली का यादगार सीन है। फिल्म में गैंगस्टर संजय दत्त दिवाली के मौके पर अपने घर आते हैं! अपने गले में सोने की मोटी चेन, एक हाथ में पिस्टल और दूसरे में नोटों की गड्डी के साथ मां के सामने कहते हैं ‘इसे 50 तोला बोलते हैं।’ इसी तरह चेतन आनंद की 1965 में आई फिल्म ‘हकीकत’ में भी दिवाली का प्रसंग था। भारत और चीन के बीच 1962 में हुए युद्ध पर आधारित इस फिल्म के एक दृश्य में दिवाली के दिन फिल्म के अभिनेता जयंत देश के जवानों को एक संदेश भेजते हैं, जो बेहद मार्मिक होता है।
‘हकीकत’ में दिवाली पर दर्द भरा गीत भी फिल्माया गया, जिसके बोल थे ‘आई अब के साल दीपावली, मुंह पर अपने खून मलें।’ 1973 में आई फिल्म ‘जुगनू’ में दिवाली पर एक गीत है, जिसके बोल थे ‘दीप दिवाली के झूठे, रात जले सुबह टूटे, छोटे-छोटे नन्हे-मुन्ने, प्यारे-प्यारे रे, अच्छे बच्चे जग उजियारे रे!’ यह गीत धर्मेंद्र पर फिल्माया था, जिसमें वे यह बताने की कोशिश करते हैं कि दुनिया में असल उजास अच्छे बच्चों के कारण है। 2005 में रिलीज हुई फिल्म ‘होम डिलेवरी’ ज्यादा नहीं चली, लेकिन फिल्म का गीत ‘मेरे तुम्हारे सबके लिए हैप्पी दिवाली’ ने लोगों के बीच लोकप्रिय किया। 2007 में आयी फिल्म ‘तारे जमीन पर’ में आमिर खान के अलावा बाल कलाकार दर्शील सफारी ने जबरदस्त अभिनय किया था। इसमें दिखाया था कि दर्शील को बोर्डिंग स्कूल में परिवार की याद आती है। जबकि, उसके आसपास के लोग अपनी खुशी के लिए दिवाली मनाते हैं।
फिल्म ‘वास्तव’ (1999) में भी दिवाली का यादगार सीन है। इसमें गैंगस्टर संजय दत्त दिवाली पर घर आता है। गले में सोने की मोटी चेन, हाथ में पिस्टल और दूसरे में नोटों की गड्डी मां के सामने बोलता हैं ‘इसे 50 तोला बोलते हैं।’ चेतन आनंद की फिल्म ‘हकीकत’ (1965) में भी दिवाली का उल्लेख है। भारत और चीन के बीच 1962 में हुए युद्ध के एक दृश्य में दिवाली के दिन अभिनेता जयंत देश के जवानों को एक बेहद मार्मिक संदेश भेजते हैं। 1973 की फिल्म ‘जुगनू’ में दिवाली पर एक गीत है, जिसके बोल थे ‘दीप दिवाली के झूठे, रात जले सुबह टूटे, छोटे-छोटे नन्हे-मुन्ने, प्यारे-प्यारे रे, अच्छे बच्चे जग उजियारे रे!’ यह गीत धर्मेंद्र पर फिल्माया था। 2005 में आई फिल्म ‘होम डिलेवरी’ का गीत ‘मेरे तुम्हारे सबके लिए हैप्पी दिवाली’ था।
हेमंत पाल
चार दशक से हिंदी पत्रकारिता से जुड़े हेमंत पाल ने देश के सभी प्रतिष्ठित अख़बारों और पत्रिकाओं में कई विषयों पर अपनी लेखनी चलाई। लेकिन, राजनीति और फिल्म पर लेखन उनके प्रिय विषय हैं। दो दशक से ज्यादा समय तक 'नईदुनिया' में पत्रकारिता की, लम्बे समय तक 'चुनाव डेस्क' के प्रभारी रहे। वे 'जनसत्ता' (मुंबई) में भी रहे और सभी संस्करणों के लिए फिल्म/टीवी पेज के प्रभारी के रूप में काम किया। फ़िलहाल 'सुबह सवेरे' इंदौर संस्करण के स्थानीय संपादक हैं।
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