Silver Screen: एक ये राजू … और वो राजू, सभी रहे बेमिसाल!

810

Silver Screen: एक ये राजू … और वो राजू, सभी रहे बेमिसाल!

कुछ दिनों से राजू नाम का ढाई अक्षर खासी चर्चा में है। देखा जाए तो राजू नाम सामान्य भारतीय या आम आदमी का पर्याय या परिचायक है। राजू भैया भी हो सकता है और राजू चाचा भी। राजू हमारे आसपास रहने वाला कोई नटखट बच्चा भी हो सकता है और संजीदा इंसान भी! समाज में हमें राजू मैकेनिक भी मिल जाएंगे, राजू ड्राइवर, राजू हलवाई और राजू चाय वाला भी मिल जाएगा। मतलब सिर्फ इतना है कि ‘राजू’ आम और साधारण भारतीय का सहज सुलभ प्रतिनिधि नाम है। समाज के इसी प्रतिनिधि नाम को सिनेमा में भी खासी जगह मिली और खूब मिली। फिल्मों में भी ‘राजू’ बेहद सामान्य नाम है। कई फिल्मों के नायकों के नाम ‘राजू’ रखे गए। ऐसा ही एक नाम स्टैंडअप कॉमेडियन राजू श्रीवास्तव का भी था, जो 42 दिन की नीम बेहोशी के बाद दुनिया से विदा हो गए।

Silver Screen: एक ये राजू ... और वो राजू, सभी रहे बेमिसाल!

इसलिए कहा जा सकता है कि सिनेमा में एक राजू था जो मंच से लोगों को हंसाने में सिद्धहस्त था! दूसरा राजू था क्लासिक फिल्म ‘गाइड’ का राजू गाइड यानी देव आनंद, तीसरा राजू था जिस देश में गंगा बहती है, मेरा नाम जोकर और दो उस्ताद जैसी कई फिल्मों का महान कलाकार राजू राज कपूर! इसके अलावा आज की फिल्मों के दौर में भी एक राजू परदे पर खूब छाया, जो है ‘राजू बन गया जेंटलमेन’ जैसी फिल्म का राजू यानी शाहरुख़ खान। ये जितने भी राजू हैं, सभी अपनी जगह बेमिसाल रहे। एक लोगों को हंसाने में और बाकी तीनों को अपनी अदाकारी से दर्शकों का मन बहला कर मनोरंजन करने में महारत रही।


Read More… Silver Screen: शहनाई, सारंगी, ढपली और सितार सिने संगीत में लाए बहार! 


राज कपूर के राजू रूप धरकर में कई फिल्मों में किरदार निभाए। पहली बार उन्होंने ‘आशियाना’ में राजू का किरदार निभाया था। उसके बाद पापी, दो उस्ताद, जिस देश में गंगा बहती है। गिना जाए तो छह फिल्मों में राज कपूर के नाम ‘राजू’ रहे। उन्होंने आत्मकथ्य के रूप में ‘मेरा नाम जोकर’ बनाई जिसमें राजू एक जोकर, एक शोमैन, एक तमाशबीन बना और उसके बाद मर गया। इसके बाद वे फिर कभी परदे पर राजू बनकर दिखाई नहीं दिए। अपने राजू किरदार की मौत के बाद वे अपनी निर्देशित किसी फिल्म में अदाकारी करते परदे पर नहीं आए! ‘मेरा नाम जोकर’ के राजू किरदार के रूप में उन्होंने अपनी अंतिम कहानी दर्शकों को दिखाई थी।

Silver Screen: एक ये राजू ... और वो राजू, सभी रहे बेमिसाल!

60 के दशक में जब जब राज कपूर का जादू चलता था, उन्होंने ‘राजू’ नाम से एक खास चरित्र को परदे पर जन्म दिया। ये ऐसा राजू था, जिसका दिल इतना कोमल था कि वो दूसरों का दुःख देखकर रोने लगता था। परदे के इस राजू में नायक का हमेशा नायकत्व का भाव रहा। इसलिए कि राजू उसके जीवन का एक महत्वपूर्ण अंग था और यही प्रेम उसे संबल देता और चेताता रहता। इससे वह बुराई के रास्ते पर एकदम अंधा होकर ही न चलता जाए। प्रेम ने उसके लिए हमेशा चेतना का काम किया।


Read More… SIlver Screen:’बॉयकॉट’ नया शब्द, पर फिल्मों के विरोध का इतिहास पुराना! 


दूसरा राजू था हर दिल अजीज कलाकार देव आनंद, जिसने विजय आनंद की क्लासिक फिल्म ‘गाइड’ में राजू गाइड की भूमिका निभाई। ये फिल्म 1966 में रिलीज हुई थी। 1967 के फिल्म फेयर अवार्ड में 9 नामांकन पाकर 7 पुरस्कार जीतने में सफल रही। इस फिल्म को आज भी अपने समय काल से आगे की फिल्म कहा जाता है। इसलिए कि फिल्म की नायिका विवाहित होते हुए गैर मर्द से प्रेम करती है, बल्कि अपने पति को सच बता भी देती है। इस फिल्म का डायलॉग था ‘मैं बेवफाई करूंगी मार्को तो खुले आम, काम का बहाना करके घने जंगल में चुपके से नहीं!’ नवकेतन और देव आनंद की यह पहली रंगीन फिल्म थी, जिसका बजट भी तब के हिसाब से बहुत बड़ा था।

Silver Screen: एक ये राजू ... और वो राजू, सभी रहे बेमिसाल!

पहले इस फिल्म का निर्देशन चेतन आनंद करने वाले थे। लेकिन, वे उनकी आदत थी, कि वे किसी की सुनते नहीं थे। फिल्म की हीरोइन वहीदा रहमान को लेकर भी उन्हें आपत्ति थी। चेतन आनंद चाहते थे, कि फिल्म की नायिका लीला नायडू बने। लेकिन, देव आनंद की भी जिद थी, कि रोजी मार्को के किरदार में वहीदा रहमान ही काम करेगी। इस बीच चेतन आनंद को ‘हकीकत’ के निर्देशन की जिम्मेदारी मिली और फिर ‘गाइड’ का निर्देशन विजय आनंद के जिम्मे आ गया। ‘गाइड’ को हिंदी सिनेमा का टर्निंग प्वाइंट भी माना जाता है, जिसने फिल्मों को परंपरागत कथानक से अलग राह दिखाई।

Silver Screen: एक ये राजू ... और वो राजू, सभी रहे बेमिसाल!

इस फिल्म की कहानी की विशेषता थी, कि इसमें कोई नायक और खलनायक नहीं था। फिल्म की कहानी सिर्फ राजू गाइड पर केंद्रित थी, जिसे नर्तकी नलिनी उर्फ रोजी के साथ अमानत में खयानत करने पर सजा मिलती है। जेल से रिहाई के बाद राजू गरीबी, निराशा, भूख और अकेलेपन की वजह से इधर-उधर भटकता है। एक दिन साधुओं की टोली के साथ राजू एक छोटे से गाँव के पुराने मंदिर में सो जाता है। सुबह मंदिर से निकलने से पहले एक साधु सोते हुए राजू पर पीताम्बर वस्त्र ओढ़ा देता है। गांव का एक किसान पीताम्बर ओढ़कर सोते हुए राजू को साधु समझ लेता है। गांव वाले भी उसे साधु मान लेते हैं। उसे अपनी समस्याएं बताते हैं और संयोग से वे हल भी होती है। अब राजू को उस गांव में स्वामीजी के नाम से जाना जाने लगता है। लेकिन, गांव के पंडितों से उसके मतभेद भी हो जाते हैं। गांव वालों को एक कहानी सुनाते हुए राजू उनको एक साधु के बारे में बताता है कि एक बार एक गांव में अकाल पड़ गया था और उस साधु ने 12 दिन तक उपवास रखा और उस गांव में बारिश हो गई।

Silver Screen: एक ये राजू ... और वो राजू, सभी रहे बेमिसाल!

फिल्म की कहानी फ्लैशबैक में चली जाती है। रोजी का पति पुरातत्व शास्त्री है, राजू उसका गाइड बनकर जान लेता है कि उसे अपनी पत्नी से कोई स्नेह नहीं है। उसका प्रेम किसी और के साथ चल रहा है। वह एकाकी जीवन बिता रही रोजी की तरफ दोस्ती का हाथ बढ़ाता है और उसके भीतर छुपे कुशल नर्तकी के हुनर को पंख फैलाकर उड़ने में मदद करता है। इसके बाद कहानी में ऐसे मोड़ आते हैं कि दर्शक बंधा रह जाता है। ‘गाइड’ को इसकी मैकिंग के लिए हिंदी सिनेमा में क्लासिक का दर्जा मिला है। आरके नारायण की साहित्यिक कहानी को विजय आनंद ने फिल्मी स्क्रिप्ट में जिस तरह बदल दिया था, वो भी अनूठी बात थी।

‌ इन सभी राजू की राख से पैदा हुआ है आज का राजू यानी उसका चालाक और धूर्त संस्करण। यह अब राजू जेंटलमैन का लबादा ओढ़कर राज के नाम से परदे पर अवतरित हुआ है। यह कभी राज मल्होत्रा तो कभी राज सिंघानिया बनकर एक-दो नहीं सात बार राजू या राज बना! शाहरुख़ खान ने राजू बन गया जेंटलमैन, दिल वाले दुल्हनिया ले जाएंगे, बादशाह, मोहब्बतें, चलते-चलते, हे बेबी और ‘रब ने बना दी जोड़ी’ में अवतरित हो चुका हैं। परदे के सभी राजू और राज से नया राजू मेल नहीं खाता! क्योंकि, ये राज कपूर या देव आनंद की तरह दर्शकों के दिल में नहीं उतरता! इसलिए कहा जा सकता है कि एक राजू वह राज कपूर था, जिसके होठों पे सच्चाई और दिल में सफाई रहती थी। यह राजू इस दुनिया से रुखसत होकर पैदल ही खुदा के पास यह कहकर चला गया कि न हाथी है न घोड़ा है, वहाँ पैदल ही जाना है।‌

दूसरा राजू वह था जिसने ‘गाइड’ यानि मार्गदर्शक बनकर शादी के अनचाहे बंधन में बंधी नारी के बंधन तोड़कर न केवल एक दिशाहीन नारी के पैरों में पायल बांधी, बल्कि इस देश के उन भोले-भाले लोगों की आस्था को जीवित रखा, जो मानते थे कि अगर कहीं भगवान है तो वह अपने बंदों की जरूर सुनता है। वह राजू गाइड भी चला गया। क्योंकि, अब भगवान के होने या न होने के फैसले आस्था से नहीं अदालतों से किए जाते हैं। तीसरा वह राजू था, जिसने हंसते-हंसाते कई नेताओं, अभिनेताओं और स्वामियों के चेहरों से मुखौटे उतारे। यह राजू अभी-अभी नश्वर संसार को छोड़कर चल बसा! क्योंकि, आज समाज में राजू का निश्चछल रूप बदल जो गया है। असली राजू चले गए, पर हमारी यादों में वे हमेशा जिंदा रहेंगे! क्योंकि, आम आदमी का प्रतिनिधि ‘राजू’ कभी नहीं मरता।