Kanpur: कानपुर के Divisional Commissioner रह चुके आईएएस अधिकारी मोहम्मद इफ्तिखारुद्दीन की एसआईटी जांच में जो तथ्य सामने आ रहा है उससे पता चलता है कि वो अपने कमिश्नर कार्यालय का इस्तेमाल धर्मांतरण को बढावा देने के लिए करते थे। मसलन, कानपुर मेट्रो के लिए भूमि अधिग्रहण के दौरान उन्होंने कई लोगों को इस्लाम कबूल करवा दिया।
उत्तर प्रदेश के वरिष्ठ पत्रकार संजय तिवारी की फ़ेसबुक पोस्ट के अनुसार इस्लामिक दावत देने के लिए उनके आसपास एक मौलवियों का गिरोह रहता था जिसे वो मौके के हिसाब से लोगों को कन्वर्ट करने के लिए भेजते थे। कानपुर मेट्रो जमीन अधिग्रहण के दौरान भी उन्होंने कई अवैध निवासियों को ये लालच दिया कि तुम तो अवैध भूमि पर रह रहे हो। सरकारी मुआवजा तो मिलेगा नहीं, अगर इस्लाम कबूल कर लो वक्फ बोर्ड से जमीन और पैसा दोनों दिलवा दूंगा।
अपने धर्मांतरण का मिशन आगे बढाने के लिए उन्होंने एक किताब भी लिखी है ‘शुद्ध भक्ति’। अब धर्मांतरण से ज्यादा इस किताब का नाम मेरे लिए चौंकानेवाला है। इस्लाम में भक्ति कहां से आ गयी? भक्ति तो मूर्तिपूजा की देन है। दृश्य की भक्ति होती है। अदृश्य की कोई भक्ति नहीं होती। इस्लाम जिस अल्लाह की बात करता है वह तो अदृश्य है। फिर उस अदृश्य की भक्ति कैसे हो सकती है?
इन लोगों को धर्म का बेसिक भी नहीं पता कि भक्ति, साधना, उपासना में क्या अंतर होता है। लेकिन भोले भाले लोगों को मूर्ख बनाने के लिए कोई भी मूर्खतापूर्ण सिद्धांत गढ़कर उसे इस्लाम के नाम पर ठेल देते हैं। इफ्तिखारुद्दीन तो फिर भी पढे लिखे आदमी हैं। IAS बने हैं तो फिर ऐसा पाखंड रचना उनके लिए कौन सा मुश्किल है? बाड़ लहलहा रही है। चरने की बेताबी तो होगी ही। इतने सारे मूर्ख, गंवार ऐसे ही घूम रहे हैं। उन्हें इस्लाम में लाकर अपना संख्याबल बढाने का मोह वो भला कैसे त्याग सकते हैं?
इफ्तिखारुद्दीन ने एक बार फिर साबित किया है कि जो जहां है, वही जिहाद पर है।