8 अप्रैल का सूर्यग्रहण एक फेस्टिवल इवेंट!
विदेशी व भारतीय संस्कृति के आईने में वैज्ञानिक,कारोबारी व आध्यात्मिक दृष्टि से आकलन कर रहे हैं वरिष्ठ लेखक व पत्रकार चंद्रकांत अग्रवाल
कई बार प्राकृतिक घटनाओं के मायने,सरोकार दुनिया के अलग अलग भूभागों पर,अलग अलग देशों में वहां की सभ्यता और संस्कृति अनुसार वैज्ञानिक,कारोबारी, आध्यात्मिक व धार्मिक दृष्टि से अलग अलग हो जाते हैं। ऐसा ही इस बार 8 अप्रैल को होने जा रहे सूर्यग्रहण के संबंध में भी कहा जा सकता है। दुनिया के मैक्सिको, उत्तरी अमेरिका और कनाडा देश प्रमुख रूप से 8 अप्रैल को होने वाले पूर्ण सूर्य ग्रहण के गवाह बनेंगे। ‘पाथ ऑफ टोटैलिटी’ (ग्रहण मार्ग) में पड़ने वाले अमेरिका के कम से कम 12 राज्यों में इस दौरान करीब 4 मिनट तक दिन में अंधेरा छा जाएगा। इस अद्भुत घटना को देखने के लिए आसपास के इलाकों से करीब 50 लाख लोगों के पहुंचने की संभावना है। इसे देखते हुए होटलों की मांग भी 12 गुना तक बढ़ गई है। मुझे ज्ञात हुआ है कि एम्स्टर्डम में IT सलाहकार डो ट्रिन इस अद्भुत घटना को 30 हजार फुट की ऊंचाई से देखेंगे। इसके लिए उन्होंने चार महीने पहले से रिसर्च करके उन विमानों के रूट पता किए, जो ग्रहण मार्ग से होकर गुजरेंगे। तीन गुना अधिक कीमत देकर दाईं ओर की विंडो सीट ली। ट्रिन ग्रहण देखने के लिए 8 अप्रैल को सेंट एंटोनियो से डेट्रॉयट तक 30 घंटे का सफर करेंगे। लोगों की बेताबी को देखते हुए डेल्टा एयरलाइंस ने दो विशेष उड़ानों का ऐलान किया, तो 83 हजार रुपए की टिकटें भी हाथों हाथ बिक गईं। वहीं, कई विमान कंपनियां सरकार से घुमावदार रूट की मंजूरी में जुटी हैं, ताकि दाईं और बाईं दोनों ओर की विंडो सीट पर बैठे लोग इस मनोरम दृश्य को आराम से देख सकें। इन सबको मिलाकर अगले 2 दिन में अमेरिका में सूर्य ग्रहण के लिए 13 हजार करोड़ रु. का कारोबार होने की संभावना है। 4.4 करोड़ लोग ग्रहण देखेंगे, पिछली बार से 3 गुना ज्यादा।
विशेषज्ञों के अनुसार, इस बार ज्यादा उत्साह है। दरअसल, 2017 में लगे ग्रहण से इस बार ‘पाथ ऑफ टोटैलिटी’ 60% अधिक चौड़ा और इतना ही अधिक लंबा है। अमेरिका में अगला सूर्य ग्रहण अब 2045 में लगेगा। सूर्य ग्रहण के रूट में पड़ने वाले विमानों में टिकट की मांग 1500 % तक बढ़ गई है। ISO प्रमाणित चश्मों की बिक्री भी बढ़ गई है। ये आंखों को सुरक्षित रखते हैं। पाथ ऑफ टोटैलिटी में पड़ने वाले इलाकों में 4.4 करोड़ लोग घटना के साक्षी बनेंगे। ट्रैफिक जाम से निपटने की तैयारी की गई है। लोगों से अपील की गई है कि वे एक साथ न निकलें।
ज्ञात रहे कि अपनी जिज्ञासा के चलते वर्जीनिया के स्ट्रैसबर्ग में रहने वालीं मेलिसा 2017 में पूर्ण सूर्य ग्रहण को देखने के लिए 643 किलोमीटर दूर पहाड़ियों में गई थीं। तब 2 घंटे की दूरी तय करने में 6 घंटे लग गए थे। प्रशासन की ओर से इंतजाम में जुटे रिचर्ड कहते हैं, यह 30 ‘सुपर बॉल’ या पार्टी एक साथ होने जैसा है। हजारों की भीड़ जुटेगी। हम लोगों से अपील कर रहे हैं कि ग्रहण के बाद एक साथ न निकलें। इस तरह अमेरिका में तो एक फेस्टिवल जैसा माहौल है। वहीं अध्यात्म के वैज्ञानिक आधार वाली विश्व गुरु वाली भारतीय संस्कृति के हमारे देश भारत में बहुत ही कम उत्सुकता देखी जा रही है। ज्योतिषाचार्य पंडित अशोक शर्मा मेरे पूछने पर बताते हैं कि चैत्र नवरात्रि के शुरू होने से एक दिन पहले चैत्र अमावस्या पर साल का पहला सूर्य ग्रहण लगेगा। आठ अप्रैल को लगने वाला यह पूर्ण सूर्य ग्रहण होगा। सूर्य ग्रहण भारतीय समय अनुसार रात 9:12 बजे से शुरू होगा और मध्य रात्रि बाद 2:22 बजे पूर्ण होगा। लगभग 50 साल के बाद 5.25 घंटे की लंबी अवधि का सूर्य ग्रहण लगने जा रहा है। हालांकि यह सूर्य ग्रहण भारत में नहीं देखा जा सकेगा। क्योंकि यह रात में लग रहा है। सूर्य ग्रहण कनाडा, मेक्सिको,यूनाइटेड स्टेट्स, नीदरलैंड,कोलंबिया, ग्रीनलैंड, आयरलैंड, नॉर्वे, जमैका, रूस, स्पेन, यूनाइटेड किंग्डम और वेनेजुएला समेत दुनिया के कुछ हिस्सों में नजर आएगा।
भारतीय संस्कृति के शास्त्रों के अनुसार सूर्य ग्रहण अगर दृश्य नहीं है तो वह मान्य भी नहीं होगा और सूतक की मान्यता भी नहीं होगी। ग्रहण के दौरान किसी भी कार्य के करने में रोक नहीं रहेगी। हालांकि पं. अशोक शर्मा यह भी कहते हैं कि सूर्य ग्रहण का 12 राशियों के जातकों पर प्रभाव जरूर भारत में रहने वालों पर भी पड़ेगा। सूर्य ग्रहण हस्त नक्षत्र और कन्या राशि में लगेगा। वहीं, चंद्रमा, बुध और केतु के साथ एशि में होगा। जातकों को इस दौरान मानसिक तनाव का सामना करना पड़ सकता है। हर अमावस्या को सूर्यग्रहण नहीं होता पर जिस दिन भी सूर्य ग्रहण होता है उस दिन अमावस्या जरूर होती है।
ज्योतिषाचार्य पंडित शर्मा कहते हैं कि बिना चंद्रमा और सूर्य के संबन्ध के कोई भी ग्रहण नहीं लग सकता। अमावस्या वो दिन होता है जब सूर्य और चंद्रमा एक ही अंश पर आ जाते हैं। जिस अमावस्या पर सूर्य व चंद्रमा एक ही अंश पर हों और उनका संबन्ध राहु-केतु से बन जाए, उस अमावस्या पर सूर्य ग्रहण लग जाता है। अमावस्या पर सूर्य ग्रहण का वैज्ञानिक कारण भी है। अगर खगोलीय रूप से देखें तो पृथ्वी, सूर्य की परिक्रमा करती है और चंद्रमा पृथ्वी की परिक्रमा करता है। अमावस्या के दिन चंद्रमा सूर्य और पृथ्वी के बीच होता है और पृथ्वी के सबसे करीब होता है। इस बीच कई बार वो क्षण आता है कि जब चंद्रमा सूर्य और पृथ्वी के बीच इस तरह से आता है कि पृथ्वी पर सूर्य की रोशनी नहीं पड़ पाती। यह स्थिति जिस अमावस्या पर बन जाती है, सूर्य ग्रहण लग जाता है। काशी के एक अन्य ज्योतिषाचार्य के अनुसार साल का यह पहला सूर्य ग्रहण भारतीय समय के अनुसार रात में करीब 09:12 पर शुरू होगा और ग्रहण का समापन रात 01:25 पर हो जाएगा। यह ग्रहण पश्चिमी यूरोप पेसिफिक, अटलांटिक, आर्कटिक मेक्सिको, उत्तरी अमेरिका, मध्य अमेरिका, दक्षिण अमेरिका के उत्तरी भाग, कनाडा, इंग्लैंड के उत्तर पश्चिम क्षेत्र और आयरलैंड में दिखाई देगा। भारत में यह कहीं भी नजर नहीं आएगा। ऐसे में भारत में सूर्य ग्रहण के दौरान सूतक के नियम भी लागू नहीं होंगे।