रांची: झारखंड में कोई 10 वर्ष पूर्व हुए सोलर लाइट खरीदी घोटाले में 5 IAS सहित दो दर्जन अधिकारियों को जिम्मेदार माना गया है।
सरकार के निगरानी ब्यूरो की जांच में गड़बड़ियों के लिए करीब दो दर्जन अफसरों को जिम्मेदार माना गया है. इनमें पांच आईएएस वंदना दादेल, के.रवि कुमार, मस्तराम मीणा, प्रशांत कुमार और दीप्रवा लकड़ा भी शामिल हैं. ये सभी राज्य में अलग-अलग विभागों में ऊंचे ओहदे पर हैं.
इस पूरे मामले में सबसे आश्चर्यजनक तथ्य है की इस मामले की जांच रिपोर्ट एंटी करप्शन ब्यूरो ने वर्ष 2015 में ही देकर दोषी अधिकारियों के खिलाफ विभागीय जांच की अनुशंसा की।
वर्षों से फाइलों में दबा यह मामला अब फिर बाहर आया है. कार्मिक, प्रशासनिक सुधार एवं राजभाषा विभाग ने अब राज्य के ग्रामीण विकास विभाग को निगरानी ब्यूरो की जांच रिपोर्ट में की गयी सिफारिशों की याद दिलायी है. ग्रामीण विकास विभाग से पूछा गया है कि इस मामले में जिन अफसरों पर विभागीय कार्यवाही की अनुशंसा की गयी है, उनसे उनका पक्ष लिया गया है नहीं.
निगरानी ब्यूरो ने सोलर लाइट की खरीद में गड़बड़ी और गबन को इन अफसरों की प्रशासनिक चूक बताया है. ये सभी आईएएस अफसर गड़बड़ियों के वक्त चार जिलों गिरिडीह, देवघर, गोड्डा और दुमका में डीसी एवं डीडीसी जैसे पदों पर थे.
सोलर लाइट की खरीदारी सांसद-विधायक स्थानीय फंड से हुई थी. गड़बड़ियां कई तरह की थीं. मसलन, तय दर से अधिक कीमत पर खरीदारी हुई. नियमों का उल्लंघन कर एजेंसियों को भुगतान हुआ, जो 25 हजार में खरीद सकते थे, उसे 37 से 38 हजार में खरीदा
हर जिले में खरीदारी के लिए क्रय समिति बनायी जाती है. तीन जिलों गिरिडीह, दुमका एवं देवघर में सोलर लाइट क्रय के लिए जो क्रय समिति बनी, उसके सभी सदस्यों ने सोलर लाइट दर के आकलन के बिंदु पर वित्तीय प्रावधानों को नजरअंदाज किया. निगरानी की रिपोर्ट में बताया गया है कि जो लाइट डीजीएस/डी दर पर 25,651 रुपये से लेकर 29094 रुपये में खरीदी जा सकती थी,उसे खुली निविदा के माध्यम से 37,000 से 38,000 रुपये की दर से खरीदा गया. तीनों जिलों में योजना मद में राशि उपलब्ध थी. इसलिए क्रय समिति के सदस्यों ने वित्तीय नियमावली को ताक पर रखकर खुली निविदा के माध्यम से सोलर लाइट क्रय करने का निर्णय लिया.
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गोदाम में सड़ गयीं लाइटें
सोलर लाइट की खरीदारी में गड़बड़ी को लेकर विधायक सरफराज अहमद सहित कई विधायकों ने आवाज उठायी थी. इसके बाद गोड्डा के तत्कालीन उपायुक्त के.रवि कुमार ने तत्कालीन अनुमंडल पदाधिकारी हर्ष मंगला की अध्यक्षता में गठित अभियंताओं की टीम से जांच करायी. जांच में गड़बड़ियां पायी गयीं. इसके आधार पर कार्रवाई की जानी चाहिए थी. लेकिन बात सिर्फ पत्राचार तक रही. फिर ज्रेडा द्वारा आपूर्ति किए गये उपकरणों को त्रुटिपूर्ण माना गया, लेकिन लगभग ढाई साल के कार्यकाल में उपकरणों को लौटाने का कोई गंभीर प्रयास नहीं किया गया,जिसके कारण सभी इलेक्ट्रॉनिक उपकरण गोदाम में पड़े-पड़े खराब हो गये. एसीबी ने इसे तत्कालीन डीसी की स्वेच्छारिता का मामला बताया है.
कई नियमों की हुई अनदेखी
गिरिडीह,दुमका एवं देवघर में सोलर लाइट लगाये जाने के बाद एजेंसियों को पूरी राशि का भुगतान कर दिया गया. एसीबी ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि मुख्यमंत्री विकास योजना,सांसद निधि एवं विधायक निधि के तहत काम करने वाली एजेंसियों को भुगतान करने की जिम्मेदारी उपायुक्त एवं उप विकास आयुक्त की होती है. वे निकासी एवं व्ययन पदाधिकारी होते हैं. एसीबी ने कहा है कि सरकार के स्पष्ट निर्देश के बावजूद इन इन अधिकारियों ने एजेंसी के बिल से वैट,आयकर एवं लेबर शेष के शीर्ष में कटौती किए गये बगैर संपूर्ण राशि का भुगतान कर दिया, जो नियमों का उल्लंघन एवं उनकी स्वेच्छाचारिता का परिचायक है.
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