लगभग तीन- साढ़े तीन घंटे की सड़क यात्रा के पश्चात हम द्वारका से सोमनाथ पहुंच गए। वैसे सोमनाथ पहुंचने के लिए वेरावल स्टेशन तक अनेक गाड़ियां चलती है, इन्हीं गाड़ियों से सोमनाथ आना ज्यादा सुविधाजनक है।
सोमेश्वर ज्योतिर्लिंग की कथा है कि एक बार दक्ष प्रजापति ने चंद्रमा जिन्हें सोम भी कहते हैं को श्राप दिया कि तुम महीन होकर क्षीण हो जाओगे। दक्ष के श्राप से चंद्रमा क्षीण होने लगे। चंद्रमा ने प्रभास पाटन जाकर 6 माह तक करोड़ों महामृत्युंजय मंत्रों का जाप किया, जिससे भगवान भोलेनाथ प्रकट हुए, उन्होंने सोम से वर मांगने को कहा। सोम ने श्राप मुक्ति की प्रार्थना की। तब शिवजी बोले कि तुम्हारी एक-एक कला कृष्ण पक्ष में प्रतिदिन क्षीण होगी तथा शुक्ल पक्ष में प्रतिदिन एक-एक कला बढ़ जाया करेगी। इस तरह सोम श्राप मुक्त हुए तथा सोम की आराधना पर भगवान भोलेनाथ यहां सोमेश्वर ज्योतिर्लिंग नाम धारण करके विराजमान हो गए।
मंदिर के बाहर पदवेश, मोबाइल, थैला इत्यादि जमा कर, टोकन प्राप्त किए और मंदिर के प्रवेश द्वार पर सुरक्षा जांच के पश्चात अंदर प्रवेश किए। परिसर के अंदर, मंदिर की ओर मुख किए हुए सरदार वल्लभ भाई पटेल की मूर्ति स्थापित है, संभवत यह प्रदर्शित करने के लिए की इस मंदिर का जिर्णोद्धार सरदार वल्लभभाई पटेल के पहल,निर्देशन एवं मार्गदर्शन में संपन्न हुआ था। देश के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू, सरदार वल्लभभाई पटेल के इस पहल के विरोधी थे, परंतु कन्हैयालाल मानिक लाल मुंशी , सरदार वल्लभ भाई पटेल, प्रथम राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद के प्रयासों से यह कार्य संपन्न हुआ। दि.11-05-1951 के दिन भारत के राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद ने मंदिर में ज्योतिर्लिंग की प्रतिष्ठा की।
11वीं शताब्दी में मोहम्मद गोरी ने इस मंदिर को लूटा था और मंदिर में स्थित अकूत धन संपदा को लूटकर गजनी ले गया था। महमूद ने मंदिर के हीरे, मोती, रत्न और सोना लूटा ही नहीं, मंदिर की दीवारों में जड़े हुए रत्नों को निकाल लेने के लिए आग लगा दी। शिवलिंग के टुकड़े किए। अनेक युवक और युवतियों को गुलाम बनाकर ले गया।
महमूद के वापस जाने के बाद हिंदू राजाओं ने मिलकर जो नुकसान हुआ था उसकी मरम्मत करवाई, पुनः शिवलिंग की प्राण प्रतिष्ठा की और तीर्थ की महत्ता प्रतिस्थापित की।
सन 1218 में दिल्ली के सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी के द्वारा पुन सोमनाथ के भव्य मंदिर को खंडित किया गया एवं संपत्ति लूटी गई और शिवलिंग के टुकड़े-टुकड़े कर अपने साथ ले गया।
पुनः कुछ दिनों के बाद जूनागढ़ के राजा ने प्रभास में मुसलमानों का अधिकार समाप्त किया और शिवलिंग की पुनः प्रतिष्ठा कर खंडित मंदिर का जिर्णोद्धार किया।
तीसरी बार मोहम्मद तुगलक ने सोमनाथ के मंदिर का खंडन किया एवं लिंग को भी क्षति पहुंचाई ।हिंदू राजाओं ने पुनः मंदिर का जिर्णोद्धार किया एवं लिंग की प्रतिष्ठा की। जफर खान ने चौथी, पांचवी, छठवीं एवं सातवीं बार मंदिर को खंडित किया। प्रत्येक बार खंडित देवालय को हिंदुओं द्वारा किसी न किसी तरह से पुनर्निमित किया जाता रहा। अंत में ई सन 1415 में गुजरात के शासक अहमद शाह ने जो कुछ बचा था उसको नष्ट करने का प्रयास किया, उसने मूर्ति खण्डन, मंदिर ध्वंश और धर्मांतरण की प्रवृत्ति को तेज कर दिया। पुनः जूनागढ़ के शासक मांडलिक तीसरे ने प्रभास से सुल्तान के सैनिकों को निकाल दिया और सन 1451-1456 के मध्य मंदिर की मरम्मत करवा कर वहां लिंग की प्रतिष्ठा की।
सन 1461 में मोहम्मद बेगड़ा ने मांडलिक को पराजित करके जूनागढ़ का राज्य अपने अधीन कर लिया। प्रभास में इस्लाम का प्रबल प्रचार हुआ। मूर्ति पूजा बिल्कुल बंद हो गई। एक भी मंदिर अखंडित ना रहा। मुगल शासक औरंगजेब ने भी सन 1665 एवं 1704 में दो फरमान, मंदिर को विध्वंस करने के जारी किए। इस प्रकार सोमनाथ के मंदिर को इस्लामी आक्रांताओं ने अनेकों बार नष्ट, विध्वंस किया परंतु हिंदुओं की जिजिविषा रही कि वे निरंतर प्रतिरोध करते रहे, बलिदान होते रहे एवं पुनर्निर्माण करते रहे। मुट्ठी भर मुस्लिम आक्रांता आए और उन्होंने हमें लूटा, इसका एक बड़ा कारण हिंदुओं में एकता का अभाव था जो आज भी परिलक्षित होता है। आज राजनीतिक दल जाति के नाम पर हिंदुओं में विभेद पैदा कर रहे हैं।अस्तु
इस इतिहास का औपन्यासिक विवरण श्री कन्हैयालाल मानिक लाल मुंशी ने अपने उपन्यास ‘जय सोमनाथ’ में अंकित किया है। मंदिर को देखने से मन में इसका एक काल्पनिक दृश्य उभर आता है। वर्तमान मंदिर, उपन्यास में वर्णित मंदिर एवं अन्य भवनों का एक लघु रूप प्रतीत होता है। यदि सरदार वल्लभभाई पटेल कुछ वर्ष और जीवित रहते, तो हो सकता है काशी विश्वनाथ एवं कृष्ण जन्म स्थान मथुरा का भी पुनरुद्धार हो जाता।अस्तु
मंदिर का शिखर एवं मंदिर दूर से दिखाई देने लगा, मन आनंदित हो गया एवं दर्शन करने की आतुरता बढ़ गई । मंदिर के बाहर दर्शनार्थियों की कतार, पुरुष एवं महिला पृथक पृथक लगी थी। हम भी कतार में खड़े हो गए। ज्यादा समय नहीं लगा। थोड़ी देर में मंदिर के अंदर पहुंच गए। मंदिर भव्य एवं विशाल है, थोड़ी देर भगवान सोमनाथ के शिवलिंग का दर्शन करने दिया जाता है, फिर सुरक्षाकर्मी वहां से हटा देते हैं।यहां सोमनाथ मंदिर का ट्रस्ट बना हुआ है, अतः व्यवस्था काफी अच्छी है। प्रसाद एवं निर्माल्य का जल प्राप्त करने की पृथक-पृथक व्यवस्था है। हमने दोनों वस्तुएं प्राप्त की। मंदिर के पीछे थोड़ी देर समुद्र का दर्शन किए।
मंदिर के ठीक पीछे पुराने मंदिर की जगती का भग्नावशेष स्थित है, जिसकी ऊंचाई लगभग 6 से 7 फीट होगी। इस पर अनेक मूर्तियां उत्कीर्ण हैं। मंदिर का पुनर्निर्माण करते समय इसकी उपयोगिता नहीं समझी गई होगी आता है इसे वैसा ही छोड़ दिया गया है।
मंदिर परिसर के बाहर अन्न क्षेत्र स्थित है, जहां पर निःशुल्क भोजन, तीर्थ यात्रियों को उपलब्ध कराया जाता