15 वे महाप्रयाण दिवस पर विशेष: भारत के महासंत आचार्य महाप्रज्ञ

15 वे महाप्रयाण दिवस पर विशेष: भारत के महासंत आचार्य महाप्रज्ञ

 

गोपेन्द्र नाथ भट्ट की रिपोर्ट 

भारतीय संस्कृति में वैदिक काल से ही अनेक ऋषि, मुनि और संत हुए है जिनकी प्रसिद्धि पूरे विश्व में हुई है तथा इसी कारण भारत को विश्व गुरु की उपमा से सुशोभित किया जाता रहा है। अर्वाचीन काल से आधुनिक युग तक भारत के आध्यात्मिक गुरुओं ने जो सम्मान अर्जित किया है। ऐसा किसी ने इतिहास में अब तक नहीं पाया है। भारत के अनेकों साधकों, आचार्यों, मनीषियों, दार्शनिकों आदि ने अपने मूल्यवान अवदानों से भारत की आध्यात्मिक परम्परा को समृद्ध किया है।

दो विश्व युद्ध देख चुकी दुनिया पिछले कई दशकों से गाहें बहाएं तीसरे विश्व युद्ध के जयघोष की ध्वनियां सुनती आ रही हैं लेकिन तीसरे विश्व युद्ध के मुहाने पर खड़े विश्व को भारत के गुरुओं ने समय-समय पर जो उपदेश और आध्यात्मिक ऊर्जा दी है वह अहिंसा,विश्व शांति,पारस्परिक सहयोग एवं सद्भाव, सह अस्तित्व, भाई चारा आदि बढ़ाने में बहुत सार्थक हुए है। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने विश्व के किसी कोने में सूर्यास्त नहीं होने का अहंकार भरने वाले अंग्रेजों की हकूमत से भारत को अहिंसा के बलबूते पर ही गुलामी से मुक्त कराया था।

अणुव्रत अनुशास्ता आचार्य श्री तुलसी ने विश्व शांति और अहिंसा के सिद्धांतों की जड़ों को मजबूत बनाने के लिए अपने अणुव्रत आंदोलन के माध्यम से दुनिया के सभी लोगों को अपने निज जीवन में छोटे- छोटे व्रत लेकर सभी के कल्याण के लिए काम करने का मूल मंत्र दिया जोकि आज भी अपनी प्रासंगिकता को साबित कर रहा है। आचार्य तुलसी द्वारा 1949 में प्रतिपादित अणुव्रत सिद्धांतो और आंदोलन को उनके रहते और बाद में आचार्य श्री महाप्रज्ञ ने आगे बढ़ाया और वर्तमान आचार्य महाश्रमण उसे चरमोत्कर्ष पर ले जा रहे है।

आचार्य महाप्रज्ञ के 15 वे महाप्रणाय दिवस (वैशाख कृष्णा 11 चार मई, 2024) पर उनका स्मरण भारत के एक महासन्त को सच्चे अर्थों में भावांजलि अर्पित करना है ।

विलक्षण प्रतिभा के धनी आचार्य महाप्रज्ञ श्वेतांबर जैन धर्म तेरापंथ के दसवें आचार्य थे। आचार्य महाप्रज्ञ न केवल एक महान संत थे वरन वे एक महापुरुष,सिद्ध योगी,  आध्यात्मिक गुरु,दार्शनिक व्यक्तित्व,  अधिनायक शख्शियत,अनूठे लेखक,श्रेष्ठ वक्ता और गजब के कवि भी थे।  उनकी बहुत सी पुस्तकें और लेख उनके विद्वतापूर्ण व्यक्तित्व और कृतित्व को दर्शाने वाले हैं । पहले उनका नाम मुनि नथमल जी था। आचार्य तुलसी, उनके बहुआयामी गुणों से इतने अधिक प्रसन्न हुए कि उन्होंने अपने जीवन काल में ही उन्हें अपना उत्तराधिकारी आचार्य घोषित किया और आचार्य महाप्रज्ञ नाम से भी विभूषित किया ।

महाप्रज्ञ ने दस वर्ष की छोटी सी उम्र में जैन संन्यासी की दीक्षा ले ली थी। महाप्रज्ञ ने आचार्य तुलसी के अणुव्रत आंदोलन को आगे ले जाने में मुख्य भूमिका निभाई और 1995 में आंदोलन के अधिनायक बन गए।आचार्य महाप्रज्ञ ने 1970 के दशक में “प्रेक्षाध्यान” की वैज्ञानिक थ्योरी का आविष्कार किया और शिक्षा प्रणाली में “जीवन विज्ञान” की थ्योरी विकसित कर छात्रों के संतुलित विकास और उनके चरित्र निर्माण के लिए ऐतिहासिक कार्य किया। उनका यह प्रयास मील का पत्थर साबित हो रहा है। आज इस विधि द्वारा अनेक व्यक्ति शारीरिक, मानसिक एवं भावनात्मक रोगों से मुक्त हो रहे हैं। आज जीवन विज्ञान को शिक्षा के क्षेत्र में भावनात्मक विकास की दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है,जो आचार्यश्री महाप्रज्ञजी की शिक्षा जगत को बहुत बड़ी देन है। महाप्रज्ञ जी ने संस्कृत,हिन्दी, गुजराती,इंग्लिश में 300 से ज्यादा किताबें लिखीं। वे भूगोल, खगोल, ज्योतिष, न्याय, विज्ञान के विशेष रहस्यों के ज्ञाता होने के साथ-साथ मंत्रदृष्टा आचार्य और योग के महान साधक थे।

 

आचार्य महाप्रज्ञ का जन्म हिन्दू तिथि के अनुसार विक्रम संवत 1977, आषाढ़ कृष्ण त्रयोदशी को राजस्थान के झुंझनू जिले के एक छोटे-से गांव टमकोर गाँव में सन्‌ 1920 में 14 जून को हुआ था । उनके पिता का नाम तोलाराम तथा माता का नाम बालू था। आचार्य महाप्रज्ञ का बचपन का नाम नथमल था। उनके बचपन में ही पिता का देहांत हो गया था। माँ बालू ने उनका पालन-पोषण किया। उनकी माँ धार्मिक प्रवृत्ति की महिला थी। इस कारण उन्हें बचपन से ही धार्मिक संस्कार मिले थे। विक्रम संवत 1987, माघ शुक्ल की दशमी (29 जनवरी 1931) को उन्होंने दस वर्ष की आयु में अपनी माता के साथ तेरापंथ के 8 वें आचार्य कालूगणी से सरदार शहर (राजस्थान) में दीक्षा ग्रहण की। आचार्य कालूगणी की आज्ञा से उन्होंने मुनि तुलसी जो आगे चल कर आचार्य कालूगणी के बाद तेरापंथ के नौवें आचार्य बने, के मार्गदर्शन में दर्शन, न्याय, व्याकरण, मनोविज्ञान, ज्योतिष, आयुर्वेद आदि का तथा जैन आगम, बौद्ध ग्रंथों, वैदिक ग्रंथों तथा प्राचीन शास्त्रों का गहन अध्ययन किया था। वे संस्कृत भाषा के आशु कवि थे। आचार्यश्री तुलसी ने महाप्रज्ञ (तब मुनि नथमल) को सन्‌ 1944 में अग्रगण्य बनाया गया। विक्रम संवत 2022 माद्य शुक्ला सप्तमी (ईस्वी सन् 1965) को हिंसार में उन्हे निकाय सचिव नियुक्त किया। आगे चल कर उनकी प्रज्ञा से प्रभावित होकर आचार्य तुलसी ने उन्हें 12 नवंबर 1978 को राजस्थान के गंगाशहर में ‘महाप्रज्ञ’ के संबोधन अलंकरण की उपाधि से अंलकृत किया। तब से उन्हें महाप्रज्ञ के नाम से जाना जाने लगा।

विक्रम संवत 2035 में राजस्थान के राजलदेसर में आयोजित मर्यादा महोत्सव के अवसर पर आचार्यश्री तुलसी ने 3 फरवरी 1979 को उन्हें अपना उत्तराधिकारी घोषित किया और वे ‘युवाचार्य महाप्रज्ञ’ हो गए। विक्रम संवत 2050 में 18 फरवरी 1994 को राजस्थान के सुजानगढ़ में आचार्य तुलसी ने अपने आचार्य पद का विर्सजन कर दिया और युवाचार्य महाप्रज्ञ को तेरापंथ का आचार्य नियुक्त कर सबको आश्चर्यचकित कर दिया। इस प्रकार वे तेरापंथ के दसवें आचार्य बने।o

देश के प्रसिद्ध साहित्यकार जैनेन्द्र ने कहा था- ‘अगर मैं महाप्रज्ञ साहित्य को पहले पढ़ लेता तो मेरे साहित्य का रूप कुछ दूसरा ही होता।’ राष्ट्रकवि दिनकर से आचार्यश्री महाप्रज्ञजी की अनेक विषयों में चर्चा-परिचर्चा हुई। वे राष्ट्रकवि महाप्रज्ञ की वैचारिक और साहित्यिक प्रतिभा से बहुत प्रभावित हुए। उन्होंने महाप्रज्ञ की मनीषा का मूल्यांकन करते हुए कहा था, ‘हम विवेकानंद के समय में नहीं थे। हमने उनको नहीं देखा, उनके विषय में पढ़ा मात्र है। लेकिन आज दूसरे विवेकानंद के रूप में हम आचार्य महाप्रज्ञ को देख रहे हैं।’ देश के सुप्रसिद्ध वैज्ञानिक एवं प्रतिरक्षा विभाग के वैज्ञानिक सलाहकार डॉ. राजा रामन्ना भी महाप्रज्ञ के अनेकांत दर्शन का स्पर्श पाकर आत्मविभोर हो उठे थे।

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 19 जून 2020 को आचार्य महाप्रज्ञ जन्म शताब्दी समारोह के दौरान संत प्रवर आचार्य श्री महाप्रज्ञ जी को श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए अपने सम्बोधन में कहा था कि आचार्य महाप्रज्ञ जी ने हम सबको एक मंत्र दिया था। उनका ये मंत्र था- ‘स्वस्थ व्यक्ति, स्वस्थ समाज और स्वस्थ अर्थव्यवस्था। आज की परिस्थिति में उनका ये मंत्र हम सबके लिए बहुत बड़ी प्रेरणादायक है। आज देश इसी मंत्र के साथ, आत्मनिर्भर भारत के संकल्प के साथ आगे बढ़ रहा है।

मैंने हमेशा ये अनुभव किया कि उनके जैसे युगऋषि के जीवन में अपने लिए कुछ नहीं होता है। उनका जीवन, उनका विचार, उनका चिंतन, सब कुछ समाज के लिए, मानवता के लिए ही होता है। वो कहते थे, ‘आत्मा मेरा ईश्वर है, त्याग मेरी प्रार्थना है, मैत्री मेरी भक्ति है, संयम मेरी शक्ति है और अहिंसा मेरा धर्म है’। आचार्य महाप्रज्ञ जी यह भी कहते थे कि, ‘मैं और मेरा छोड़ो तो सब तुम्हारा ही होगा’। मुझे याद है, जब मैं गुजरात का मुख्यमंत्री बना था उस समय भी उनका गुजरात आना हुआ था। मुझे उनकी अहिंसा यात्रा में, मानवता की सेवा के अभियान में शामिल होने का अवसर मिला था। मैंने तब आचार्य प्रवर के सामने कहा था, ‘मैं चाहता हूँ ये तेरा पंथ, मेरा पंथ बन जाए’।आचार्य श्री के स्नेह से तेरा पंथ भी मेरा पंथ बन गया और मैं भी आचार्य श्री का बन गया। दुनिया में जीवन जीने का दर्शन तो आसानी से मिल जाता है, लेकिन इस तरह का जीवन जीने वाला आसानी से नहीं मिलता। जीवन को इस स्थिति तक ले जाने के लिए तपना पड़ता है, समाज और सेवा के लिए खपना पड़ता है। ये कोई साधारण बात नहीं है। असाधारण व्यक्तित्व ही ‘असाधारण’ को चरितार्थ करता है। तभी तो राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर कहते थे- आचार्य महाप्रज्ञ जी आधुनिक युग के विवेकानंद हैं।

आचार्य महाप्रज्ञ जी ने जो साहित्य रचना की, वो भी अद्भुत थी। हमारे श्रद्धेय प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी जी, जो खुद भी साहित्य और ज्ञान के इतने बड़े पारखी थे, अक्सर कहते थे कि- “मैं आचार्य महाप्रज्ञ जी के साहित्य का, उनके साहित्य की गहराई का, उनके ज्ञान और शब्दों का बहुत बड़ा प्रेमी हूँ”। वाणी की सौम्यता, मंत्रमुग्ध कर देने वाली आवाज,शब्दों के चयन का संतुलन, उन्हें ईश्वरीय वरदान प्राप्त था …। उनकी एक पुस्तक “द फेमिली एंड द नेशन” भी बहुत चर्चित हुई । ये किताब महाप्रज्ञ जी ने राष्ट्रपति डॉ एपीजे अब्दुल कलाम के साथ मिलकर लिखी थी। एक परिवार सुखी परिवार कैसे बने, एक सुखी परिवार एक समृद्ध राष्ट्र का निर्माण कैसे कर सकता है, इसका विजन इन दोनों महापुरुषों ने इस किताब में दिया। महाप्रज्ञ जी के बारे में डॉ कलाम कहते थेकि, उनके जीवन का एक ही उद्देश्य है सतत यात्रा करो, ज्ञान अर्जित करो और जो कुछ भी जीवन में है वो समाज का ही है इसलिए उसे वापस समाज को ही लौटा दो। इस जीवन शैली को उन्होंने खुद भी जिया और लाखों करोड़ों लोगों को भी सिखाया। योग के माध्यम से,लाखों करोड़ों लोगों को उन्होंने तनाव मुक्त जीवन की कला भी सिखाई। हमारे लिए ये एक अवसर है कि हम सब ‘सुखी परिवार और समृद्ध राष्ट्र’ के महाप्रज्ञ जी के स्वप्न को साकार करने में अपना योगदान दें और उनके विचारों को समाज तक पहुंचाएँ।

लेखक को भी नब्बे के दशक से लगातार आचार्य श्री तुलसी और आचार्य महाप्रज्ञ जी का शुभाशीर्वाद मिलता रहा। दक्षिणी राजस्थान के उदयपुर मेवाड़ अंचल के राजसमंद में अणुविभा के शुभारंभ अवसर पर उनका विशेष स्नेह एवं सानिध्य जीवन की एक बहुमूल्य धरोहर है। साथ ही वर्तमान आचार्य श्री महाश्रमण के दिल्ली प्रवास के कार्यक्रमों के प्रचार प्रसार का सौभाग्य भी मेरे लिए किसी अमूल्य थाती से कम नहीं है।

भारत के महासंत आचार्य महाप्रज्ञ जी ने अपने जीवन में हजारों किलोमीटर की पदयात्राऐं की। अपने अंतिम समय में भी वे अहिंसा यात्रा पर ही थे। ऐसे युग प्रधान आचार्य श्री महाप्रज्ञ जी का विक्रम संवत् 2067, द्वितीय वैशाख, कृष्ण एकादशी को राजस्थान के सरदार शहर में महाप्रयाण हो गया । ऐसे प्रेरणादायी महामना को कोटिशः श्रद्धांजली…