नर्मदा जयंती पर विशेष : नर्मदा के पत्थर बिना प्राण प्रतिष्ठा के शिवलिंग के रूप में पूजे जाते हैं
मंदसौर से डॉ घनश्याम बटवाल की रिपोर्ट
मंदसौर । देश के विभिन्न प्रान्तों को जोड़ने वाली पावन पवित्र नर्मदा नदी की जयंती उत्सव के रूप में शनिवार 28 जनवरी को मनाई जारही है ।
नर्मदा का महत्व बड़े भू भाग पर प्रभाव डालने वाला है । जिस क्षेत्र से यह प्रवाहमान है उस अंचल की सामाजिक , सांस्कृतिक , धार्मिक , सार्वजनिक , पारम्परिक , कृषि आधारित , राजनीतिक सभी पक्षों के साथ जुड़ाव के साथ चलती है ।
अंचल के जनमानस का आत्मिक लगाव केवल नदी नहीं मां नर्मदा के रूप में श्रद्धा और आस्था के साथ माना जाता है ।
पुराणों के कथानक में उल्लेख है कि मैकल पर्वत पर भोलेनाथ तपस्या में लीन थे तब उनकी पसीने की बूंद मैंखल पर्वत पर गिरी इस दिन माघ माह की सप्तमी का दिन था।उस बूंद से एक सुंदर कन्या का जन्म हुआ।वह कन्या भी महादेवजी के सामने तपस्या करने बैठ गई ।जब भगवान शंकर की तपस्या पूरी हुई ओर उनकी आँख खुली तो वे कन्या को देखकर बहुत खुश हुये और उसका नामकरण नर्मदा के रुप में कर दिया और वरदान दिया कि संसार मे चाहे प्रलय भी आजाये तुम्हारा नाश कभी भी नहीं होगा और *संसार में पापनाशिनी नदी के नाम से तुम्हारा नाम लिया जायेगा। तुम्हारे किनारों पर जो पत्थर रहेंगे वे नर्मदेश्वर शिवलिंग कहलायेंगे और बिना प्राण प्रतिष्ठा के पूजे जा सकेंगे।और तुम्हारे तटों पर शिव पार्वती सहित सारे देवता निवास करेंगे।*
सारे संसार में एकमात्र तुम ऐसी नदी होगी जिसकी परिक्रमा लोग करेंगे।मैखल पर्वत पर नर्मदा का प्राकट्य हुआ और ये मैखल सुता कहलाई। नर्मदा अंचल के शिक्षाविद श्री रमेशचन्द्र चंद्रे ने यह जानकारी देते हुए बताया कि नर्मदा के दर्शन मात्र से पुण्य लाभ अर्जित होता है ।
श्री चंद्रे ने जानकारी दी कि पुराणों में कथा आती है कि जब नर्मदा बड़ी हुई तो राजा मैकल को अपनी बेटी की शादी की चिन्ता हुई।राजा ने अपनी रूपवान अति सुंदर बेटी के लिये वर खोजना शुरू किया और घोषणा कर दी कि जो भी राजकुमार मेरी बेटी को गुलबकावली के फूल लाकर देगा।उसी से मेरी बेटी की शादी होंगी।यह बहुत ही कठिन शर्त थी अनेक राजाओं ने शर्त पूरी करने की कोशिश की लेकिन पूरी नहीं कर पाए।ऐसे में राजकुमार सोनभद्र ने वीरतापूर्वक यह शर्त पूरी कर दी। सोनभद्र की वीरता से राजा
मैंखल बहुत खुश हुए और उससे अपनी बेटी की शादी करने के लिये तैयार हो गये।देवी नर्मदा ने अभी तक सोनभद्र को देखा भी नहीं था लेकिन उनकी वीरता के चर्चे बहुत सुन रखे थे।माँ नर्मदा के मन में सोनभद्र से मिलने की इच्छा हुई ऐसे में उन्होंने अपनी दासी जुहिला को बुलाकर कहा,मैं राजकुमार सोनभद्र से मिलना चाहती हूँ और मेरी तरफ से तुम ये सन्देशा लेकर जाओ।दासी जुहिला ने कहा कि मेटे पास अच्छे वस्त्र और आभूषण नहीं है तो आप मुझे अच्छे वस्त्र और आभूषण दे दीजिए जिंन्हे पहनकर मैं राजकुमार के पास सन्देशा ले के जा सकूँ।नर्मदा ने दासी की विनती सुनकर अपने वस्त्राभूषण दे दिये जिससे कि वह उनका सन्देशा ले जा सके।जोहिला जब माँ नर्मदा का सन्देशा लेकर राजकुमार सोनभद्र के पास पहुँची तो राजकुमार का रूप और उसके गुणों को देखकर मोहित हो गई और उसे अपना दिल हार बैठी।उसने अपना परिचय माँ नर्मदा के रूप में दिया।राजसी वेशभूषा और ठाट बाट में आई दासी को राजकुमार सोनभद्र भी उसे नर्मदा समझने की भारी भूल कर बैठे।और उन्होंने भी अपना प्रेम का प्रस्ताव जुहिला के ऊपर प्रकट कर दिया।जुहिला ने भी प्रेम के प्रस्ताव को तुरंत स्वीकार कर लिया।जब राजमहल से जुहिला को गये हुये काफी समय हो गया था, तब माँ नर्मदा के सब्र का बांध तब टूटने लगा और तब उन्होंने खुद ही जाकर देखने का मन बनाया और नर्मदा खुद ही वहाँ पहुँच गई जिस जगह उन्होंने दासी को भेजा था।जब वे वहाँ पर पहुंची तब इन्होंने दोनो को जिस प्रकार प्रणय निवेदन करते देखा तो उनका मन कांप उठा शोक संतप्त हो उठा।माता को बहुत अपमान महसूस हुआऔर वे अपमान की आग में जल उठी और उन्होंने फिर कभी वहाँ न आने का निश्चय कर लिया और वे वहाँ से उल्टी दिशा में चल पड़ी।सोनभद्र को भी समझ में आ चुका था वे दासी की चालाकी समझ चुके थे।वे नर्मदा को पुकारते हुये उसके पीछे दौड़े उनको लौट आने की विनती करने लगे। *लेकिन नर्मदा मैया ने एक बार सोनभद्र से धोखा खाने के बाद आजीवन कुँआरी रहने का फैसला कर लिया।और युवावस्था में ही सन्यासिनी का वेश धारण कर लिया* । *
भारत की सारी नदियाँ पूर्व की ओर बहती हैं लेकीन माँ नर्मदा पश्चिम की ओर चल पड़ी। रास्ते में जंगल पहाड़ियां आती गई माँ नर्मदा ने उनमें से अपना रास्ता बनाती गई और आगे बढ़ती गई।
ऐसा कहा जाता है कि नर्मदा परिक्रमा के समय कहीं कहीं माँ नर्मदा का करुण विलाप सुनाई देता है जिसे अनेक परिक्रमा वासियों ने महसूस किया और इस प्रकार वह कल कल छल छल बहती हुई अरब सागर में समा जाती है।*
माँ नर्मदा का दर्शन करने वाले भक्त
चिर कुमारी माँ नर्मदा का सात्विक तेज चारित्रिक सौंदर्य महसूस करते है।हमारे देश की बड़ी नदियाँ बंगाल की खाड़ी में गिरती है लेकिन माँ नर्मदा ने बंगाल सागर की यात्रा छोड़कर गुस्से मे दौड़ते हुये अरब सागर में समा गई।पुराणों में कहा गया है कि जो पुण्य गंगाजी में स्नान करने से मिलता है वह पुण्य नर्मदा जी के दर्शन मात्र से मिल जाता है।
पुराणों के कथानक अनुसार-गंगा मैया ने एक बार दुखी होकर भगवान के पास गई और उन्होंने कहा कि हे प्रभु इतने पृथ्वी पर इतने सारे पापी मुझमे स्नान करते है उसके कारण मैं दूषित हो गई हूं मैं क्या करूँ?तब प्रभु ने कहा कि हे देवी आप नर्मदा जी में स्नान कर लीजिये आप के सारे कष्ट दूर हो जाएंगे।और मान्यता है कि *विशेष पर्वो पर माँ गंगा नर्मदा में स्नान करने आती है।*
*माँ नर्मदा से कोई भी मनोती मांगो माँ पूरी कर देती है*
इसकी गणना देश की सात पवित्र नदियों में की जाती है। *एकमात्र नर्मदा नदी ही ऐसी है जिसकी परिक्रमा की जाती है।*
साधु संत महात्मा ही नहीं आराधना करते हुए आस्तिक लोगों और भिन्न दलों के राजनेताओं द्वारा भी नर्मदा परिक्रमा की जारही है ।
यह भारत की पांचवी सबसे बड़ी नदी है।यह अमरकंटक से निकलती है और गुजरात राज्य में खम्बात की खाड़ी में गिरती है।कोई 1312किलोमीटर का सफर तय करती है।इसका वर्णन रामायण,महाभारत,स्कन्दपुराण में भी आता है। इस पर पुराण भी लिखा गया है।स्कंद पुराण में लिखा गया है कि यह प्रलयकाल में भी चिरस्थाई रहेगी।इस नदी का एक नाम रेवा भी कहा गया है।
*नर्मदा नदी तट पर विश्वस्तर के दो विशाल प्रोजेक्ट है।*
1 सरदार सरोवर डेम –
गुजरात में बड़ा जलाशय
जिसकी ऊंचाई 17929 मीटर है।
2 स्टेच्यू ऑफ यूनिटी
सरदार वल्लभभाई पटेल पर केंद्रित
विश्व आकर्षण का केंद्र है
इसकी ऊँचाई182 मीटर है।
भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक ओंकारेश्वर नर्मदा तट पर मध्यप्रदेश के बड़वाह के समीप है।
यहां 54 फ़िट ऊंचे पेडस्टल पर कोई 100 टन वजनी और 108 फ़िट की शंकराचार्य जी प्रतिमा स्थापित होने जारही है ।
*माघ माह की शुक्लपक्ष की सप्तमी को नर्मदा जयंती मनाई जाती है।*
शनिवार 28 जनवरी को सप्तमी तिथि को नर्मदा उत्सव का उत्साह सारे नर्मदा प्रवाह क्षेत्रों में होगा । नर्मदापुरम , खलघाट , होशंगाबाद आदि स्थानों पर माँ नर्मदा आरती होगी , चुनरी चढ़ाई जाएगी ।
ऐसी जीवनदायिनी माँ नर्मदा को कोटि कोटि नमन। नर्मदेश्वर शंकर रूप में विद्यमान हर कंकर नदी नर्मदा का ।