Special on Vijayadashami : बाली में प्रतिदिन रावण एवं लंका दहन होता है। मंदिरों में मूर्तियां नहीं रहती ।

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विजयादशमी पर विशेष

बाली में प्रतिदिन रावण एवं लंका दहन होता है। मंदिरों में मूर्तियां नहीं रहती ।

भगवान राम हमारे आराध्य है, चाहे हम हिन्दुस्तान में हो अथवा इंडोनेशिया के बाली में रहते हो । मुस्लिम बहुल इंडोनेशिया के बाली की बहुसंख्यक आबादी हिन्दू है। जहां प्रत्येक घर में मंदिर है । हमें यह देखकर आश्चर्य हुआ कि किसी भी मंदिर में कोई भी प्रतिमा नहीं है। कुछ घरों को देखकर लगता है कि घर की बनिस्बत मंदिर का क्षेत्रफल अधिक रहता है ‌।
बाली के किसी भी मंदिर में चाहे वह घर में हो अथवा सार्वजनिक स्थानों पर, मूर्ति नहीं होने का कारण यह है कि यह मंदिर एक विशेष प्रकार के हिंदू मंदिर है, जिसे “पुरा” कहा जाता है। पुरा मंदिरों में मूर्ति की जगह पर एक विशेष प्रकार का पत्थर या शिला होता है, जिसे “पेडिंग टेगें” कहा जाता है। पेडिंग टेगें एक विशेष प्रकार का पत्थर होता है, जो भगवान का प्रतीक माना जाता है। यह पत्थर मंदिर के गर्भगृह में रखा जाता है और इसकी पूजा की जाती है।

बाली के उलूवाटू टेंपल में हर शाम दो बार रामायण का मंचन होता है. यहां टिकट खरीदकर रामायण का मंचन देखा जा सकता है । ओपन थियेटर में अनेक देशों के लगभग एक हजार दर्शकों के साथ रामायण मंचन देखने का अनुभव अद्भुत रहता है । एक घंटे की प्रस्तुति में स्वर्ण हिरण, लक्ष्मण-रेखा, जटायु, हनुमान जी की पुंछ में लगी आग से लंका दहन एवं रावण वध के प्रसंग को प्रतिदिन दो बार जीवंत किया जाता है। हनुमान जी की क्रीड़ा तो सभी को बहुत ही आकर्षित करती है। इसी स्थान पर समुद्र में सूर्यास्त का मनोहारी दृश्य भी इसी समय होता है लेकिन हमने वरीयता नाट्य मंचन को दी थी। लंका दहन की प्रस्तुति में मंच पर आग भी प्रज्वलित रहती है। कुछ एक बार आग से दुर्घटनाएं भी हुई है, फिर भी प्रस्तुति में बदलाव नहीं किया गया है। इसका वीडियो भी आप देख सकते है।

उलूवाटू टेंपल में रामायण मंचन पर विभिन्न समयों में प्रमुख व्यक्तियों द्वारा प्रतिक्रियाएं व्यक्त की गई है – इंडोनेशिया के राष्ट्रपति जोको विडोडो ने कहा है, “उलूवाटू टेंपल में रामायण मंचन इंडोनेशिया की सांस्कृतिक विरासत का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है।” यूनेस्को ने उलूवाटू टेंपल को विश्व धरोहर स्थल घोषित किया है और रामायण मंचन को “मानवता की अमूर्त सांस्कृतिक विरासत” के रूप में मान्यता प्रदान की है। भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा है, “उलूवाटू टेंपल में रामायण मंचन भारत और इंडोनेशिया के बीच सांस्कृतिक संबंधों का एक महत्वपूर्ण प्रतीक है।” कला समीक्षकों ने कहा है, “उलूवाटू टेंपल में रामायण मंचन एक अद्वितीय और अविस्मरणीय अनुभव है, जो दर्शकों को हिंदू धर्म और संस्कृति के बारे में जानने का अवसर प्रदान करता है।” इन प्रतिक्रियाओं से पता चलता है कि उलूवाटू टेंपल में रामायण मंचन एक महत्वपूर्ण सांस्कृतिक कार्यक्रम है, जो विश्वभर में प्रशंसा प्राप्त कर रहा है। जिसके प्रत्यक्षदर्शी बनने का हमें भी अवसर मिला था।

इंडोनेशिया की रामायण में नौसेना के अध्यक्ष को लक्ष्मण कहा जाता है, जबकि सीता को सिंता कहते हैं. हनुमान तो इंडोनेशिया के सर्वाधिक लोकप्रिय पात्र हैं । हनुमान की लोकप्रियता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि आज भी हर साल इस मुस्लिम आबादी वाले देश के आजादी के जश्न के दिन यानी की 27 दिसंबर को बड़ी तादाद में राजधानी जकार्ता की सड़कों पर युवा हनुमान का वेश धारण कर सरकारी परेड में शामिल होते हैं । हनुमान को इंडोनेशिया में ‘अनोमान’ कहा जाता है । इंडोनेशिया की रामकथा में राम की नगरी को योग्या के नाम से जानते है। इसके साथ ही, इंडोनेशिया में राम कथा को ककनिन या काकावीन रामायण के नाम से जाना जाता है। इंडोनेशिया की रामायण के रचयिता कवि योगेश्वर बताए जाते हैं। इस रामायण में राजा दशरथ का नाम विश्वरंजन है, जो एक शैव यानी शिव की आराधना करने वाले हैं।
बाली की खासियत यह है कि वहां के हर घर, रेस्तरां एवं दुकानों के प्रवेश द्वार के सम्मुख केले के पत्तों से बनी प्लेट में एक दोना देवताओं के लिए फूल और एक-एक चम्मच चावल रखे जाते हैं। इस महत्वपूर्ण हिंदू परंपरा को “कैन्यांग” या “कन्यांग” कहा जाता है। यह परंपरा बाली की संस्कृति और धर्म में गहराई से जुड़ी हुई है। इस परम्परा का उद्देश्य होता है कि – फूल और पत्ते भगवान के लिए अर्पित किए जाते हैं, जो उनके आगमन का स्वागत करते हैं। फूल और पत्ते शुद्धता और पवित्रता का प्रतीक होते हैं, जो घर और दुकान को शुद्ध और पवित्र बनाते हैं। फूल और पत्ते सौभाग्य और समृद्धि का प्रतीक होते हैं, जो घर और दुकान को समृद्धि और सौभाग्य प्रदान करते है । फूल और पत्ते बुरी शक्तियों को दूर करने का काम करते हैं, जो घर और दुकान को सुरक्षित बनाते हैं। इन फूलों और पत्तों को विशेष रूप से तैयार किया जाता है और घर और दुकान के प्रवेश द्वार पर रखा जाता है, जो बाली की संस्कृति और धर्म का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है।

बाली में कैन्यांग के लिए विशेष फूल और पत्ते उपयोग किए जाते हैं, जिनमें से प्रमुख हैं- मारिजा, हिबिस्कस फूल, फ्रैंगिपानी फूल , नारियल के पत्ते एवं पाम के पत्ते । एक विशेषता बाली में और भी देखने को मिली । चंपा (फ्रैंगिपानी) फूल के पेड़ों की बहुतायत है। फूटपाथ, घर व होटलों में चंपा के पीले फूलों की बहुतायत है। इसके पश्चात हेलीकोनिया के फूलों के आकर्षक पौधे दिखाई देते है।

कुल मिलाकर बाली का हर घर मंदिर की तरह है, जहां नकारात्मकता के लिए जगह नहीं हैं।
महेश बंसल, इंदौर