Exciting Memoirs : “हक्की-बक्की रह गई मैं ” सामने छ-सात फीट की दूरी पर था काल !

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Exciting Memoirs : “हक्की-बक्की रह गई मैं ” सामने छ -सात फीट की दूरी पर था काल !

सुषमा व्यास”पारिजात”

पेड़-पौधों और जीव-जंतुओं से बचपन से ही लगाव रहा। पिताजी हमेशा मछली पालते थे, मिट्ठू पालते थे,एक छोटा सा हरा कछुआ भी पाला और पेड़ पौधों में मनी प्लांट, गुलाब आदि आदि लगाते रहते थे उन्हें देखकर थोड़ा-बहुत सहयोग हमारा भी हो जाता था।
शादी के बाद कुछ सालों तक तो इनसे कोई वास्ता नहीं रहा लेकिन जब पतिदेव व्यास जी 1987 में ग्वालियर चेंबर ऑफ कॉमर्स के सेक्रेट्री पद के लिए चुने गए तब वहाँ दूसरी मंजिल के किराये के मकान में एक बार एक मिट्ठू मिया हमारे अंगूर की बेल पर घायल होकर आये और बैठे थे।
हिम्मत बटोरकर मैंनें उसे धीरे से कपड़े की सहायता से पकड़ कर थोड़ा डिटॉल और मलहम पट्टी की और बिल्ली के डर से एक पिंजरा मंगवाकर सुरक्षा की दृष्टि से अपने ही पास रखकर उसकी देखभाल करने लगी। पता नहीं वहां ऐसा क्या था कि अक्सर मिट्ठू घायल होकर आते और मेरी देखभाल में मेरे ही पास रह जाते व्यासजी ने जाली से छत पर बहुत बड़ा पिंजरा भी बना दिया था जिसमें छ: मिट्ठू इकट्ठे हो गए थे चूंकि पिंजरा खुला ही रहता था सिर्फ रात में बंद करते थे सो
एक तोता तो जब रामायण आती थी मेरी गोद में बैठकर देखता था तथा खाना खाते वक्त भी गोद में ही बैठता था।
1991 में जब हम भोपाल में रहने आए तो घर के पीछे बहुत बड़ा आंगन था जिसमें बीच में तुलसी का पौधा बहुत बड़ा सा था। आसपास बाउंड्री के पास भी तुलसी ही तुलसी लगी थी। तीन बेटियां मेरी स्कूल जाती थी और व्यास जी फेडरेशन ऑफ चैंबर ऑफ कॉमर्स में सेक्रेटरी थे सो दोपहर में मैं अकेली रहती थी ग्वालियर से हमारे साथ आया एक पामेरियन भी था।
एक दिन दोपहर में मैं लगभग दो बजे सारे काम निपटा कर आराम कर रही थी तभी पोमेरेनियन जिसका नाम कुकी था जोर-जोर से भौंकने लगी, मैंने उसे आवाज लगाई कि “क्या है सोने दे थोड़ी देर हल्ला मत कर” लेकिन वह कहां मानने वाली थी वह तो मुझे सजग कर रही थी किसी अनहोनी घटना से।
जब मुझे समझ में आ गया कि कुछ गड़बड़ है इसलिए यह चुप नहीं हो रही है और मुझे बुला रही है तो मैं जाकर क्या देखती हूँ कि किचन के बाहर छ:-सात फीट की दूरी पर आंगन में बड़ा सा कोबरा फन फैलाए बैठा था और कुकी किचन में से चिल्ला रही थी मैं जैसे ही उठकर किचन तक पहुँची कुकी उसपर झपटने के लिए तैयार थी। मैंने झट से उसकी चेन पर पैर रखा और कहा कि “अरे इतना बड़ा है तुझे तो यूं ही लपेट लेगा” और उसे पकड़कर हक्की-बक्की रह गई क्या करूं क्या ना करूं? समझ में नहीं आ रहा था और ना ही कुछ बस में था अतः मैंनें एक हाथ से कुकी को कसकर पकड़ा और “ओम नमः शिवाय,ओम नमः शिवाय” जप शुरू किया तो क्या देखती हूं की तीसरे ही मंत्र जाप के समय नाग महाराज अपना फन धीरे से नीचे करके दीवार के सहारे पूरी तुलसी में से होते हुए बाहर चले गए।
सच में उस दिन दोनों तरह के अनुभव हुए एक तो मौत सामने देखकर घबराहट में कोई गलती करके या तो मैं भी भगवान को प्यारी हो जाती या जैसा कि मैंने किया कुछ नहीं हो सकता तो भगवान के भरोसे छोड़ दिया और उन्होंने मेरी रक्षा कर ली। दूसरा, जानवर कितना वफादार होता है कुकी जो समझ रही थी कि सामने खतरा है लेकिन वह मुझे बचाने के लिए खुद उस पर अटैक करने को तैयार हो गई और उस घटना के बाद भी 8-10 दिन तक वह मेरे साथ-साथ ही पैरों के पास लगकर घूमती रही।
बाद में जब हम दूसरे मकान में कोलार रोड पर कान्हा कुंज में रहे वहां भी जंगल ही जंगल आसपास था और साँप-बिच्छुओं से बहुत ज्यादा सामना होता रहता था। जाते ही स्वागत हुआ फिर वही शिवजी की कृपा से। एक दिन हम दोनों खिड़की में बैठे चाय पी रहे थे और धप्प की आवाज के साथ लाॅन में कुछ गिरा। हमनें सोचा कोई पक्षी गिरा है जैसे ही खिड़की से बाहर झाँका तो नाग महाराज उठने की कोशिश कर रहे थे। हमने झट से दरवाजा लगाया और खिड़की से देखने लगे। बगैैर किसी छेड़छाड़ के वे बाहर निकल गए लेकिन वो पहेली अब तक नहीं सुलझी कि वे गिरे कहाँ से? आसमान से?
मैं तो यही कहती हूँ कि “भगवान शिव-पार्वती जी भ्रमण कर रहे होगें तभी गले से एक सर्प फिसल गया।”
कहते ना बिल्ली बच्चे देकर सात घर बदलती है वहां भी अक्सर बिल्ली अपने बच्चों को लाती थी और बाहर कभी तखत के नीचे और मौका मिल जाता था तो कमरे में सोफे के नीचे छोड़ जाती थी। हम बड़े प्यार से उनकी देखभाल करते जब तक कि वह उसे सुरक्षित वापस ना ले जाती।
छोटे से बगीचे में दुनियाभर की बागवानी के साथ ही पक्षियों का भी बहुत आनन्द लिया।
अलग-अलग अनुभव
यादें और बातें तो असीमित है बस यही प्यार यही देखभाल जीवन को सार्थक करते हैं।

सुषमा व्यास”पारिजात”
इंदौर.

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