Stories of 2 Ex Chiefs : MP के 2 पूर्व मुखियाओं की व्यथा कथा
सुप्रसिद्ध लेखक डॉ. श्रीकांत द्विवेदी की एक ख़ास रिपोर्ट
अभी कुछ ही समय पहले की तो बात है । जब प्रदेश के दो प्रमुख राजनीतिक दलों के मुखिया अपने अपने समर्थकों के सिरमौर हुआ करते थे । दोनों ही मुखियाओं को पूरा विश्वास था कि प्रदेश की सत्ता की चाबी उन्हीं के हाथों में होगी । मगर समय के साथ हवा का एक ऐसा झोंका आया कि उम्मीदों का रंगमहल तिनकों की तरह बिखर गया । इतनी जल्दी सब कुछ बदल जाएगा , यह तो सोचा भी नहीं था । ऐसे में मन के भीतर पीड़ा उठना स्वाभाविक है ।
अरे जब क्रोंच पक्षी की वेदना से वाल्मीक आहत हो उठे तो इन पूर्व मुखियाओं का आहत होना भी स्वाभाविक ही है । तभी तो प्रदेश में मुख्यमंत्री पद की घोषणा के बाद ही एक मुखिया का दर्द छलक पड़ा और उन्होंने आवेश में यहां तक कह डाला कि ” मैं क्यों जाऊं दिल्ली । मैं मरना पसंद करूंगा , लेकिन दिल्ली नहीं जाउंगा । ” वहीं दूसरे मुखिया का भी दर्द लगभग कुछ ऐसा ही है ।
चुनाव के सवा माह बाद उन्होंने भी अपनी चुप्पी तोड़ी और कहां ” मैं दिल्ली नहीं जाउंगा , प्रदेश में रहकर ही जनता की सेवा करूंगा । ” इन्होंने सवा माह बाद ही अपनी चुप्पी क्यों तोड़ी , इसके पीछे भी कारण है । कारण यह कि जब कुछ बुरा हो जाएं तो सवा महीने तक कहीं जाना नहीं ।
कुछ खुलकर बोलना भी नहीं दोनों मुखियाओं के बयानों को महज एक संयोग ही माना जाएं । इधर एक मुखिया के तो होर्डिंग से फोटो ही गायब हो गए । यहां तक कि अब तो चरण कमल से कमल भी नदारद हो गए जो कि होना ही थे । कारण दुनिया उगते सूरज को ही नमन करती है ।
कुल मिलाकर समय बड़ा बलवान है। वाकई में समय से बड़ा बलवान और कोई नहीं । समय जब बदलता है तो सब कुछ बदल कर रख देता है । राजा को रंक और रंक को राजा बना देता है । इसलिए अच्छे दिनों का अहंकार मत करो और बुरे समय में धैर्य रखना लो ।
सब समय – समय की बात है । इसलिए हे पूर्व मुखियाओं ! बदलाव के इस दौर में इतना भी आहत होने की जरूरत नहीं है । समय बदलता रहता है । समय जाता है तो समय आता भी है ।सूर्यास्त का अर्थ यह तो नहीं कि अगले दिन सूरज निकलेगा ही नहीं । जरूर निकलेगा । अपनी भागम भाग भरी जिंदगी में अब थोड़ा सुकून का जो समय मिला है , इसे भी नियति का एक अच्छा निर्णय मान स्वीकार करो ।
यह समय अपने उन करीबियों में बांटे , जो अब भी निष्ठापूर्वक आपके साथ खड़े हैं । सबका न सही , ‘ कुछ का साथ , और कुछ का विकास ‘ को ही मूल मंत्र जान ले ।
डॉ.श्रीकांत द्विवेदी,धार
रचनाकार साहित्य नगरी धार के जानेमाने शिक्षाविद ,प्रखर वक्ता ,एवं व्यंगकार हैं .उन्हें सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में एक सामाजिक पहचान प्राप्त है .
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