Story of Rotten Sweet Balls: जब बदबूदार मुरमुरे मैंने कलेक्टर की टेबल पर रख दिये!
उस ज़िले में पंहुचते ही मैंने जान लिया कि यहाँ अव्यवस्था ही व्यवस्था बनी हुई है .अनियमितता अकेली चीज थी जो वहाँ नियमित थी .ज़िले भर को स्वच्छता का संदेश देने वाला मेरा कार्यालय ख़ुद ही गंदगी का गढ़ था .
मैंने आदतन नक़्शा उठाकर सबसे दूरस्थ गाँव छाँटा और बिना कोई सूचना दिये सीधा वहाँ पंहुचा.स्कूल ,आंगनबाड़ी ,बिजली ,पानी ,आवास ,शौचालय ,मध्याह्न भोजन सब का जायज़ा लिया .ग्रामीणों ने खुलकर अपनी तकलीफ़ें बताईं लेकिन मुझे सबसे ज़्यादा चुभा आंगनबाड़ी में सड़े कीड़े लगे बदबूदार मुरमुरे देखकर जो पोषण आहार के नाम पर बाँटे जा रहे थे .उन्हें खाकर बच्चे बीमार हुए तो उन्होंने खाने से मना कर दिया और वे आंगनबाड़ी में ही सड़ रहे थे .कार्यकर्ता ने बताया सर मैं ऊपर बता चुकी पर कोई सुनवाई नहीं है .मैंने उसका सैंपल लिया और क्रोध में जलता मुख्यालय लौटा .
वे सड़े बदबूदार मुरमुरे मैंने कलेक्टर की टेबल पर रख दिये तो वे हड़बड़ा गए .उन्होंने अनभिज्ञता बताई और सारा दोष मेरे से पहले के सीईओ ज़िला पंचायत पर थोप दिया .मैंने अपने आक्रोश को विनम्र बनाते हुए कहा -जो भी हो सर .आप आदेश जारी कीजिये कि सप्लायर इसे तत्काल वापस ले अन्यथा मुझे मुख्य सचिव महोदय को बताना होगा .वे तत्काल सहमत हो गए और वह अखाद्य दूषित मुरमुरे सभी केंद्रों से वापस उठा लिये गए .
मेरे मन का आक्रोश और दुख कुछ अन्य लोगों को दंडित कर भी शांत नहीं हो रहा था क्योंकि जो कुछ किया वह तात्कालिक हल ही था जबकि ज़रूरत स्थायी समाधान की थी .मध्याह्न भोजन का भी यही हाल था .पीर बबर्ची भिश्ती खर हर कोई बच्चों का खाना चुराने में लगा था .
कई दिनों के विचार मंथन के बाद मुझे लगा कि प्रशासनिक सख़्ती के साथ ग्राम समाज को भागीदार बनाना ज़रूरी है .सरपंचों, सचिवों, शिक्षकों, सामाजिक संगठनों, पत्रकारों के साथ खुले सम्मेलन कर अक्षयपात्र अभियान की रूपरेखा रची गई .आइये हम अपने बच्चों का खाना चुराना बंद करें .आइये अपने बच्चों को अच्छा भोजन दें -इस नारे के साथ अभियान प्रारंभ हुआ .चुराने की होड़ की जगह दान देने की ललक ने ले ली .ग़रीब, अमीर,किसान, सेठ सब आगे आये .सरपंच,सचिव, शिक्षक, आंगनबाड़ी गणमान्य नागरिक और शासकीय अधिकारी हर एक ने योगदान दिया .सामाजिक कार्यकर्ताओं और मीडिया ने इसकी ख्याति को देश भर में पंहुचा दिया .हमारे बच्चों को पोषक मध्याह्न भोजन मिलने लगा लेकिन मुझे असली मज़ा तब आया जब उन्हीं कलेक्टर ने जो ख़ासे नाराज़ और मेरी हरकतों से त्रस्त थे एक दिन मुझे बुलाकर कहा -तुम्हारे अभियान में मैं भी योगदान देना चाहता हूँ,मुस्कुराते हुए Yes Sir कहने के अलावा मैं और क्या कर सकता था .