रविवारीय गपशप :महाकुंभ में जाने की हिम्मत और संगम स्नान की जुगत!

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रविवारीय गपशप :महाकुंभ में जाने की हिम्मत और संगम स्नान की जुगत!

आनंद कुमार शर्मा

 

माघी पूर्णिमा के स्नान के साथ ही भारत की पवित्रतम नदी गंगा के किनारे भरने वाले विश्व के सबसे बड़े भौतिक , आध्यात्मिक और धार्मिक समागम का , जिसे महाकुम्भ कहते हैं , के समापन की प्रक्रिया शुरू हो गई है । यद्यपि अभी एक अंतिम प्रमुख स्नान महाशिवरात्रि का बाक़ी है , पर संतों के अखाड़े माघी पूर्णिमा के बाद अपने अपने गंतव्य को जाने लगते हैं , सो मेले में आकर्षण का वह एक बिंदु कम हो जाता है ।

बारह वर्षों में भारत के अलग अलग हिस्सों में जब भी कुम्भ के आयोजन होते हैं , हम पति पत्नी शुरुआत में यहीं निश्चय करते हैं , कि नहीं भाई भारी भीड़ है , हम नहीं जाएँगे , लेकिन जैसे जैसे कुम्भ यात्रा के विवरण आने लगते हैं , मन में अभीप्सा जागने लगती है और यात्रा का संयोग निकल ही आता है । इस बार भी ऐसा ही हुआ , चमकते दमकते ढेर सारे विज्ञापनों के आमंत्रण से भी हम अपने मन में उठने वाली आकांक्षा को दबाए रहे , पर सोशल मीडिया में चलते सचित्र वर्णनों ने हमें भी पाला बदलने को मजबूर कर दिया और हमने निश्चय किया कि पर्व स्नान में ना सही पर आगे पीछे संगम स्नान के लिए चलना ही चाहिए । यात्रा डाट कॉम जैसी साइट खँगाली तो पाया कि इंदौर से प्रयागराज के लिए हवाई जहाज का किराया बीस दिन में ही बीस गुना बढ़ चुका है , सो सरकार पर आम भारतीयों को तरह इसकी जिम्मेदारी डालते हुए हमने ट्रेन यात्रा की राह पकड़ी , पर मौनी अमावस्या पर हुई दुर्भाग्यपूर्ण घटना ने हमारे इस प्लान को भी ध्वस्त कर दिया । हम सोच रहे ही थे कि इस बार एक सौ चवालीस साल बाद भरने वाले इस महाकुंभ में हम शायद ही जा पायेंगे कि महाकाल मंदिर के पुजारी आशीष शर्मा जी ने हमें सलाह दी कि आप इलाहाबाद जाने का क्यों सोचते हैं , रीवा से जाने का प्लान करें , बाकी जिम्मेदारी उनकी । मुझे लगा शायद महाकाल रास्ता दिखा रहे हैं , सो अपने पुराने मित्र जामोद साहब को , जो रीवा कमिश्नर हैं , फ़ोन घुमाया । संयोग सारे बने और हम वंदे भारत से बैठ रीवा पहुँच कर अलसुबह प्रयागराज के लिए रवाना हो गए । प्रयागराज तक तो हम बिना किसी विघ्नबाधा के पहुँच गए , पर जब नैनी पुल पर पहुँचे तो वाहनों का ऐसा जाम था कि दस मीटर प्रति घंटे की रफ़्तार से वाहन चल पा रहे थे । मैंने आशीष पुजारी के दिए नंबरों पर फ़ोन लगाया तो सहायकों ने कहा आप गंगा तट तक आ जाओ हम सब करा देंगे । मुझे समझ आ गया कि कोई कितना भी बड़ा खैरख़्वाह क्यों ना हो , आगे पीछे हज़ारों वाहनों की लगी क़तारों से निकाल कर हमें संगम नहीं पहुँचा सकेगा । हमने निश्चय किया कि पैदल चलने में ही भलाई है पर तभी एक भले मानुष ने बताया कि उस पार जाने की प्रक्रिया में तो आप फँस जाओगे , आपको संगम ही जाना है तो अरेल घाट लगा हुआ है , आप यहाँ से चले जाओ । हमने गाड़ी दायीं ओर मोड़ी और कुछ ही देर में घाट तक पहुँच गए । घाट पर एक नई नाव पहली बार गंगा में उतरने को तैयार थी । नाव के मालिक बाप बेटे की मासूम जोड़ी से पूछा तो उन्होंने कहा , पाँच सौ रुपये रेट है पर नाव पहली बार गंगा में उतार रहे हैं तो जो चाहो बख्शीश दे देना मुझे लगा इन इण्टरपेन्योर बंदों का दिल तो इण्डिगो वाले राकेश गंगवाल और राहुल भाटिया की जोड़ी से भी बड़ा है । बहरहाल शान से बैठे और हाथ पकड़ कर साथ साथ से संगम पर स्नान किया और फिर इत्मीनान से वापस रीवा की ओर लौट चले । रीवा में सर्किट हाउस की चाय पीने के बाद जब हम मैहर रात्रि विश्राम के लिए रवाना हो रहे थे तो मैंने देखा सर्किट हाउस के चैकीदार भाई मेरे सहयात्री और साले साहब से अपने मोबाइल पर पड़े संदेश को दिखा कर पूछ रहे थे “ ये साहब कौन से जिले के कलेक्टर हैं ? मैंने असमंजस देखा तो सहायता करने की नीयत से पूछा क्या बात है । चौकीदार मेरे पास मोबाइल लेकर पहुँचे और बोले इन साहब की फ़ैमिली आज रात रुकने आ रही है , पर जगह का नाम पहली बार सुना लगता है , लगता है महाराष्ट्र का कोई जिला है । मैंने संदेश देखा उसमें पाण्डुरना कलेक्टर अजयदेव शर्मा का नाम था , मैं हँसा और चौकीदारी से बोला , भैया ये मध्यप्रदेश का नया जिला है , जो छिंदवाड़ा से अलग होकर बना है । भोलभाला चौकीदार थोड़ा झेंपा और मुस्कुरा कर हमें सलाम कर रवाना कर दिया ।