सूरत कोर्ट का फैसला नेताओं के साथ पत्रकारों के लिए भी चेतावनी

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सूरत कोर्ट का फैसला नेताओं के साथ पत्रकारों के लिए भी चेतावनी

राहुल गाँधी देश की पुरानी बड़ी पार्टी के नेता और प्रधान मंत्री पद के दावेदार कहे जाते हैं | इसलिए सूरत की अदालत द्वारा मानहानि के चार साल से चल रहे मामले में दो वर्ष की सजा और इसके कारण संसद सदस्यता रद्द होने के विरुद्ध ऊँची अदालतों से राहत पा सकते हैं और इसे राजनीतिक मुद्दा बनाकर जमीनी लड़ाई लड़ सकते हैं |लेकिन अदालती फैसला नेताओं और पत्रकारों के लिए गंभीर चेतावनी की घंटी है | मानहानि के कानून की आपराधिक धारा को हटाने के लिए मैं 2006 से कुछ वर्षों तक एडिटर्स गिल्ड के माध्यम से आवाज उठाता रहा हूँ और सुप्रीम कोर्ट के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश डॉक्टर के जी बालकृष्णनन और अन्य प्रमुख जजों , कानून मंत्रियों विशेषज्ञों से विस्तृत चर्चा की गई थी | न्यायमूर्ति बालकृष्णनन ने इस मामले में कोई अपील आने पर विचार का आश्वासन भी दिया था | लेकिन उनके सेवानिवृत्त होने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने और भी कड़ा रुख अपना लिया | वहीं सर्वोच्च न्यायालय के बजाय जिला अदालत से भी सजा होने पर संसद सदस्यता समाप्त होने के निर्णय पर कांग्रेस की मनमोहन सिंह सरकार नया कानून पास करना चाहते थे , लेकिन स्वयं राहुल गाँधी ने नाटकीय ढंग से प्रेस के सामने आकर उस दस्तावेज को फाड़कर उसका विरोध कर दिया | अब अपने ही बनाए गड्ढे से वह क़ानूनी दांव पेंच में फंस गए हैं |

नेता ही नहीं संपादक ,  प्रकाशक , संवाददाता या मीडिया से जुड़े व्यक्ति वर्षों से ऐसे प्रकरणों का सामना करते रहे हैं | कई नेता इस कानून का प्रयोग कर पत्रकारों को परेशान करते या दबाव बनाते रहे हैं | इनमें कांग्रेस के नेता भी हैं | मानहानि के आपराधिक प्रकरण की सुनवाई  में राहुल गाँधी जैसे नेता दो तीन बार उपस्थित होकर निर्णय के समय जाने का रास्ता अपना सकते हैं , लेकिन यदि जज चाहे तो हर तारीख पर व्यक्ति को उपस्थित रहना पड़ता है | मेरा अनुभव कुछ मामलों में दिलचस्प रहा है | हरियाणा के एक कांग्रेसी नेता ने लगभग 25 साल पहले दिल्ली और चंडीगढ़ के दो सम्पादकों , प्रकाशकों और संवाददाताओं पर मानहानि का मुकदमा एक जिला अदालत में किया | वही खबर दिल्ली के एक प्रमुखअंग्रेजी अख़बार में हूबहू छपी थी , लेकिन नेता ने उस पर प्रकरण दर्ज नहीं किया | जज साहब ने नेता के वकील के आग्रह पर हर तारीख पर हमें उपस्थित रहने का आदेश दिया | वर्षों तक सुनवाई हुई | अंत में मुझे दोषमुक्त कर दिया गया , लेकिन चंडीगढ़ के सम्पादक को निचली अदालत ने एक साल की सजा सुना दी | बहरहाल उच्च न्यायालय ने उस निर्णय को रद्द कर दिया | बिहार , छत्तीसगढ़ के कांग्रेसी नेताओं ने भी इस तरह के मामले दर्ज कर मुझे ही नहीं कई पत्रकारों को अनावश्यक तंग किया | हाँ कांग्रेस ही नहीं अन्य पार्टियों के नेता , उनके समर्थक या अधिकारी इस कानून का उपयोग करते रहे हैं | सामान्यतः यदि अदालत में खेद और क्षमा मांगने के लिए तैयार होने पर जज उदारतापूर्वक सजा से माफ़ी दे देते हैं | पत्रकार \ प्रकाशक सम्बंधित नेता का पक्ष प्रकाशित कर मामला निपटाने के लिए भी सहमत हो जाते हैं | राहुल गाँधी ने  सूरत की अदालत में अपने वक्तव्य पर खेद या क्षमा व्यक्त नहीं की | अन्यथा संभव था कि जज सजा कम कर देते या रद्द कर देते |

सूरत कोर्ट का फैसला नेताओं के साथ पत्रकारों के लिए भी चेतावनी

राहुल गांधी के खिलाफ यह मामला उनकी उस टिप्पणी को लेकर दर्ज किया गया था, जिसमें उन्होंने  कहा था, ‘सभी चोरों का समान उपनाम मोदी ही कैसे है?’ राहुल गांधी की इस टिप्पणी के खिलाफ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के नेता एवं विधायक और गुजरात के पूर्व मंत्री पूर्णेश मोदी ने शिकायत दर्ज कराई थी |सूरत की जिला अदालत ने ‘मोदी उपनाम’ बयान को लेकर कांग्रेस नेता राहुल गांधी के खिलाफ 2019 में दर्ज आपराधिक मानहानि के एक मामले में  दो साल कारावास की सजा सुनाई |  राहुल गांधी के वकील बाबू मंगुकिया ने बताया कि मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट एच एच वर्मा की अदालत ने राहुल गांधी को जमानत भी दे दी और उनकी सजा पर 30 दिन की रोक लगा दी, ताकि कांग्रेस नेता उसके फैसले को ऊपरी अदालत में चुनौती दे सकें| अदालत ने कांग्रेस नेता को भारतीय दंड संहिता की धाराओं 499 और 500 के तहत दोषी करार दिया | ये धाराएं मानहानि और उससे संबंधित सजा से जुड़ी हैं |यह फैसला सुनाए जाते समय राहुल गांधी अदालत में मौजूद थे. सजा का ऐलान किए जाने के बाद आरोपी राहुल गांधी से जब सजा को लेकर पूछा गया, तो कांग्रेस नेता ने अदालत में कहा  कि उन्होंने जो भी भाषण दिया था वह प्रजा के हित में उनके कर्तव्य के हिसाब से दिया था | अदालत ने अपने फैसले में कहा कि आरोपी के द्वारा विवादित बयान को ध्यान में लिया गया है और नामदार सुप्रीम कोर्ट द्वारा आरोपी को अलर्ट रहने की सलाह  दिए जाने के बावजूद आरोपी के कंडक्ट में कोई बदलाव देखने को नहीं मिला है |  इसके अलावा आरोपी खुद सांसद हैं और सांसद के तौर पर प्रजा को इस तरह से संबोधित करना बेहद गंभीर है क्योंकि सांसद की हैसियत से किसी व्यक्ति अथवा प्रजा को संबोधन करते वक्त इसका असर बड़े पैमाने पर होता है और उसके चलते गुनाह की गंभीरता ज्यादा है | ‘अदालत ने कहा, ‘आरोपी को कम सजा दी जाए, तो जनता में गलत संदेश जाएगा और यह बदनामी के लिए पूर्ण नहीं होगा और कोई भी व्यक्ति फिर बाद में आसानी से किसी भी व्यक्ति की बदनामी करेगा. इन तमाम हकीकत हो ध्यान में लेते हुए आरोपी को कथित गुनाह के संबंध में 2 साल की सजा करने का फरमान किया जाता है | ‘

गुजरात के बाद अब एक और राज्य में मुश्किलें राहुल गांधी का इंतजार कर रही हैं. दरअसल झारखंड राज्य में भी राहुल गांधी के खिलाफ तीन मामले चल रहे हैं. माना जा रहा है कि इन मामलों में भी राहुल के खिलाफ फैसला आ सकता है. ऐसे में कांग्रेस सांसद के लिए मुश्किलों का दौर थमने वाला नहीं है बल्कि बढ़ने वाला दिखाई दे रहा है  |. झारखंड में  राहुल गांधी के खिलाफ कुल तीन मामले चल रहे हैं, लेकिन इनमें से एक मामला मोदी सरनेम से भी जुड़ा हुआ है |

सूरत कोर्ट का फैसला नेताओं के साथ पत्रकारों के लिए भी चेतावनी

2019 में कांग्रेस सांसद राहुल गांधी ने झारखंड की राजधानी रांची से रैली की शुरुआत की थी| इस दौरान राहुल गांधी रैली को संबोधित भी किया था और इस दौरान उन्होंने कहा था कि ‘सभी चौकीदार चोर हैं’ कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष ने इसी भाषण को फिर आगे बढ़ाया और एक आपत्तिजनक बयान भी दे डाला था |राहुल गांधी के इसी बयान को लेकर इसके बाद लगातार कई राज्यों में शिकायतें दर्ज की गई थीं. इनमें रांची के साथ-साथ बिहार की राजधानी पटना, मुजफ्फरपुर, कटिहार और देश के दक्षिण राज्य कर्नाटक में भी शिकायत दर्ज की गई थी. यानी राहुल गांधी के खिलाफ मोदी सरनेम को लेकर कई कोर्ट में मामला चल रहा है |इसके अलावा राहुल गांधी पर झारखंड में जो दो मामले चल रहे हैं वे  बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष को लेकर दिए विवादित बयान के चलते चल रहे हैं | दरअसल राहुल गांधी ने कांग्रेस के दिल्ली अधिवेशन के दौरान कहा था कि, कांग्रेस में कोई  हत्यारा राष्ट्रीय अध्यक्ष नहीं बन सकता है ऐसा सिर्फ भारतीय जनता पार्टी में हो सकता है | कांग्रेस सांसद के इस बयान को लेकर चाईबासा और रांची में मामला दर्ज किया गया था |

यही कारण है कि अब बड़े वकील , पूर्व महाधिवक्ता या पूर्व न्यायाधीश इस बात पर जोर दे रहे हैं कि नेता बड़ा हो या छोटा , अथवा संपादक हो या पत्रकार अपनी बात कहते , लिखते या प्रकाशित प्रसारित करते हुए कानून और मर्यादा का ध्यान रखें | अभिव्यक्ति के अधिकार की भी संवैधानिक सीमाएं तय हैं | स्वतंत्रता को स्वछंदता में नहीं अपनाया जा सकता है |

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

Author profile
ALOK MEHTA
आलोक मेहता

आलोक मेहता एक भारतीय पत्रकार, टीवी प्रसारक और लेखक हैं। 2009 में, उन्हें भारत सरकार से पद्म श्री का नागरिक सम्मान मिला। मेहताजी के काम ने हमेशा सामाजिक कल्याण के मुद्दों पर ध्यान केंद्रित किया है।

7  सितम्बर 1952  को मध्यप्रदेश के उज्जैन में जन्में आलोक मेहता का पत्रकारिता में सक्रिय रहने का यह पांचवां दशक है। नई दूनिया, हिंदुस्तान समाचार, साप्ताहिक हिंदुस्तान, दिनमान में राजनितिक संवाददाता के रूप में कार्य करने के बाद  वौइस् ऑफ़ जर्मनी, कोलोन में रहे। भारत लौटकर  नवभारत टाइम्स, , दैनिक भास्कर, दैनिक हिंदुस्तान, आउटलुक साप्ताहिक व नै दुनिया में संपादक रहे ।

भारत सरकार के राष्ट्रीय एकता परिषद् के सदस्य, एडिटर गिल्ड ऑफ़ इंडिया के पूर्व अध्यक्ष व महासचिव, रेडियो तथा टीवी चैनलों पर नियमित कार्यक्रमों का प्रसारण किया। लगभग 40 देशों की यात्रायें, अनेक प्रधानमंत्रियों, राष्ट्राध्यक्षों व नेताओं से भेंटवार्ताएं की ।

प्रमुख पुस्तकों में"Naman Narmada- Obeisance to Narmada [2], Social Reforms In India , कलम के सेनापति [3], "पत्रकारिता की लक्ष्मण रेखा" (2000), [4] Indian Journalism Keeping it clean [5], सफर सुहाना दुनिया का [6], चिड़िया फिर नहीं चहकी (कहानी संग्रह), Bird did not Sing Yet Again (छोटी कहानियों का संग्रह), भारत के राष्ट्रपति (राजेंद्र प्रसाद से प्रतिभा पाटिल तक), नामी चेहरे यादगार मुलाकातें ( Interviews of Prominent personalities), तब और अब, [7] स्मृतियाँ ही स्मृतियाँ (TRAVELOGUES OF INDIA AND EUROPE), [8]चरित्र और चेहरे, आस्था का आँगन, सिंहासन का न्याय, आधुनिक भारत : परम्परा और भविष्य इनकी बहुचर्चित पुस्तकें हैं | उनके पुरस्कारों में पदम श्री, विक्रम विश्वविद्यालय द्वारा डी.लिट, भारतेन्दु हरिश्चंद्र पुरस्कार, गणेश शंकर विद्यार्थी पुरस्कार, पत्रकारिता भूषण पुरस्कार, हल्दीघाटी सम्मान,  राष्ट्रीय सद्भावना पुरस्कार, राष्ट्रीय तुलसी पुरस्कार, इंदिरा प्रियदर्शनी पुरस्कार आदि शामिल हैं ।