

Switzerland Glacier Collapse: स्विट्जरलैंड में टूट गया पहाड़, ग्लेशियर ढहने से मची तबाही
Switzerland Glacier Collapse: स्विट्जरलैंड के वैलैस कैंटन में स्थित सुंदर पहाड़ी गांव ब्लैटन जलवायु संकट की चपेट में आ गया है। आल्प्स पर्वत श्रृंखला में स्थित ब्लैटन गांव में भयंकर प्राकृतिक आपदा ने तबाही मचा दी। 28 मई को यहां अचानक एक विशाल ग्लेशियर का हिस्सा ढह गया। ग्लेशियर ढहने की वजह से भूस्खलन हुआ। बर्फ, कीचड़ और चट्टानों का विशाल सैलाब गांव पर कहर बनकर टूटा और जो भी सामने आया उसे अपने साथ बहा ले गया।
“द वेदर चैनल ” की रिपोर्ट के अनुसार ग्लेशियर ढहने के बाद मची तबाही का मंजर साफ नजर आ रहा है। ड्रोन फुटेज में देखा गया कि ब्लैटन गांव का अधिकांश हिस्सा कीचड़, पत्थर और बर्फ की मोटी परत से ढक गया है। राहत की बात यह है कि करीब 300 लोगों को पहले ही सुरक्षित निकाला जा चुका था।
Aerial footage of Blatten in Switzerland after glacier collapse. pic.twitter.com/TsmSXhUgIa
— Disasters Daily (@DisastersAndI) May 29, 2025
वैज्ञानिकों ने पहाड़ पर क्या देखा?
बता दें कि, वैज्ञानिकों ने 19 मई को ही ब्लैटन गांव को खाली कराने का आदेश दे दिया था। वैज्ञानिकों ने पहाड़ में दरारें देखी थीं और ग्लेशियर के खिसकने की संभावना जताई थी। इस बीच ब्लैटन के मेयर मैथियास बेलवाल्ड ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में भावुक होते हुए कहा, “हमने अपना गांव खो दिया, यह अब मलबे में दफन है, लेकिन हम इसे फिर से बनाएंगे।
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स्विट्जरलैंड के राष्ट्रपति ने क्या कहा?
स्विट्जरलैंड के राष्ट्रपति कारिन केलर-सटर ने सोशल मीडिया मंच एक्स पर स्थानीय लोगों के प्रति संवेदना व्यक्त करते हुए कहा, “अपना घर खोना बेहद दुखद है।” प्रशासन ने घाटी की मुख्य सड़क को बंद कर दिया है और लोगों से इलाके से दूर रहने की अपील की है।
दुनिया के लिए अलार्मिंग सिचुएशन?
स्विट्जरलैंड की यह घटना दुनिया के लिए अलार्मिंग सिचुएशन है। साफ है कि अगर अब भी जलवायु परिवर्तन के खिलाफ ठोस कदम नहीं उठाए गए तो ऐसी आपदाएं विनाशकारी साबित होंगी। स्विस पर्यावरण वैज्ञानिक क्रिश्चियन ह्यूगेल का मानना है कि यह आपदा परमा-फ्रॉस्ट (स्थायी रूप से जमी बर्फ) के पिघलने की वजह से आई, जिसने पहाड़ को कमजोर कर दिया। आल्प्स पर्वत श्रृंखला में बीते एक सदी में ऐसी तबाही नहीं देखी गई थी।
Aerial footage of Blatten in Switzerland after glacier collapse. pic.twitter.com/TsmSXhUgIa
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बचाव दल खोजी कुत्तों और थर्मल ड्रोन के साथ एक 64 साल के लापता व्यक्ति को ढूंढने में जुटे, लेकिन मलबे की अस्थिरता के कारण गुरुवार दोपहर को खोज रोकनी पड़ी. पास की रीड बस्ती में रहने वाले 65 साल के वर्नर बेलवाल्ड का 1654 में बना पुश्तैनी लकड़ी का घर भी इस आपदा में बह गया. उन्होंने दुखी मन से कहा, ‘अब वहां कुछ नहीं बचा. ऐसा लगता है, मानो वहां कभी कोई बस्ती रही ही नहीं हो.’ वैज्ञानिकों का कहना है कि जलवायु परिवर्तन इस त्रासदी की बड़ी वजह है. ग्लेशियर मॉनिटरिंग इन स्विट्जरलैंड (GLAMOS) के प्रमुख मैथियास हस ने बताया कि गर्मी बढ़ने से पर्माफ्रॉस्ट (हमेशा जमी रहने वाली मिट्टी और चट्टानें) पिघल रही है, जिससे चट्टानें ढीली हो रही हैं. इस हादसे में करीब 90 लाख मीट्रिक टन मलबा गांव पर गिरा, जिससे इसे दोबारा बसाने में सालों लग सकते हैं.
लोंजा नदी के रास्ते में मलबे का बांध बनने से हर दिन 10 लाख क्यूबिक मीटर पानी जमा हो रहा है. ज्यूरिख यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर क्रिश्चियन ह्यूगल ने चेतावनी दी कि इससे निचले गांवों में बाढ़ आ सकती है. कुछ पड़ोसी गांवों के लोगों को भी एहतियातन हटा लिया गया है. यह हादसा अल्पाइन क्षेत्रों में बढ़ते खतरे की घंटी है. जलवायु परिवर्तन के कारण ग्लेशियर और पहाड़ कमजोर हो रहे हैं, जिससे ऐसी आपदाएं अब आम हो सकती हैं. ब्लाटेन का दर्दनाक मंजर पूरी दुनिया के लिए एक सबक है कि प्रकृति के साथ छेड़छाड़ की कीमत कितनी भारी हो सकती है.