सोना ले जा रे ,चांदी ले जा रे ….

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वो दौर भी जंग का ही था.बात शायद 1971 की है.एक फिल्म आई थी ; ‘मेरा गांव,मेरा देश’.इस फिल्म का गाना था ‘ सोना ले जा रे,चांदी ले जा रे ,दिल कैसे दे दूँ कि जोगी की बड़ी बदनामी होगी ‘.आज पचास साल बाद भी ये गाना सार्थक हो रहा है. जोगी की बदनामी न हो इसलिए सोना-चांदी के भाव आसमान छूने लगे हैं और इसकी वजह है यूक्रेन पर मंडरा रहे युद्ध के बादल .

युद्ध के बादलों का सोने-चांदी से सीधा रिश्ता बताया जाता है .कहते हैं कि जब भी दुनिया में युद्ध की काली छाया मंडराती है तब -तब दुनिया के शेयर बाजार अस्थिर हो जाते हैं. निवेशक अपना पैसा बाजार से निकालकर सोना-चांदी जैसी कीमती धातुओं में निवेश करने लगते हैं और इस तरह इन धातुओं के दाम बढ़ जाते हैं .अब सोने के दाम 50 हजार प्रति 10 ग्राम को पार कर गए हैं.चांदी भी बल्लियों उछल रही है ,और अपने जोगी की बदनामी भी फिलहाल खतरे में नहीं है .

हम सनातनी लोग शुरू से स्वर्ण प्रेमी रहे हैं. सोने का हिरण हमारी कमजोरी है और इसी फेर में सोने की लंका तक राख में बदल जाती है .दुनिया में एक हम ही हैं जो सबसे ज्यादा सोना खरीदते हैं ,इतना खरीदते हैं कि हमें दूसरे देशों से सोना लाना पड़ता है .हम भारतीयों ने आदिकाल से आजतक इतना सोना खरीदा कि दुनिया हमारे देश को सोने की चिड़िया समझने लगे और हमें लूटने तमाम सीमाएं पार करते हुए यहां आ धमके .इस सोने के चक्कर में हमें गुलामी झेलना पड़ी और जिस तरह से हम आजाद हुए ,सबको पता है ही .

सोने -चांदी का हमारे यहां जोगियों से सीधा रिश्ता है. हमारे लोक जीवन में भी इन तीनों की लगातार चर्चा होती है .सिनेमा हो या समाज सोना-चांदी और जोगियों के इर्द-गिर्द घूमता है .युगों पहले हमारे यहां राजेंद्र कृष्ण ने फिल्म नागिन के लिए एक गीत लिखा था

-‘काशी देखी मथुरा

देखी देखे तीरथ सारे

कही न मन का मीत मिला

तो आया तेरे द्वारे

तेरे द्वार खड़ा एक जोगी

तेरे द्वार खड़ा एक जोगी

न मांगे ये सोना

चाँदी माँगे दर्शन देवी

तेरे द्वार खड़ा एक जोगी

आज पचास साल बाद हमारे देश का सौभाग्य है कि हमारे पास फकीर प्रधानमंत्री और योगी जैसा योग्य मुख्यमंत्री भी है .इन दोनों को सोने-चांदी से कोई मोह नहीं है सिवाय सत्ता के .सत्ता के मोह में ये दोनों कुछ भी कर सकते हैं ,कर रहे हैं .बहरहाल बात सोने-चांदी की हो रही थी .मुझे याद है 1968 में सोने के दाम प्रति दस ग्राम 155 रूपये के आसपास थे .मेरी माता जी उस समय मेरे पिता की जेब से पैसे निकाल-निकाल कर जो कुर्चा करतीं थीं उससे वे केवल और केवल सोना खरीदती थीं.पिताश्री की नजरों से बचाकर माताश्री ने जितना सोना खरीदा था उससे उनके भतीजे भी मालामाल हो गए थे और बाद में वो ही सोना संकटकाल में बेचकर घर की लाज बचाई गयी .

सोना लाज बचाने के काम ही आता है. सरकार की लाज भी जब खतरे में होती है तो सरकार भी अपना सोना बेच देती है या गिरवी रख देती है .आज सोने की चमक बढ़ी है तो सोने के खरीदारों की भीड़ उमड़ पड़ी है लेकिन देश के वे 80 करोड़ लोग सोना नहीं खरीद पा रहे हैं जो सरकार के मुफ्त अनाज के ऊपर ज़िंदा हैं .क्या ही अच्छा हो जो सरकार चुनावों के इस सीजन में इन 80 करोड़ लोगों को भी ज्यादा नहीं तो पांच-पांच ग्राम सोना तो मुफ्त में दे दे .

भारत की खासियत है कि उसने बड़े से बड़े संकट झेले लेकिन सोना-चांदी खरीदना कभी बंद नहीं किया फिर चाहे वो आपदा अकाल की रही हो या महामारी की .भारत हर साल कई सौ टन सोना विदेशों से खरीदता है। इसका सबसे बड़ा कारण है कि भारत में सोने का उत्पादन नहीं होता है। भारत में सोने और पेट्रोल का आयात ही सबसे बड़ा आयात है।हम पेट्रोल -डीजल के दाम बढ़ने पर भले ही हो-हल्ला मचाएं लेकिन सोना-चांदी के दाम बढ़ने पर कभी हल्ला नहीं मचाते,उलटे खुश ही होते हैं .इसलिए सरकार भी इस तरह से लगभग बेफिक्र ही रहती है .

कोई माने या न माने लेकिन सोने में दम तो है. आज दुनिया के तमाम शेयर बाजार जब तब डुबकी लगते हैं किन्तु मजाल कि सोने के भाव एक बार बढ़कर कभी घटे हों ! जबकि सोना न खाया जाता है और न इलाज में काम आता है .लेकिन सोना है तो सब कुछ है और यदि सोना नहीं है तो कुछ भी नहीं है .हमारे यहां तो सोना ही गंगा की तरह पावन धातु मानी जाती है.इसीलिए दान-दक्षिणा में इसका महत्व सबसे ज्यादा है. यदि स्वर्ग तक जाने की आभासी इच्छा भी पूरी करना हो तो हम अपने पुरखों के लिए सोने-चांदी की नसेनी बनाकर देते हैं .भले ही इन सांकेतिक नसैनियों से पुरखों के बजाय पंडित जी स्वर्ग का सुख लेते हों .

सोना-चांदी के कारोबार को समझने वाले कहते हैं कि अगले तीन साल में सोना 55 हजार रूपये प्रति दस ग्राम तक पहुँच जाएगा .पिछले पचास साल में भले ही हमारे सामाजिक मूल्य,और राजनीति में गिरावट आयी हो,आम आदमी की जिंदगी सस्ती हुई हो किन्तु सोना कभी सस्ता नहीं हुआ .सोना लगातार आगे बढ़ा है .यदि ऐसी ही सोनी चल दुनिया और भारत में विकास की होती तो धरती कब कि स्वर्ग बन चुकी होती ,लेकिन ऐसा होता नहीं है ,शायद होगा भी नहीं .नेहरू युग [1964 ] में सोना प्रति 10 ग्राम (24 कैरेट) ₹ 63.25 था. 57 साल बाद आज [मोदी युग ]2021 में उतना सोना ₹ 46,635.00 में मिलता है.यानि हम आज भी स्वर्णयुग में हैं .यदि आपकी आती में पैसा है तो उसे ढीली कीजिये और सोना ले लीजिये ,भविष्य के काम आएगा .

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RAKESH ANCHAL
राकेश अचल

राकेश अचल ग्वालियर - चंबल क्षेत्र के वरिष्ठ और जाने माने पत्रकार है। वर्तमान वे फ्री लांस पत्रकार है। वे आज तक के ग्वालियर के रिपोर्टर रहे है।