वो नए साल की रात, पान की तलब और जांगड़े साहब की व्यग्रता!

वो नए साल की रात, पान की तलब और जांगड़े साहब की व्यग्रता!

आज नए साल का आगाज़ हो चुका है, सभी पाठकों को नये वर्ष की ढेर सारी बधाइयाँ और शुभकामनाएँ। नए वर्ष को लेकर सब की अपनी अपनी योजनाएं बन चुकीं हैं, कई ढेर सारे ऐसे संकल्प भी पारित हो चुके होंगे जो अब आने वाले दिनों में टूटेंगे । मुझे याद है हमारे पढ़ने के दिनों में नए साल का मतलब था दूरदर्शन में साल की आखिरी रात का प्रोग्राम देखना। नौकरी में आने के बाद ज़रूर सरकारी महकमे के बीच नए वर्ष के आगमन को लेकर रखी जाने वाली पार्टियों में शिरकत होने लगी। इंदौर में जब मेरी पदस्थापना बतौर अपर कलेक्टर हुई तो नए साल में मैंने इंदौर के एसडीओ मनोज पुष्प से पूछा की नए साल का क्या कार्यक्रम है? पता चला कि रेसीडेंसी क्लब में नए वर्ष के आगमन को लेकर कार्यक्रम तो होते हैं पर बहुत कम अधिकारी इसमें शिरकत करते हैं।

हमने तय किया कि इस बार कलेक्ट्रेट में पदस्थ सभी साथी साथ में ही नया साल मनाएंगे। सारे लोगों के आगमन व पास आदि की व्यवस्था का ज़िम्मा मनोज पुष्प ने लिया और तब इंदौर में पदस्थ रहे सभी साथी विवेक श्रोत्रीय, गौतम सिंह, नारायण पाटीदार, महेश चौधरी साहब व श्रीप्रकाश जांगरे को मैंने मनाया कि आज सब साथ में सपरिवार नए साल का इस्तक़बाल करेंगे।

श्रीप्रकाश जांगरे तब इंदौर में अपर कलेक्टर थे और उनका परिवार भोपाल में रहा करता था, इस वजह से श्री जांगरे बड़ी बेदिली से इंदौर में रहा करते थे । पार्टी में सभी साथी अपने अपने परिवार सहित पधारे थे और श्रीमती जांगरे भी भोपाल से पधारी थीं। पार्टी शुरू हुई और जैसा कि अक्सर होता है , धीमे धीमे महिलाओं का ग्रुप अलग बन गया, पुरुष अलग ग्रुप में अलग विभाजित हो गए और बच्चे अलग।

नए साल के आगाज़ को कुछ समय बाक़ी था कि हममें से ही किसी ने ये सलाह दी कि नए वर्ष में चल के कहीं पान खाया जाये। हम सब इकट्ठे होकर इतनी रात पान की दुकान की तलाश में निकल पड़े । निकलते समय महिलायें अलग गाड़ी में और हम पुरुष वर्ग अलग गाड़ियों में हो गए। इतनी रात पान की कोई दुकान खोजना आसान नहीं था, नतीजतन खोज में दोनों गाड़ियां अलग अलग हो गयीं। जांगरे साहब साल भर से अपने परिवार से दूर नौकरी कर रहे थे और उनकी ये परम इच्छा थी कि नए वर्ष में घड़ियों में बारह बजते ही वे इसका आग़ाज़ भाभी जी के साथ ही करें, पर दोनों गाड़ियां अलग अलग थीं।

अब जांगड़े साहब की व्यग्रता बारह बजने के नज़दीक आते ही बढ़ने लगी और पान की तलाश छोड़, यह होड़ मचने लगी कि मैडम लोगो की गाड़ियां ढूँढी जाएँ कि वे सब आख़िर कहाँ हैं! फ़ोन खनख़नाए जाने लगे और बारह बजते बजते आखिर हमने एक दूसरे को ढूंढ ही लिया। जांगड़े साहब को चैन आया और दोनों पति पत्नी इतने प्रेम से मिले कि हमें सारे ऐतिहासिक प्रेमी प्रेमिका याद आ गए। सचमुच सरकारी नौकरी में मजबूरन पति पत्नी को एक दूसरे से दूर रहना ही पड़ता है और कभी कभी तो ऐसे क्षणों में भी जब एक-दूसरे के समीप रहना निहायत ही ज़रूरी रहता हो तब भी ये दूर दूर ही बने रहते हैं । पर हम अकेले नहीं हैं।

सेना के जवान, मज़दूरी की तलाश में बाहर गए मज़दूर साथी, अखबारनवीस और अत्यावश्यक सेवाओं में लगे भाई सभी अपने परिवारों से दूर रह कर ही नए साल का स्वागत करते हैं, तो सबसे पहले ऐसे ही लोगों को इस कामना से नए साल की बधाई कि जल्द ही वे अपने परिवारों के बीच हों ।