नवगठित मध्यप्रदेश ने “मामा” को दिया जी भर…शिव की शायद लौटाने की कोशिश,कि राज्य बने आत्मनिर्भर…

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एक नवंबर 1956 को गठित हुए मध्यप्रदेश को एक नवंबर 2000 को एक बार फिर नए रूप में सामने आना पड़ा, जब बंटवारे के बाद छत्तीसगढ़ अलग राज्य बना। ऐसे में क्षेत्रफल के आधार पर देश के इस सबसे बड़े राज्य को यह तमगा खोकर नवगठित मध्यप्रदेश के बतौर संतोष करना पड़ा। छ्त्तीसगढ़ भी मध्य प्रदेश से अलग होकर भारत का 26वां राज्य बन गया। इस नवगठित मध्यप्रदेश के 1 नवंबर 2021 को 21 साल पूरे करने में सबसे बड़ा रिकार्ड यदि कुछ है तो वह है शिवराज सिंह चौहान के मुख्यमंत्री रहते हुए 14 साल 7 महीने 26 दिन पूरे करना।

ब्रेक से पहले लगातार तीन बार मुख्यमंत्री रहते हुए शिवराज ने 13 महीने 17 दिन का रिकार्ड बनाया था, तो ब्रेक के बाद मुख्यमंत्री रहते हुए शिवराज को आज एक साल सात महीने 9 दिन पूरे हो गए हैं। शायद ही मध्यप्रदेश में मुख्यमंत्री के पद पर एक व्यक्ति के आसीन रहने का रिकार्ड कभी टूट पाए। और कहा जाए तो नवगठित मध्यप्रदेश ने शिवराज को जितना जी भर दिया है, अब शायद किसी और को नहीं दे पाएगा। देश-दुनिया अगर किसी राजनेता को “मामा” के उपनाम से जानती है, तो वह शिवराज को इस नवगठित मध्यप्रदेश की ही सौगात है।

कौन बनेगा करोड़पति में जब यह सवाल पूछा गया था, तो मामा और मध्यप्रदेश दोनों ही पूरक नजर आए थे। राजनेताओं में शायद “राष्ट्रपिता”, “चाचा”, ” नानाजी” के बाद “मामा” उपनाम ही सर्वाधिक लोकप्रिय हुआ है, जो राजनेता की शख्सियत को रिश्ते में बांधता है। तो अब मामा भी चौथी बार मुख्यमंत्री बनाकर प्रदेश ने उन्हें जिस सम्मान और प्रतिष्ठा से नवाजा है, उसके बदले में कुछ लौटाने के भाव के साथ मध्यप्रदेश को आत्मनिर्भर बनाने का लक्ष्य पाने की दिशा में आगे बढ़ रहे हैं।

और आलोचना से अलग यदि स्वीकार किया जाए तो मामा के रहते मध्यप्रदेश कृषि, सिंचाई, सड़क, बिजली, पानी, रोटी, कपड़ा और मकान सहित विभिन्न क्षेत्रों में बहुत कुछ बेहतर हासिल कर पाया है। बीमारू का तमगा पीछे छूटा है, तो अब आत्मनिर्भर मध्यप्रदेश का सपना देखने की हिम्मत भी जुटा रहा है। हालांकि इस बात से मुंह नहीं मोड़ा जा सकता है कि बहुत कुछ हुआ है, तो बहुत कुछ होना बाकी है।

सकारात्मक नजरिये से देखकर जिस तरह उपलब्धियों को नकारा नहीं जा सकता, ठीक उसी तरह विपक्षी नजर से नकारात्मक नजरिये से देखकर कमियों को दूर करने की गुंजाइश पर भी परदा नहीं डाला जा सकता। पर “मामा” में कुछ तो है, जो प्रदेश और यहां के निवासियों ने जी भर प्यार दिया और पिछली तीन पारियों से अलग अब “मामा” का मन भी मध्यप्रदेश में क्रांतिकारी बदलाव लाने को तत्पर है। अब वह और ज्यादा गर्व से कहते हैं कि बहनों-भाइयों बिलकुल चिंता मत करो मध्यप्रदेश में “मामा” का राज है और भाजपा की सरकार है।

तो मूल बात यही है कि मध्यप्रदेश का स्थापना दिवस आज 1 नवंबर को “आत्म-निर्भर मध्यप्रदेश” के रूप में मनाया जाएगा। राज्य स्तरीय आयोजन  में “आत्म-निर्भर मध्यप्रदेश के लिए जन-भागीदारी अभियान” की थीम पर प्रस्तुति होगी। आत्मनिर्भर मध्यप्रदेश का लक्ष्य हासिल होगा तो शायद मध्यप्रदेश की आदिवासी, अनुसूचित जाति, पिछड़ा वर्ग और सामान्य वर्ग यानि पूरी आबादी के गरीब वर्ग के युवाओं के हाथों को रोजगार मिलेगा। उनकी आमदनी बढ़ेगी, तो घर-परिवार फलेंगे-फूलेंगे और मध्यप्रदेश आगे बढकर देश का नंबर एक राज्य बनने का लक्ष्य भी हासिल करेगा।

आत्मनिर्भर मध्यप्रदेश कैसा हो, अगर पूछा जाए तो मन की बात सामने आती है कि गरीबी से मुक्त हो, माफियाओं से मुक्त हो, अपराध और अपराधियों से मुक्त हो, नशामुक्त हो, सामाजिक भेदभाव से मुक्त हो, बेरोजगारी से मुक्त हो, घोटालों से मुक्त हो, शोषण से मुक्त हो, वाहन दुर्घटनाओं से मुक्त हो…तो विकास से युक्त हो, प्रेम, सद्भाव और भाईचारे से युक्त हो, खुशहाली, समरसता, आर्थिक समृद्धि से युक्त हो, स्वच्छता से युक्त हो, ईमानदारी,विनम्रता, सहजता, सरलता और सह्रदयता और कर्तव्यनिष्ठा से युक्त हो, देश के सर्वश्रेष्ठ राज्य बनने की उपलब्धि से युक्त हो, वगैरह वगैरह।

तो आइए कोरोनामुक्त आत्मनिर्भर मध्यप्रदेश बनाने की दिशा में कदम बढाएं, स्थापना दिवस समारोह खुशी-खुशी मनाएं। गिले-शिकवों को खूंटी पर टांगकर घरों से निकलें और प्यार की पोटली बांधकर लौटें। प्रदेश जल्दी ही आत्मनिर्भर बनकर पूरे देश में अपना परचम फहराए। बच्चों को बेहतर शिक्षा मिले, बीमारों को बेहतर इलाज मिले, सभी को रोजगार मिले, सबको रहने का घर हो, स्वच्छ गांव और स्वच्छ शहर हों, बिजली, सड़क और पानी, पेट्रोल पर न कोई कर हो, अन्नदाता भी खुशहाल हो और आम आदमी भी खुश हो।