

लाल आतंक के पहाड़ पर तिरंगे की विजय अधिक जरुरी
आलोक मेहता
पाकिस्तान के आतंकवाद से लड़ाई लम्बी चल सकती है और इसके लिए अंतर्राष्ट्रीय सहयोग भी चाहिए। लेकिन देश के अंदर माओवादी नक्सल आतंक को अपने अर्द्ध सैनिक बलों, प्रादेशिक पुलिस और केंद्र सरकार के दृढ निश्चय से ख़त्म करना बहुत बड़ी चुनौती रही है। लगता है कि लाल आतंक के पहाड़ पर तिरंगे की विजय का अंतिम निर्णायक दौर है। पिछले दो दशकों में नक्सली हमलों में 6,258 लोग मारे गए। करीब 20 वर्षों में, 2,344 सुरक्षाकर्मियों ने नक्सलियों से लड़ते हुए अपनी जान गंवाई है, जो 1999 के कारगिल युद्ध में मारे गए भारतीय सेना के जवानों की संख्या से चार गुना अधिक है। वास्तव में, जम्मू-कश्मीर में आतंकवादियों से लड़ने की तुलना में नक्सलियों से लड़ने में अधिक सशस्त्र कर्मियों की मृत्यु हुई है। नक्सल आतंक राज्यों की लगभग 8 करोड़ जनता प्रभावित रही है जिनमें मुख्य रूप से आदिवासी हैं। यह आंध्र प्रदेश, बिहार, छत्तीसगढ़, झारखंड, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, ओडिशा, तेलंगाना, पश्चिम बंगाल और उत्तर प्रदेश में फैले एक लाल गलियारे के साथ 10 राज्यों में फैला हुआ था। 2014 में प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी सत्ता में आए, तब 10 राज्यों के 126 जिलों को सबसे ज़्यादा प्रभावित थे। 2025 की शुरुआत में यह संख्या घटकर केवल 12 रह गई हैं, जिनमें से ज़्यादातर बस्तर में और बाकी ओडिशा, झारखंड, महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश के पड़ोसी जिलों में बचे हैं।
पिछले पांच वर्षों के दौरान गृह मंत्री अमित शाह ने नक्सल मुक्त भारत के लिए विभिन्न स्तरों पर तैयारियां की। अर्द्ध सैनिक बलों और राज्य सरकारों को अधिकाधिक धनराशि केंद्र से उपलब्ध कराई। छत्तीसगढ़ में माओवादियों के खिलाफ लड़ाई को मजबूत करने के लिए 870 करोड़ रुपये का बजट रखा। हाँ छत्तीसगढ़ में कुछ समय कांग्रेस सरकार आने से गति थोड़ी धीमी हुई, लेकिन भाजपा सरकार वापस आने के बाद आपरेशन तेज हो गया। पिछले तीन महीनों में बस्तर में करीब 130 खुंखार नक्सली पुलिस मुठभेड़ में मारे गए। इस सन्दर्भ में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कहा है कि नक्सल मुक्त भारत के संकल्प में एक ऐतिहासिक सफलता प्राप्त करते हुए सुरक्षा बलों ने नक्सलवाद के विरुद्ध अब तक के सबसे बड़े ऑपरेशन में हाल में छत्तीसगढ़-तेलंगाना सीमा के कुर्रगुट्टालू पहाड़ पर 31 कुख्यात नक्सलियों को मार गिराया। उन्होंने कहा कि जिस पहाड़ पर कभी लाल आतंक का राज था, वहां आज शान से तिरंगा लहरा रहा है। इसके साथ ही अमित शाह ने कहा कि ‘प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी के नेतृत्व में हम नक्सलवाद को जड़ से मिटाने के लिए संकल्पित हैं। मैं देशवासियों को पुनः विश्वास दिलाता हूँ कि 31 मार्च 2026 तक भारत का नक्सलमुक्त होना तय है।’
केंद्र और राज्य सरकारों ने कड़ी कार्रवाई के साथ माओवादियों के भ्रम जाल में फंसे लोगों को समर्पण कर सामान्य जीवनयापन के पर्याप्त अवसर भी दिए हैं।
2014 से आत्मसमर्पण करने वाले 7,500 नक्सलियों में से कई इन बलों में शामिल हो गए हैं, जो नक्सलियों के काम करने के तरीके और उनके ठिकानों के बारे में जानकारी दे रहे हैं । इन उपायों के परिणामस्वरूप, अभियान तेज हो गए हैं और 15 महीनों में छत्तीसगढ़ में 305 नक्सलियों का सफाया कर दिया गया। 2024 में अकेले बस्तर संभाग में 217 नक्सलियों का सफाया कर दिया गया है, जो राज्य में उग्रवाद के इतिहास के बाद से किसी भी वर्ष के लिए सबसे अधिक रहा है। जगदलपुर में स्थित कमांडो बटालियन फॉर रेसोल्यूट एक्शन (कोबरा) केंद्र में अधिकांश जवानों को गुरिल्ला युद्ध का प्रशिक्षण दिया जाता है। यह कभी अविभाजित बस्तर की राजधानी हुआ करती थी। यह केरल के आकार का है और छत्तीसगढ़ के सात घने जंगलों वाले जिलों में फैला हुआ है। इस क्षेत्र के अधिकारी कमांडर ने एक बार बताया था, “हम एक युद्ध-प्रशिक्षित दुश्मन से लड़ रहे हैं, जो इस क्षेत्र का निवासी है, इलाके से अच्छी तरह वाकिफ है, जंगलों में बहुत सक्रिय है और धोखे और धैर्य की कला का इस्तेमाल करके IED या घात लगाकर हम पर चुपके से हमला करता है। इसलिए उनके तरीकों ठिकानों को समझकर और अब उपलब्ध अत्याधुनिक द्रोन और हथियारों से नक्सलियों को नियंत्रित किया जा रहा है।’
इस अभियान के दौरान नक्सल क्षेत्रों में केंद्र और राज्य सरकारों ने नक्सलियों द्वारा जबरन एकत्र किए जा रहे धन के स्रोत पर अंकुश लगाया। आय का मुख्य स्रोत गर्मियों के महीनों में तेंदू पत्ता ठेकेदारों से लिया जाने वाला लेवी और वन तथा सड़क ठेकेदारों से जबरन वसूली थी। नक्सली इनसे अनुमानित 150 करोड़ रुपये जुटाने में सफल होते रहे। सीमा सड़क संगठन, जो कि केंद्र सरकार की इकाई है, को सिविल कार्यों को सौंपने से धन का वह स्रोत बंद हो गया है, साथ ही खुफिया एजेंसियों द्वारा तेंदू पत्ता ठेकेदारों पर कड़ी निगरानी रखी गई। कांग्रेस राज में तो कुछ पार्टी नेता, मंत्री, अफसर और ठेकेदार ही नक्सलियों के साथ कमाई की साझेदारी करते थे। यह अलग बात है कि कई नक्सल विरोधी कांग्रेस नेता पहले उनकी हिंसा के शिकार रहे थे।
नक्सल प्रभावित सुकमा जिले के किनारे बसा पुवर्ती, सीआरपीएफ की 150वीं बटालियन के अधीन है, जिसका नाम है ‘वन-फाइव जीरो, जंगल हीरो’। पुवर्ती कभी खूंखार माड़वी हिडमा का गढ़ हुआ करता था, नक्सल कमांडर के बारे में कहा जाता है कि वह सुरक्षा बलों पर दो दर्जन से अधिक घातक हमलों का मास्टरमाइंड था, जिसमें 2010 में पास के ताड़मेटला गांव में हुआ हमला भी शामिल है जिसमें सीआरपीएफ के 76 जवान मारे गए थे। पाहले किसी भी सरकारी व्यक्ति, वर्दीधारी या अन्य के लिए पीपुल्स लिबरेशन गुरिल्ला आर्मी (पीएलजीए) की अनुमति के बिना पुवर्ती में प्रवेश करना असंभव था। लेकिन समय बदला गया है। इसी तरह दंतेवाड़ा में आदिवासी भयमुक्त होकर बच्च्चों को शिक्षा और रोजगार दिला रहे हैं। यहाँ का हाट बाजार और उद्यम केंद्र किसी शहर के बाजार से अधिक व्यवस्थित और खुशहाल दिख रहे हैं। जगदलपुर और दांतवाड़ा के सरकारी कौशल विकास केंद्र (स्किल डेवलपमेन्ट सेंटर) के सभी प्रशिक्षुओं को रोजगार मिल रहा है।
नक्सल संगठन पोलित ब्यूरो, केंद्रीय समिति और केंद्रीय सैन्य आयोग द्वारा संचालित रहे हैं। बताते हैं कि पोलित ब्यूरो का नेतृत्व 70 वर्षीय महासचिव नंबाला केशव राव कर रहे हैं, जो कई उपनामों से जाने जाते हैं, जिनमें बसवराज और गगनना शामिल हैं। सैन्य शाखा में क्षेत्रीय, राज्य और क्षेत्रीय कमान हैं, जिसमें सशस्त्र मिलिशिया पिरामिड का आधार बनाती है। ‘पता लगाओ, निशाना बनाओ और बेअसर करो’ के दृष्टिकोण को अपनाते हुए, मोदी सरकार ने पिछले वर्षों में 15 शीर्ष नक्सल नेताओं को मार गिराया, जिनमें तीन पोलित ब्यूरो और 12 केंद्रीय समिति के सदस्य शामिल हैं। पुलिस सूत्रों का कहना है कि पिछले साल की परिचालन सफलताओं के कारण, बस्तर में नक्सलियों के कट्टर लड़ाकों की संख्या 1,400 से घटकर 600 रह गई है। उम्मीद करनी चाहिए कि प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह 2026 में देश को नक्सल आतंक से मुक्ति दिला दें और नक्सलियों को दिल्ली मुंबई से साधन दिला दे रहे अर्बन नक्सल और विदेशी ताकतों को भी कठोर कार्रवाई से नियंत्रित कर सकें।