आजादी के अधिकारों के दुरुपयोग पर अंकुश की जरुरत

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आजादी के अधिकारों के दुरुपयोग पर अंकुश की जरुरत

भारत में लोकतान्त्रिक अधिकारों के दुरुपयोग से नए नए संकट उत्पन्न हो रहे हैं | अभिव्यक्ति के अधिकार , सूचना के अधिकार , प्रकाशन के अधिकार ही नहीं संसद या विधान सभा में निराधार आरोप लगाने या सदन की कार्यवाही बाधित करने पर कोई अंकुश नहीं लग सका है | इसलिए अब अदालतों को हस्तक्षेप करना पड़ रहा है |भारतीय संविधान के अनुच्छेद 19(1) में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को मौलिक अधिकार बनाया गया, किन्तु 19(2) में इसे सीमित करने के आधार भी बताए गए। यानी यह बताया गया कि किन आधारों पर इस अधिकार में कटौती की जा सकती है। ये आधार थे झूठी निन्दा, मानहानि, अदालत की अवमानना या वैसी कोई बात जिससे शालीनता या नैतिकता को ठेस लगती है या जिससे राष्ट्र की सुरक्षा खतरे में पड़ती है या जो देश को तोड़ती है। संविधान लागू होने के तुरंत बाद 1951 में ही प्रथम संविधान संशोधन के द्वारा इसमें नए आधार जोड़े गए और फिर 1963 में 16वें संशोधन के जरिए उसे विस्तारित किया गया। इस तरह भारत की संप्रभुता एवं एकता, दूसरे देशों से दोस्ताना सम्बंध तथा हिंसा भड़काने के आधार पर भी अभिव्यक्ति की आजादी को सीमित किया जा सकता है। अभी कुल आठ आधारों पर इस स्वतंत्रता में कटौती की जा सकती है।

 गत दो दशकों में इंटरनेट तथा सोशल मीडिया के विस्तार ने परिदृश्य को पूरी तरह बदल दिया है। इस नई तकनीकी क्रांति के कारण जितना सही खबरों का प्रचार हो रहा है, उससे कहीं ज्यादा झूठी खबरों का प्रसार हो रहा है। यानी प्रचार तथा दुष्प्रचार के बीच की खाई लगभग खत्म हो चुकी है। अनुच्छेद 19 के तहत सभी झूठे बयानों एवं समाचारों पर रोक नहीं है और न ही उसके लिए दण्डात्मक कार्रवाई है। समस्या तब होती है जब इसके पीछे शरारत या दुर्भावना हो। यानी भूलवश या सही-गलत का फर्क ना समझ पाने के कारण अनजाने में कोई गलती हो जाए तो वह अपराध नहीं है। सोशल मीडिया में कोई गेटकीपर नहीं होता है। इसलिए कोई जो चाहे वह अपलोड कर देता है। इसीलिए सन् 2000 में सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम बनाया गया, जिसमें 2008 में संशोधन किया गया और संशोधित कानून 2009 में लागू हुआ। गत 25 फरवरी को केन्द्र सरकार ने सूचना प्रौद्योगिकी (अंतरिम दिशानिर्देश एवं डिजिटल मीडिया आचार संहिता) नियम 2021 जारी किया। इसमें ऑनलाइन न्यूज मीडिया सहित सोशल मीडिया को नियंत्रित करने के लिए सरकार के पास कई शक्तियां हैं।

आजादी के अधिकारों के दुरुपयोग पर अंकुश की जरुरत

सुप्रीम कोर्ट ने कुछ समय पहले एक निर्णय में  कहा था कि  बोलने और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार का ‘सबसे अधिक दुरुपयोग’ हुआ है।इसी तरह  सूचना का अधिकार ( आरटीआई ) विवाद का विषय बन चुका है| पिछले कुछ समय में लगभग 20,000 मामलों को संज्ञान में लेते हुए यह देखा गया था कि इनमें से अधिकतर मामले आरटीआई के उपयोगकर्ताओं और ‘सार्वजनिक सूचना अधिकारियों’  से संबंधित थे| सामान्यतः सार्वजनिक सूचना अधिकारी उन आवेदकों को कहा जाता है जो नियमित रूप से ब्लैकमेलर  और उत्पीड़कों के रूप में आरटीआई आवेदनों को जमा करते हैं तथा इस अधिनियम का दुरुपयोग भी करते हैं|आरटीआई आवेदकों को निम्नलिखित श्रेणियों में विभाजित किया गया है- वे लोग जो सरकार में भ्रष्टाचार अथवा मध्यस्थता को उजागर करने के उद्देश्य से आरटीआई आवेदन दाखिल करते हैं|वे लोग जो अपने साथ हुई गलत चीज़ों को सही साबित करने के उद्देश्य से बार-बार आवेदन करते हैं|  वे लोग जो आरटीआई का उपयोग लोगों को ब्लैकमेल करने के लिये करते हैं| इस श्रेणी में बड़े पैमाने पर भवनों, खनन अथवा कुछ अन्य प्रकार की गतिविधियों को शामिल किया जाता है| वे लोग जो इस अधिनियम का उपयोग सरकारी अधिकारियों को परेशान करने के उद्देश्य से करते हैं|

आजादी के अधिकारों के दुरुपयोग पर अंकुश की जरुरत

      यह पाया गया है कि आरटीआई के तहत प्राप्त होने वाले कुल आवेदनों में से 10% से भी कम आवेदन प्रथम श्रेणी के थे| प्रायः सरकारी अधिकारियों से ब्लैकमेलरों के कार्य के बारे में पूछा जाता रहा है| इस पर अधिकारियों का कहना है कि आरटीआई के ब्लैकमेलर गैर-कानूनी काम करने वाले व्यक्तियों को डराते हैं तथा उनसे धन लेते है| ध्यातव्य है कि गैर-कानूनी कार्य करने वाले पीड़ितों के लिये सहानुभूति बहुत मायने रखती है|   यह तथ्य कि आरटीआई के प्रावधानों का दुरुपयोग हो रहा है, निर्विवाद है| चूँकि इसके माध्यम से केवल नागरिकों के मूल अधिकारों का संरक्षण किया जाता है| भारत में अभिव्यक्ति और प्रेस की स्वतंत्रता को संविधान के अनुच्छेद 19(1)(a) के अंतर्गत शामिल किया गया है तथा समय के साथ ही इसके दायरे में भी विस्तार किया जाता रहा है| दरअसल, अनुच्छेद 19(2) के तहत अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर उपयुक्त प्रतिबंध लगाए जा सकते हैं, परन्तु अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को आरटीआई से छूट प्रदान की गई है| यदि आरटीआई को समाप्त कर दिया जाता है तो वह दिन दूर नहीं जब नागरिकों को अपनी पहचान बनाए रखने और बोलने के भी कारण बताने होंगे| किसी व्यक्ति को उसके बोलने अथवा लिखने के तरीके से ही पहचाना जा सकता है| प्रश्न यह उठता है कि क्या अब नागरिकों को यह मांग करनी चाहिये कि केवल उन्हीं व्यक्तियों को बोलने की अनुमति दी जाएगी जो अपने वक्तव्य का कारण बताएंगे|

      कुछ वर्ष पूर्व, सर्वोच्च न्यायालय ने माना था कि आरटीआई के दुरुपयोग को अनुमति प्रदान नहीं की जानी चाहिये| न्यायालय के अनुसार, इसका उपयोग राष्ट्रीय विकास और अखंडता में अवरोध उत्पन्न करने, शांति व्यवस्था को भंग करने तथा नागरिकों के मध्य शांति और सद्भाव को नष्ट करने के लिये नहीं होना चाहिये| सर्वोच्च न्यायालय का मानना था कि आरटीआई के आवेदनों में अधिकारियों का 75% समय नष्ट हो सकता है|

 दिलचस्प बात यह है कि सूचना के अधिकार के नाम पर राजनीतिक जीवन में प्रवेश करने वाले अरविन्द केजरीवाल ही इस अधिकार के दुरुपयोग के आरोप में देश के एक उच्च न्यायालय से दण्डित हो गए हैं | दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को बड़ा झटका लगा है. केजरीवाल पर गुजरात हाईकोर्ट) ने पच्चीस हज़ार का जुर्माना ठोका है. केजरीवाल पर ये जुर्माना प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ) की एमए की डिग्री मांगने को लेकर लगाया गया है | गुजरात हाईकोर्ट ने फैसला सुनाया कि प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की स्नातक और स्नातकोत्तर डिग्री का प्रमाणपत्र प्रस्तुत करने की जरूरत नहीं है|गुजरात हाईकोर्ट की सिंगल जज बेंच के जस्टिस बीरेन वैष्णव ने मुख्य सूचना आयोग (सीआईसी) के उस आदेश को रद्द कर दिया, जिसमें पीएमओ के जन सूचना अधिकारी (पीआईओ) और गुजरात विश्वविद्यालय और दिल्ली विश्वविद्यालय के पीआईओ को प्रधानमंत्री मोदी की स्नातक और स्नातकोत्तर डिग्री का विवरण प्रस्तुत करने का निर्देश दिया गया था.अदालत ने पीएम की डिग्री मांगने के मामले में ही अरविंद केजरीवाल पर 25000 रुपये का जुर्माना भी लगाया है|

गुजरात यूनिवर्सिटी ने हाई कोर्ट में याचिका दायर कर आरटीआई कानून के तहत पीएम मोदी की डिग्री की जानकारी मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को उपलब्ध कराने के आदेश को रद्द करने का अनुरोध किया था |साल 2016 के अप्रैल में तत्कालीन सीआईसी एम श्रीधर आचार्युलु ने दिल्ली यूनिवर्सिटी और गुजरात यूनिवर्सिटी को  प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी को मिली  डिग्रियों के बारे में सीएम केजरीवाल को जानकारी देने का निर्देश दिया था. इसके तीन महीने बाद गुजरात हाई कोर्ट ने सीआईसी के आदेश पर रोक लगा दी, जब यूनिवर्सिटी ने उस आदेश के खिलाफ याचिका दाखिल की |

आजादी के अधिकारों के दुरुपयोग पर अंकुश की जरुरत

इसी तरह कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गाँधी द्वारा सभाओं और विदेशों में भी कई गंभीर आरोपों वाले बयानों पर अदालतों तथा संसद में सवाल उठे हैं | ‘ मोदी ‘ नाम के लोगों पर मानहानि सूचक आरोप लगाए जाने पर गुजरात की अदालत ने उन्हें दो साल की सजा सुना दी है | इस कारण उनकी संसद की सदस्यता भी रद्द हो गई | अब वह उस पर उच्च अदालत में अपील कर सकते हैं | दूसरी तरफ ब्रिटेन में भारत के लोकतंत्र के ख़त्म होने और अमेरिका तथा ब्रिटेन द्वारा चुप बैठे रहने संबधी बयान पर संसद  की विशेषाधिकार समिति के समक्ष की  गई शिकायत विचाराधीन है |

 दूसरी तरफ  सुप्रीम कोर्ट ने  हाल ही में एक फैसले में कहा है कि सांप्रदायिक आधार पर भड़काऊ बयान देने वाला जिस भी धर्म का हो, उस पर तुरंत कार्रवाई होनी चाहिए|  कोर्ट ने दिल्ली, यूपी और उत्तराखंड सरकार को निर्देश दिया है कि ऐसे बयानों पर पुलिस खुद संज्ञान लेते हुए मुकदमा दर्ज करे | इसके लिए किसी की तरफ से शिकायत दाखिल होने का इंतज़ार न किया जाए. कार्रवाई करने में कोताही को सुप्रीम कोर्ट की अवमानना माना जाएगा. जस्टिस जोसफ ने अपने फैसले में  कहा है कि  “कानून  में वैमनस्य फैलाने के खिलाफ 153A, 295A, 505 जैसी कई धाराएं हैं |कोर्ट ने साफ किया कि भविष्य में अगर पुलिस कानूनी कार्यवाही करने में चूकती है, तो इसे सुप्रीम कोर्ट की अवमानना माना जाएगा |’इसलिए आजादी के अमृत महोत्सव के साथ संविधान में प्रदत्त अधिकारों के दुरुपयोग पर अंकुश के विचार का उपयुक्त समय भी आ गया है | समान नागरिक संहिता लागू करने , महिलाओं को विधायिकाओं में 33 प्रतिशत प्रतिनिधित्व के आरक्षण के प्रावधान के साथ अभिव्यक्ति और सूचना के अधिकारों में संशोधन पर संसद तथा सर्वोच्च  अदालत को यथा शीघ्र निर्णय करना चाहिए |