Third Gender: शगुन के नाम पर किन्नरों की दादागिरी आखिर कब तक!

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Third Gender: शगुन के नाम पर किन्नरों की दादागिरी आखिर कब तक!

नीरज याग्निक की खास प्रस्तुति

“यह अत्यंत गंभीर सामाजिक मुद्दा है। विचार व्यक्त करें और मुद्दे को शेयर भी करें…

एक ओर … इंदौर , भोपाल शहर में भीख मांगने और देने… दोनों पर पुलिस केस दर्ज हो रहे हैं… अच्छी पहल है।
और दूसरी ओर… होली, दीवाली, शादी, बच्चे, नई दुकान-मकान की नेग-बधाई बोल जबरन घर में घुसकर दादागिरी, डराकर महावसूली करने वाले “किन्नरों” का क्या…?
“दुआ-बद्दुआ” वाला ये “अल्टीमेट एक्सटॉरशन बिज़नेस मॉडल” का गणित सोचकर हैरान करने वाला है…

चार त्यौहार… प्रति त्यौहार कुल जमा 5 लाख मकान, दुकान, ऑफिस आदि… 1 हजार से 11 हजार की डिमांड… 500 रु. भी मान लें तो सालभर का आंकडा 100 करोड़ के पार हो जाएगा।

नेटवर्क भी कैसा ?? रेकी, मुखबिरी, प्लानिंग और वसूली…। गैंग की गैंग आपके दरवाजे पर, हर गैंग का अपना इलाका, ज्यादातर समय दोपहर का, हजारों से नीचे बात नहीं… ऊपर लाखों की कोई सीमा नहीं…।

शादी वाले घरों में तो इनका भय… देखते बनता है । थोड़ा सा बड़ा घर हो तो सीधे 5 लाख से शुरुआत होती है… इंसान लाख- सवा लाख देकर अपने आप को खुशनसीब समझता है… कि जान छूटी।

लाखों की आबादी वाले हमारे शहर में अगर, 50 हजार की वसूली सिर्फ़ 20 हजार शादी वाले घरों से हो जाए तो … फिर एक बार 100 करोड़ का बन जाता है।

अब कोई ज्ञान मत बांटने लग जाना… वो तो शगुन होता है।

शगुन तो वो होता है… जो खुशी-खुशी दिया जाता है… बाकी तो वसूली होती है।

एक ओर वो इतने पढ़े-लिखे डाक साहब भी नॉर्मल और सिजेरियन के हॉस्पिटल बिल में लूट लिया इसकी गालियाँ खाते रह जाते हैं…।
और दूसरी ओर बच्चा पैदा होने पर, विशेषकर छोरा पैदा होने पर… सिर्फ़ तालियाँ बजाकर… बिना किसी इंफ्रास्ट्रक्चर (हॉस्पिटल) के सिर्फ़ डर और दादागिरी बता… आराम से उससे दुगनी रकम ये जीम के निकल जाते है।
कितने बच्चे पैदा होते हैं, कितना पैसा लेते हैं… आंकड़े बताते बताते थक गया हूं…। इसलिए गृहप्रवेश,ऑफिस व दुकानों के श्रीगणेश आदि के करोड़ों जोड़ने का काम अब आपका…।

प्रकृति द्वारा जो अन्याय इनके साथ हुआ है… ईश्वर उसके लिए ज़रूर उचित न्याय करें… लेकिन उस अन्याय को अपनी ढाल बनाकर… उसका भय बताकर जबरन अवैध वसूली करना… दुआ- बद्दुआ देने ना देने को धंधा बना मनमानी रकम वसूलना भी कहाँ तक मानवीय है ?? सोचिएगा…!

सैकड़ों करोड़ रुपये के इस रैकेट को क्यों ना पुलिस प्रशासन द्वारा रोका जाए…???

इतनी योजनाएं सरकार बनाती है, इन्हें भी लाडली/लाडला मान सशक्त बनाए… एक स्वावलंबी जीवन दें… मुख्यधारा से जोड़ें…।

लैंगिंक अक्षमता से भला कोई क्यों वसूली या भिक्षावृत्ति के लिए प्रेरित हो, विवश हो… या संविधान के बराबरी के मूलभूत अधिकार से वंचित हो ??