“मन” को रास नहीं आ रही “मोदी” की यह “बोली”…

पर सुरक्षा में चूक माफी के काबिल नहीं ... सबक सीखने को काफी है यह घटना...

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यह “मन” मोदी के चहेतों का है और यह इस राष्ट्र का “मन” भी है, जो देश को दुनिया में पहली पंक्ति में लाकर खड़ा करने वाले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से इत्तेफ़ाक रखता है। इस “मन” को नरेंद्र मोदी की वह सूरत रास आती है, जब वह गुजरात के मुख्यमंत्री हैं और अपनी ही पार्टी के वरिष्ठतम नेताओं को मार्गदर्शक मंडल में शामिल कर खुद मंच संभालते हैं।

यह राष्ट्र उनके साथ खड़ा होता है और मोदी को देश का प्रधानमंत्री बनाकर यह जताता है कि तुम्हारा साहसी होना, आत्मविश्वास से भरा होना और निडर-निर्भीक होना इस राष्ट्र के “मन” को पसंद है। मोदी देश के प्रधानमंत्री बनकर जो भी कदम उठाते हैं, राष्ट्र उनका समर्थन करता है। तीन तलाक बिल हो, नोटबंदी हो, जीएसटी हो या फिर तमाम फैसले जिनका पुरजोर विरोध विपक्ष करता रहा, लेकिन देश के मतदाता मोदी के साथ खड़े रहे।

पाकिस्तान के खिलाफ सर्जिकल स्ट्राइक ने तो “मोदी” को “राष्ट्रवीर” का दर्जा ही दे दिया। और राष्ट्र के मतदाताओं ने मोदी को पूरे बहुमत से दूसरी बार प्रधानमंत्री की शपथ लेने का जनादेश दिया। फिर जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाकर जम्मू-कश्मीर और लद्दाख को संघशासित क्षेत्र का दर्जा देने का भी राष्ट्र ने पुरजोर समर्थन किया। गलवान घाटी में चीन के खिलाफ तेवरों को भी सभी ने सराहा।

राम मंदिर का फैसला, काशी विश्वनाथ कॉरिडोर या वह तमाम कामों की लंबी फेहरिस्त है, जिसमें मोदी उनके चहेतों के “मन” में “राष्ट्रनायक” के रूप में बसते हैं। मोदी जो भी कदम उठाते हैं, राष्ट्र में उनके समर्थक उनके साथ खड़े हो जाते हैं। पर राष्ट्र के इस “मन” को मोदी की यह बोली कदापि रास नहीं आ सकती, जिसमें बठिंडा एयरपोर्ट पर अधिकारियों से कहा जाता है कि ”अपने मुख्यमंत्री को धन्यवाद कहना कि मैं ज़िंदा बठिंडा लौट आया”… यह भाषा सियासी हो सकती है लेकिन “मोदी है तो मुमकिन है” फेम प्रधानमंत्री के मुंह से यह बोली कतई रास नहीं आ रही है।

कहीं ऐसा तो नहीं कि पिछले साल बंगाल चुनाव की हार के बाद मोदी को तब ज्यादा टूटन का अहसास हुआ हो, जब तीन कृषि कानूनों को वापस लेने की पीड़ा से गुजरना पड़ा हो। और यह पंजाब राज्य उन्हीं किसानों का है, जो दिल्ली के दरवाजे पर बैठकर कृषि कानूनों के वापस होने तक सरकार के विरोध में पूरी ताकत से डंटे रहे। और इन प्रदर्शनकारियों की ताकत का अंदाजा प्रधानमंत्री को था।

जब बठिंडा एयरपोर्ट से सड़क मार्ग से प्रधानमंत्री फीरोजपुर की रैली को संबोधित करने रवाना हुए और प्रदर्शनकारियों ने रास्ता रोक लिया…और प्रधानमंत्री ने सुरक्षा कारणों से वापस बठिंडा एयरपोर्ट लौटने का फैसला किया, तब शायद उनके दिमाग में वह सारे दृश्य जरूर कौंध गए होंगे जो सुरक्षा में चूक के चलते राष्ट्र पर संकट बनकर मंडरा चुके हैं। निश्चित तौर से यह सुरक्षा की बड़ी चूक है, जिसकी सजा गुनाहगारों को मिलनी ही चाहिए। लेकिन देश का मुखिया यदि बठिंडा एयरपोर्ट पर पहुंचकर अफसरों से यह भाषा बोले कि ”अपने मुख्यमंत्री को धन्यवाद कहना कि मैं ज़िंदा बठिंडा लौट आया”…शायद गले के नीचे नहीं उतर पा रहा है।

भरोसा नहीं हो रहा कि क्या यह वही मोदी हैं जो बिना बताए पाकिस्तान के तत्कालीन प्रधानमंत्री की मां का हालचाल जानने पहुंच जाते हैं? जब पाकिस्तान जा सकते हैं तो फिर पंजाब तो अपने देश का ही राज्य है और प्रधानमंत्री अपने चाक-चौबंद सुरक्षा घेरे में पूरी तरह सुरक्षित भी हैं। उस सुरक्षा चक्र को भेद पाना नामुमकिन नहीं तो बहुत मुमकिन भी नहीं है। और विश्व के बेहतरीन हथियारों से सुसज्जित एसपीजी अपनी जान पर खेलकर अपने प्रधानमंत्री को सुरक्षित रखने में सक्षम भी हैं।

अब यह बात तो तय है कि केंद्र सरकार ऐसा कोई फैसला नहीं ले सकती कि पंजाब के दलित मुख्यमंत्री को बर्खास्त कर राष्ट्रपति शासन लगाने की सिफारिश कर दे। क्योंकि मामला सियासी है और दलितों से बैर लेना घाटे का सौदा ही है। और फिर अब तो कांग्रेस आलाकमान सोनिया गांधी ने चन्नी की क्लास भी ले ली और यहां तक कह दिया कि मोदी पूरे देश के प्रधानमंत्री हैं और सुरक्षा में चूक के जिम्मेदारों को सजा मिलनी चाहिए। तो केंद्र ने भी राज्य से रिपोर्ट तलब की है और राज्य सरकार ने भी जांच कमेटी गठित कर दी है। और चन्नी ने तो यहां तक कह दिया कि जान दे देता, पर प्रधानमंत्री को कोई खतरा नहीं होने देता।

खैर बाकी बातें कुछ भी हों, लेकिन प्रधानमंत्री की सुरक्षा में चूक के जिम्मेदारों को माफी कतई नहीं मिलनी चाहिए बल्कि कठोर दंड दिया जाना चाहिए। प्रधानमंत्री ही नहीं बल्कि सभी वीवीआईपी की सुरक्षा व्यवस्था पुख्ता होना चाहिए। कल के इस वाकये के बाद मैंने बहुत कुछ चिंतन-मनन किया और यह भी जाना कि 2022 के लिए भविष्यवाणी की गई है कि पक्ष-विपक्ष के प्रमुख नेताओं की सुरक्षा पर आघात हो सकता है।

ऐसे में सुरक्षा मानकों को ताक पर रखकर नेताओं को जनता के बीच पहुंचने का रिस्क कतई नहीं लेना चाहिए। “राजीव गांधी” एपीसोड इसका प्रत्यक्ष प्रमाण है, जिससे सीख लेने की सख्त जरूरत है। विपक्ष के प्रमुख नेताओं का नाम सोचें तो सोनिया गांधी, राहुल गांधी और प्रियंका गांधी वाड्रा तीन नाम ही सामने आते हैं। पंजाब की इस सुरक्षा चूक से इन तीनों को सीख लेने की भी खास जरूरत है।

क्योंकि पंजाब सरकार का यह गैर जिम्मेदाराना व्यवहार अगर साजिश मान लिया जाए तो सुरक्षा में चूक की गुंजाइश, साजिश या गैर जिम्मेदाराना व्यवहार का दोहराव किसी दूसरे राज्य में दूसरे प्रमुख नेताओं के साथ भी हो सकता है। और प्रधानमंत्री के सुरक्षा चक्र को भेद पाना तो मुमकिन नहीं है, लेकिन बाकी नेताओं की सुरक्षा प्रधानमंत्री की तुलना में नगण्य ही मानी जा सकती है। यह घटना सबक सिखा रही है कि खुद प्रधानमंत्री मोदी को भी भीड़ में जाने से परहेज करना चाहिए। चाहे फिर वह काशी ही क्यों न हो या फिर कोई दूसरा स्थान या कोई और अवसर।