यह ‘सोमवार’ रहेगा ‘शिवमय’ या गूंजेगी ‘मोदी-शाह’ लय…
जिस तरह छत्तीसगढ़ से संकेत मिले हैं, उससे यह तस्वीर साफ हो गई है कि अब मध्यप्रदेश और राजस्थान में भी डिप्टी सीएम फार्मूला लागू होगा। दूसरी तस्वीर जो साफ हुई है वह यह कि विधानसभा अध्यक्ष की कुर्सी पर ऐसा कद्दावर नेता बैठेगा, जो पूर्व सीएम हो सकता है या फिर उसी कद का नेता जिसे सदन के नेता और संसदीय कार्य मंत्री अपने इशारों पर चलाने की कोशिश नहीं कर पाएंगे। तीसरा भ्रम यह दूर हो गया कि प्रस्तावक कोई राज्य का वरिष्ठ नेता ही होना चाहिए। छत्तीसगढ़ में केंद्रीय नेतृत्व ने ही नाम प्रस्तावित किया और उसके बाद “यदि और लेकिन” जैसे शब्द बेमानी हो गए। यानि जो केंद्रीय नेतृत्व सोच कर आया होगा, उसी पर मुहर लगाने की औपचारिकता विधायक दल के नाम पर पूरी होनी है। वैसे तो कैडर बेस्ड पार्टी के अनुशासन में यह बात अनिवार्य तौर पर लागू होती है।
उदाहरण सामने है कि छत्तीसगढ़ में बीजेपी केंद्रीय नेतृत्व ने विष्णुदेव साय का नाम मुख्यमंत्री पद के लिए प्रस्तावित किया और उसके बाद आनन-फानन में सारी तस्वीर फाइनल हो गई। यानि कि नाम तो ऊपर से तय है, बाकी विधायक दल की राय का सब दिखावा है। भाजपा का केंद्रीय नेतृत्व छत्तीसगढ़ में विष्णु को सामने लाया है, तो मध्यप्रदेश में तो शिव पहले से ही विराजित हैं और हकदार भी हैं। वहीं मध्यप्रदेश में विष्णु भी मौजूद हैं। वह प्रदेश भाजपा अध्यक्ष हैं और पार्टी के फैसलों को मानने में वह भी कोई कोताही नहीं बरतते। नरेंद्र, कैलाश, प्रहलाद या फिर कोई दूसरा चौंकाने वाला नाम ही सही, मध्यप्रदेश में भी भाजपा विधायकों का सुर तो केंद्रीय नेतृत्व के सुर में मिलना तय ही है। इक्कीसवीं सदी के पहले दशक में मध्यप्रदेश भाजपा सरकार में मुख्यमंत्री बदले जाने के दो अवसरों का साक्षी बन चुका है। विधायकों पर अपना प्रभाव डालकर फैसला बदलने की कोशिशों का अंजाम भी देख चुका है। और इस तरह की स्थितियां भाजपा के इतिहास में शायद ही दूसरी बार देखने को मिलें। और शिवराज को लेकर तो इस बात की कभी कल्पना भी नहीं की जा सकती।
खैर वैसे मध्यप्रदेश में शिवराज की लोकप्रियता भी कम नहीं है। और अगर केंद्रीय नेतृत्व उन्हें पांचवीं बार मुख्यमंत्री की शपथ दिलाने का फैसला लेता है, तब भी स्थितियां भाजपा के अनुकूल ही रहेंगी। जिस तरह शिवराज ने लोकसभा चुनाव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के गले में 29 कमल की माला पहनाने की कवायद पहले ही शुरू कर दी है। छिंदवाड़ा, श्योपुर, राघौगढ़, भोपाल उत्तर और सिंगाजी का दौरा कर शिवराज अपने मन की बात रख चुके हैं। सबको राम-राम कहने का मतलब भी बता चुके हैं। यह बात भी सही है कि इस हलचल के बीच वह दिल्ली भी नहीं गए। और एक अजब संयोग यह भी है कि बाबा महाकाल की विशेष कृपा शिवराज पर रही है और विधायक दल की बैठक भी सोमवार को ही है। खास यह भी है कि सोमवार को राजाधिराज की शाही सवारी निकलेगी।
महाकाल की नगरी शिवमय होगी। श्री महाकालेश्वर भगवान की कार्तिक- मार्गशीर्ष (अगहन) माह में निकलने वाली सवारियों के क्रम में मार्गशीर्ष (अगहन) माह की दूसरी व शाही सवारी सोमवार 11 दिसम्बर 2023 को सायं 4 बजे नगर भ्रमण पर निकलेगी। भगवान श्री महाकालेश्वर श्री मनमहेश स्वरूप में अपने भक्तों को दर्शन देंगे। और यह समय ठीक वही है, जब पर्यवेक्षकों की मौजूदगी में मध्यप्रदेश में विधायक दल की बैठक प्रदेश भाजपा कार्यालय में आयोजित होगी और विधायक दल का नेता चुना जाएगा। अब देखने वाली बात यह भी है कि यह सोमवार 11 दिसंबर 2023 का दिन मध्यप्रदेश के लिए शिवमय रहने वाला है या फिर मोदी-शाह फार्मूला ही मध्यप्रदेश की राजनीति में सब कुछ अलग तय करने वाला है। वैसे शिवराज उस मिथक से भी पार पा चुके हैं, जब यह कहा जाता था कि सिंहस्थ कराने वाला मुख्यमंत्री अपने पद पर नहीं रह पाता। शिवराज ने सिंहस्थ के बाद भी अपना कार्यकाल पूरा किया था और 15 माह के कांग्रेस के कार्यकाल के बाद फिर मुख्यमंत्री के पद पर वापसी की थी। और अब भी शिवराज को बदलकर दूसरा ओबीसी चेहरा लाना मोदी-शाह को कटघरे में ही खड़ा करेगा। सवाल यह भी है कि यदि मोदी प्रधानमंत्री न बन पाते, तब क्या बार-बार गुजरात में सीएम बने रहने से परहेज़ कर पाते? और फिर तमाम आरोपों के बाद भी शिवराज ने बतौर मुख्यमंत्री मध्यप्रदेश में उपलब्धियों की जितनी बड़ी लकीर खींच दी है, उसकी बराबरी कर पाना भाजपा में किसी नए चेहरे के लिए उतना आसान नहीं होगा।
वैसे भाजपा की ओबीसी और आदिवासी पॉलिटिक्स का एक पहलू और भी है और वह यह कि कैलाश जोशी के बाद 45 साल गुजर गए, पर भाजपा ने मध्यप्रदेश में कोई ब्राह्मण और यहां तक कि ठाकुर चेहरा मुख्यमंत्री नहीं बन पाया। और अब तो लगता है कि किसी ब्राह्मण और ठाकुर को भाजपा कभी मुख्यमंत्री नहीं बनाएगी और जातिगत समीकरण का हवाला देकर पल्ला झाड़ती रहेगी। जबकि ऐसा नहीं है कि ब्राह्मण या ठाकुर योग्य नेतृत्व की प्रदेश में कोई कमी हो। यहां तक कि केंद्रीय नेतृत्व चाहे तो सामान्य का सीएम चेहरा देकर चार डिप्टी सीएम बना दे। खैर होइअहि वही जो मोदी-शाह रचि राखा…सो देखते हैं कि यह ‘सोमवार’ का दिन ‘शिवमय’ रहेगा या नहीं…।