सुलगता रहेगा संजय पुत्र का यह सवाल …

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सुलगता रहेगा संजय पुत्र का यह सवाल ...
अग्निवीर-अग्निपथ सियासत आज नहीं तो कल परदे से ओझल हो जाएगी। जो आग आज युवाओं के सीने में भभक रही है, वह कल ठंडी पड़ जाएगी। क्योंकि जिस तरह व्यक्ति दैहिक प्रेम में लंबे समय तक उलझा नहीं रह सकता, जिस तरह व्यक्ति घृणा के भाव के साथ लंबे समय तक नहीं जी सकता है, ठीक उसी तरह किसी खास मुद्दे पर किसी व्यक्ति, संगठन, संस्थान और सरकारों के खिलाफ विरोध एक सीमा के बाद स्वत: खत्म हो जाता है।
सियासत भले ही दूरगामी फायदा उठाने के लिए कभी-कभार विरोध का सम्मान करने का दिखावा कर दे, पर हकीकत में विरोध की सीमा होती है। अग्निपथ-अग्निवीर पर भी हो सकता है कि सरकार युवाओं को खुश करने के लिए तीन कृषि बिलों की तरह करवट बदल ले। पर अग्निपथ-अग्निवीर की आड़ में भाजपा सांसद वरुण गांधी ने जो बात कह दी है और जो सवाल खड़ा कर दिया है, वह जरूर सुलगता रहेगा। ऐसा नहीं है कि यह मुद्दा पहली बार उछला है। समय-समय पर जनप्रतिनिधियों के वेतन भत्तों में मनमानी बढ़ोतरी में सर्वदलीय सहमति पर हमेशा सवालिया निशान लगा है। समय-समय पर एक ही नेता को अलग-अलग मिलने वाली कई पेंशनों की सुविधा पर सवालिया निशान लगता रहा है। तो जनप्रतिनिधियों को मिलने वाली दूसरी सुविधाओं पर सवालिया निशान लगाया जाता रहा है।

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पर “अल्पकालिक जनप्रतिनिधियों को पेंशन क्यूं, यदि अल्पकालिक अग्निवीरों को नहीं”, सांसद वरुण गांधी का यह सवाल सब पर भारी पड़ रहा है। 23 जून को 42 वीं पुण्यतिथि पर पिता की समाधि पर मां मेनका गांधी के साथ पुष्प अर्पित कर श्रद्धांजलि देने वाले संजय पुत्र वरुण गांधी को शायद उनसे ही यह प्रेरणा मिली हो कि बेटा विरोध करने की हिम्मत जुटाओ, वरना दुनिया विरोध करने लायक ही नहीं छोड़ेगी। और जिन्हें अपना मानते हो, उनसे सतर्क रहना…क्योंकि देश में इस वक्त वही कथित अपने ही अपनों की लुटिया डुबोने में लगे हैं।
सुलगता रहेगा संजय पुत्र का यह सवाल ...
भाजपा सांसद वरुण गांधी ने ट्वीट कर क्या मंशा जाहिर की है, उस पर एक नजर डाल ली जाए। वरुण ने लिखा कि “अगर अग्निवीर पेंशन के हकदार नहीं, तो मैं भी अपनी पेंशन छोड़ने को तैयार”। उन्होंने एक अन्य ट्वीट किया कि अल्पावधि की सेवा करने वाले अग्निवीर पेंशन के हकदार नही हैं तो जनप्रतिनिधियों को यह ‘सहूलियत’ क्यूँ? राष्ट्ररक्षकों को पेन्शन का अधिकार नही है तो मैं भी खुद की पेन्शन छोड़ने को तैयार हूँ। क्या हम विधायक/सांसद अपनी पेन्शन छोड़ यह नही सुनिश्चित कर सकते कि अग्निवीरों को पेंशन मिले?
ऐसे समय में जब कंगना रनौत महाराष्ट्र के घटनाक्रम पर उद्धव ठाकरे को आइना दिखा रहीं हों कि घर तोड़ने वाले का घमंड टूटना ही था, सो टूट गया। ऐसे समय में जब महाराष्ट्र में उद्धव-शिंदे संग्राम एक-एक कदम आगे बढ़ते हुए सब कुछ एकदम सीधा-शांत न रहने के संकेत दे रहा हो। ऐसे में वरुण गांधी की अग्निवीरों के प्रति यह सोच वाकई सराहनीय है। तो अग्निवीरों के नाम पर जनप्रतिनिधियों को आइना दिखाना और खुद पेंशन छोड़ने की पहल करना साहसिक है। अगर उनका भाव सत्ता से उपेक्षित होने के चलते उपजी मानसिक निराशा और कुंठा से नहीं उपजा है और वह इस मुद्दे पर अपनी यह स्थायी राय रखते हैं, तब उनका यह भाव राष्ट्रहित में उनकी महत्वपूर्ण सोच का परिचायक माना जा सकता है।

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कम से कम नेताओं को इस बात को तो स्वीकार कर ही लेना चाहिए कि ” वन रैंक-वन पेंशन” की तर्ज पर राजनीति में “वन मैन-वन पेंशन” के फार्मूले को राष्ट्रीय स्तर पर मान्यता मिलनी ही चाहिए। एक से अधिक पदों पर रहने वाले नेता को यह स्वेच्छा से फैसला लेने की स्वतंत्रता हो कि वह किस पेंशन को चुनना चाहता है। या फिर जहां नेता को सर्वाधिक लाभ हो, वह पेंशन उसके खाते में पहुंचे। पर एक से अधिक पेंशन लेने का त्याग कर नेता जी को यह नैतिक संदेश जरूर देना चाहिए कि वह जनसेवा के उद्देश्य से चुने जाते हैं।
ऐसे में जब जनता की गरीबी किसी से छिपी नहीं है, तब वह उसी जनता के मतों के आशीर्वाद से अलग-अलग पदों पर चुने जाने का बेजा फायदा उठाते हुए एक से अधिक पेंशन लेने का काम नहीं करेंगे। पर यह सब शायद इतना सहज-सरल नहीं है कि नैतिकता-त्याग-जनसेवा जैसे शब्दों के मकड़जाल में फंसकर जनप्रतिनिधि यूं ही अपने हितों की कुर्बानी देने को तैयार हो जाएं। पर अग्निवीर को अल्पकालिक सेवा के चलते पेंशन सुविधा न दिए जाने पर संजय-पुत्र का जनप्रतिनिधियों को लेकर किया गया यह सवाल सियासी गलियारों के साथ देश की जनता की अदालत में जरूर सुलगता रहेगा।