अपनी भाषा अपना विज्ञान: “ सोचा और कर दिया” मस्तिष्क — कंप्यूटर का अंतरफलक

 अपनी भाषा अपना विज्ञान: “ सोचा और कर दिया” मस्तिष्क — कंप्यूटर का अंतरफलक

वर्ष 2004 में, नाथन कॉप्लेंड 18 वर्ष का युवक था जब एक मोटरसाइकिल दुर्घटना में उसकी गर्दन की रीढ़ की हड्डी टूट गई । उसके अंदर स्थित स्पाइनल कॉर्ड (मेरु रज्जु) क्षतिग्रस्त होने से उसके चारों हाथ पांव निशक्त हो गए । दिन-रात बिस्तर पर पड़ा रहता था। मल-मूत्र पर नियंत्रण नहीं था। छाती के नीचे और हाथ की उंगलियों से लेकर कोहनियों तक कहीं भी छुओ, दबाओ, चुभाओ, जलाओ –  कुछ पता नहीं पड़ता था। नाथन हिम्मतवाला था। खूब मेहनत से फिजियोथेरेपी करता था। बैठना सीख गया था। एक हाथ में थोड़ी शक्ति और संवेदनाएं (Sensations) लौट आए थे। छः वर्ष बाद (2010 में) उसे पिट्सबर्ग विश्वविद्यालय की एक रिसर्च लैब से फोन आया “क्या आप हमारे एक शोध अध्ययन में शरीक होना चाहेंगे?” नाथन कॉप्लेंड ने उत्साह और खुशी से भर कर तुरंत हां कर दी। अपनी स्थिति के बारे में इंटरनेट, पुस्तकों और पत्र-पत्रिकाओं में पढ़ पढ़ कर उसे मालूम था कि इस शोध में शामिल हो पाने की कसौटियां बहुत सीमित और सख्त है।

न्यूरो विज्ञान की इस शाखा का नाम है –  Brain Computer Interface (मस्तिष्क कंप्यूटर अंतरफलक)

वह स्थल जहां दो भिन्न, प्रथक, स्वतंत्र प्रणालियां एक दूसरे से संपर्क में आती है, उनके मध्य संवाद होता है, सूचना का आदान प्रदान होता है और वे दोनों एक दूसरे को प्रभावित करती हैं। ब्रेन कंप्यूटर इंटरफ़ेस (BCI) की सिद्धान्तिक अवधारणा 50 वर्ष पुरानी है । अभी सीमित परिणाम मिले हैं। सबसे जाना पहचाना और सफल उदाहरण है बहरे लोगों के लिए आंतरिक कान में Cochlear Implant (काक्लियर इंप्लांट) जिसके बूते पर बाह्य कान में प्रवेश करने वाली ध्वनि तरंगे, क्षतिग्रस्त काक्लिया को बायपास करके दिमाग तक पहुंचकर सुनने की क्षमता को काफी हद तक पुनर्स्थापित कर पाती है ।

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नाथन कॉप्लेन के दिमाग का ऑपरेशन हुआ। खोपड़ी की हड्डी खोलकर मस्तिष्क के फ्रांटल खंड की मोटर गायरस और पेराइटल खंड की सेंसरी गायरस में बारिक बारिक सुइयों वाले चार इलेक्ट्रोड संकुल, वहां के नरम पिलपीले गूदे में धंसा दिए गए । हड्डियां फिर से रख दीं। एक छेद से तार बाहर निकालकर रोबोट मशीन से जोड़ दिए गए जिसका आकार प्रकार एक भुजा(Upper Limb) के समान था। रोबोटिक भुजा में कंधा, कोहनी, कलाई, अंगूठा, उंगलियों के जोड़ थे जिन्हें बिजली से चलाया जा

सकता था ।

ब्रेन में घुसाए गए विद्युतोद उस इलाके की विद्युतीय गतिविधि को कैप्चर करने के काबिल थे।

कैसी बिजली?

बहुत महीन, बहुत बारीक, अत्यंत सूक्ष्म, एक एंपियर के कुछ हजारवे हिस्से के बराबर(मिली एम्पियर), एक वोल्ट के कुछ हजारवें हिस्से के बराबर(माइक्रो वोल्ट) । अत्यंत लघु अवधि में बंद चालू होने वाली –  एक सेकंड के कुछ हजारवें  हिस्से के बराबर (मिली सेकंड)।

कहां से पैदा होती है?

एक एक न्यूरॉन कोशिका से। कोशिकाओं के समूह से (न्यूरल नेटवर्क से )

दिमाग के चप्पे-चप्पे में सतत प्रवाहमान, लगातार सुलगने वाली इलेक्ट्रिकल करंट यूं ही बेतरतीब नहीं बनती । उसके बहने में लय है, पैटर्न है, संगीत है, संदेश है, कूट भाषा है, कोड वर्ड है।

नाथन के ब्रेन के जिस भाग में इलेक्ट्रोड ठूंसा गया था, वहां से हाथ की गति को अंजाम देने वाले आदेश निकलते हैं। यदि मिस्टर कॉप्लेंड ने सोचा (अपनी तथाकथित स्वतंत्र इच्छा – Free Will को जागृत किया) कि मुझे अपने दाहिने हाथ की मुट्ठी बांधना है तो फ्रांटल खंड के मोटर-उभार (गायरस) में मौजूद लाखों न्यूरॉन कोशिकाओं और उन्हें आपस में जोड़ने वाले तंतु जाल में विद्युतीय आवेगों  की एक सिंफनी प्रकट होने लगेगी, एक राग बजने लगेगा, सॉफ्टवेयर एप्लीकेशन का एक प्रोग्राम एक्टिवेट हो जावेगा । दुर्घटना के पहले नाथन के मस्तिष्क से यह कमांड (आदेश) उसकी भुजा तक पहुंच कर तत्काल मुट्ठी बनवा देता। सॉफ्टवेयर और हार्डवेयर अभी भी ठीक है । परंतु उसे डेस्टिनेशन (लक्ष्य – हाथ की मुट्ठी) तक पहुंचाने वाला हाईवे टूट चुका है और ठीक नहीं हो सकता।

प्रयोगशाला में नाथन को क्या करना था? उसे बस सोचना था और कल्पना करनी थी – “मैं अपनी मुट्ठी बंद कर रहा हूं”, “मैं मुट्ठी खोल रहा हूं”, “मैं हाथ में काफी का मग पकड़ कर उसे होठों की दिशा में ला रहा हूं”, “मैं एक पेन पकड़कर, कागज पर लिखने का उपक्रम कर रहा हूं” ।

और देखते ही देखते चमत्कार। कुछ ही दिनों के अभ्यास में वह रोबोट भुजा से इच्छित गतियां करवाने लग गया। सोचते समय, इच्छा करते समय, कल्पना करते समय, मस्तिष्क के उक्त छोटे से भूभाग में जो तरंगे बनी वे केबल के माध्यम से रोबोट-भुजा को चलायमान कर गई ।

अभी एक और चमत्कार होना था । नाथन की आंख पर पट्टी बांध दी गई। रोबोट भुजा की उंगलियों, कलाई, कोहनी को अलग-अलग बिंदुओं पर हौले से एक-एक सेकेंड के लिए छुआ गया। नाथन ने फटाफट पहचान लिया –  “अभी यहां छुआ”, “अभी वहां छुआ” । उसे लग रहा था कि मानो उसी के हाथ पर जगह-जगह छुआ जा रहा हो। जबकि वास्तव में ऐसा संभव नहीं था।

हमारे दफ्तरों में आवक और जावक (Inward and Dispatch) विभाग होते हैं । वैसे ही ब्रेन में सेंसरी (संवेदी) और मोटर (प्रेरक) प्रणालियां होती है। किसी गति या क्रिया को अंजाम देने के लिए मोटर-आदेश का संचार पर्याप्त नहीं है। लगातार फीडबैक जरूरी है। संवेदी सूचनाएं पल पल पर प्रतिपुष्टि देती है कि आदेशित और इच्छित गति सही-सही हो रही है या नहीं। लगातार सुधार होते रहते हैं। Course Correction (कोर्स करेक्शन) जरूरी होते हैं।

सेंसरी फीडबैक के प्रशिक्षण के बाद नाथन के द्वारा रोबोटिक-भुजा की जटिल गतियों में तेज सुधार हुआ ।

पिट्सबर्ग यूनिवर्सिटी की बायोमेडिकल इंजीनियर जेनिफर कोलिंगर ने बताया कि – यूं तो आंखों से भी देखा जा सकता है कि, कैसे-कैसे कितना मूवमेंट हो रहा है, लेकिन दैनिक कामकाज में हर समय आँखे  गड़ा कर घूरते नहीं रह सकते। अधिकांश काम बिना देखे होते रहते हैं। हमारे अंगों के कोने कोने में अदृश्य आंखें बिछी रहती है जिनके बूते पर हम आंख बंद रखकर बता सकते हैं कि अभी इस क्षण मेरे दाएं हाथ में कलम है, बायाँ हाथ टेबल पर रखा है, दायाँ पंजा नीचे और अंदर की ओर मुड़ा हुआ है, बाया घुटना मोड़कर कुर्सी पर रखा है, आदि आदि।

BCI के नए मॉडल्स में मोटर और सेंसरी की जुगलबंदी पर अच्छा काम हो रहा है। यह रिसर्च महंगी है, धीमी है, धैर्य और परिश्रम मांगती है। आला दर्जे के दिमाग को टीम बनकर काम करना पड़ता है। इतना सब करने के बाद भी वह बात कहां, जो एक इंसानी हाथ में होती है  – वह हाथ जो तबला बजाता है, उपन्यास लिखता है, स्वादिष्ट भोजन बनाता है, मूर्तियाँ तराशता है, क्रिकेट में कवर ड्राइव घुमाता है, हाकी में रीवर्स क्लिक चमकाता है ।

नाथन जैसे मरीजों के लिए अगली पायदान है –  रोबोट भुजा के स्थान पर स्वयं की भुजा को चलायमान करवाना। मस्तिष्क से निकलने वाली केबल्स को लकवाग्रस्त Arm और Forearm में मौजूद नाड़ियों (Nerves) और मांस पेशियों से जोड़ना ।

ब्रेन कंप्यूटर इंटरफेस की एक से बढ़कर एक रोचक और चमत्कारी कहानियां पढ़ने को मिल रही है। जैसे कि (1) आंख का पर्दा(Retina) खराब होने की दशा में कृत्रिम रेटिना और इंप्लांटेड ऑप्टिक नर्व (Implanted optic nerve) द्वारा कुछ कुछ (धुंधला सा ही सही ) देख पाना, (2) जो कहना चाहते हो वह कंप्यूटर के स्पीकर द्वारा बुलवा पाना, (3) शतरंज या ताश के गेम कम्प्युटर के माऊस या की बोर्ड को छूए बिना, सिर्फ सोच कर खेल पाना।

प्रगति इतनी धीमी क्यों है?

विभिन्न गतिविधियों के लिए ब्रेन में बनने वाले सिगनल्स के पैटर्न को पहचान पाना बहुत जटिल है। मस्तिष्क में इंप्लांट्स किए गए इलेक्ट्रोड को वहां का टिशु, फोरेनर या विदेशी मानता है, प्रतिक्रिया करता है, इंफेक्शन हो जाता है। विद्युतोद के सिरे (जहां से विद्युतीय गतिविधि को कैप्चर किया जाता है) उतने सक्षम नहीं होते जितने की ब्रेन की न्यूरॉनकोशिकाएं।

मेटेलिक मैकेनिकल इलेक्ट्रोड की जगह यदि बायोलाजिकल टिशु से बने विद्युतोद हो तों बेहतर होगा । जैसे ह्रदय में प्रत्यारोपित किए जाने वाले वाल्व मेकेनिकल के अलावा बायोलॉजिकल भी मिलते हैं, वैसा ही कुछ नर्वस सिस्टम में भी होना चाहिए ।

“अपनी भाषा-अपना विज्ञान” के अगले अंक में हम इसी वार्ता को आगे बढ़ाएंगे ।

Author profile
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डॉ अपूर्व पौराणिक

Qualifications : M.D., DM (Neurology)

 

Speciality : Senior Neurologist Aphasiology

 

Position :  Director, Pauranik Academy of Medical Education, Indore

Ex-Professor of Neurology, M.G.M. Medical College, Indore

 

Some Achievements :

  • Parke Davis Award for Epilepsy Services, 1994 (US $ 1000)
  • International League Against Epilepsy Grant for Epilepsy Education, 1994-1996 (US $ 6000)
  • Rotary International Grant for Epilepsy, 1995 (US $ 10,000)
  • Member Public Education Commission International Bureau of Epilepsy, 1994-1997
  • Visiting Teacher, Neurolinguistics, Osmania University, Hyderabad, 1997
  • Advisor, Palatucci Advocacy & Leadership Forum, American Academy of Neurology, 2006
  • Recognized as ‘Entrepreneur Neurologist’, World Federation of Neurology, Newsletter
  • Publications (50) & presentations (200) in national & international forums
  • Charak Award: Indian Medical Association

 

Main Passions and Missions

  • Teaching Neurology from Grass-root to post-doctoral levels : 48 years.
  • Public Health Education and Patient Education in Hindi about Neurology and other medical conditions
  • Advocacy for patients, caregivers and the subject of neurology
  • Rehabilitation of persons disabled due to neurological diseases.
  • Initiation and Nurturing of Self Help Groups (Patient Support Group) dedicated to different neurological diseases.
  • Promotion of inclusion of Humanities in Medical Education.
  • Avid reader and popular public speaker on wide range of subjects.
  • Hindi Author – Clinical Tales, Travelogues, Essays.
  • Fitness Enthusiast – Regular Runner 10 km in Marathon
  • Medical Research – Aphasia (Disorders of Speech and Language due to brain stroke).