

पंचम दिवस
Travel Diary 5: शिव और पार्वती का प्रथम मिलन स्थल … आदि कैलाश के दिव्य दर्शन
प्रतीक्षित दिवस – आदि कैलाश दर्शन
महेश बंसल, इंदौर
आज वह दिन था, जिसकी प्रतीक्षा तीन वर्षों से थी – आदि कैलाश और पार्वती सरोवर के साक्षात दर्शन का दिन।
हमारा निश्चय था कि सुबह 5 बजे नाबी गांव से प्रस्थान करेंगे, टूर मैनेजर ने स्पष्ट निर्देश दिए थे कि
प्रातःकाल में पर्वतों पर बादल कम रहते हैं, इसलिए दर्शन के लिए यही समय सर्वोत्तम है। परंतु स्नान स्थगित करने के बाद भी हम सुबह 6 बजे ही निकल सके। नाबी से आदि कैलाश तक का मार्ग अब पूर्णतः डामरयुक्त है, लेकिन यात्रा अभी भी ऊँचाई और तेज़ हवाओं से भरी थी।
इस मार्ग पर 5 स्थानों पर परमिट की जांच होती है। सुरक्षा कारणों से यह अनिवार्य प्रक्रिया है।
गणेश पर्वत – हिम में उकेरा गया देवता
हमारा काफिला जब आदि कैलाश की ओर बढ़ रहा था, तभी एक मोड़ पर आकाश और पृथ्वी के बीच एक अद्भुत दृश्य ने हमें रोक लिया। सामने एक पर्वत था — ऊँचाई में साधारण, पर स्वरूप में दिव्य।
एक मोड़ पर, ड्राइवर ने दूर की एक हिमाच्छादित चोटी की ओर संकेत किया – “वह रहा गणेश पर्वत।”महेश

तुरंत सभी वाहन रुक गए। हमने वाहन से उतरकर ध्यानपूर्वक उस पर्वत को निहारा। बादलों की आवाजाही के बीच, गणेश जी की आकृति — उनकी सूँड, मुकुट और मुख — आंशिक रूप से स्पष्ट हुई। यह कोई मूर्ति नहीं थी, कोई चित्र नहीं था – बल्कि स्वयं प्रकृति ने हिम और शिला के मेल से यह आकृति रची थी।
यह स्थान समुद्र तल से लगभग 4,450 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है। और इसे “गणेश पर्वत” या “गणेश शिला” कहा जाता है।
ऐसा प्रतीत हुआ मानो शिव के पुत्र स्वयं इस यात्रा के रक्षक बनकर हिम में प्रतिष्ठित हैं। लगा, जैसे गणेश जी अपनी आशीर्वाद मुद्रा में हिमालय की गोद से हमें सफल यात्रा और निर्बाध मार्ग का वरदान दे रहे हों।
लोकश्रुति है — यह वही स्थान है जहाँ गणेश जी ने आदि कैलाश की रक्षा हेतु तप किया था, और तभी से उनकी छवि इस पर्वत पर अंकित हो गई। स्थानीय जन इसे “गणेश पर्वत” कहते हैं — सिद्धि का संकेत।
आदि कैलाश – शिव-पार्वती का प्रथम निवास
कुछ ही दूरी पर था — आदि कैलाश।
जहाँ गाड़ी पार्क की गई, वहीं से पर्वत के दर्शन शुरू हो गए। बादलों के बीच-बीच में जब पर्वत खुलता, तो मन जैसे शिव-सान्निध्य से भर जाता।
2007 में कैलाश मानसरोवर यात्रा का अवसर आया था, पर वहाँ नहीं जा पाया — शायद प्रभु की मर्जी थी कि वो दर्शन अब, इस समय, इस रूप में हों।
आदि कैलाश, जिसे “छोटा कैलाश” भी कहते हैं, धार्मिक मान्यता अनुसार भगवान शिव और माता पार्वती का प्रथम निवास माना जाता है।
तिब्बत में स्थित मूल कैलाश पर्वत की भांति इसका आकार भी पिरामिडनुमा है, और इसका आध्यात्मिक महत्त्व अत्यंत गहरा है। हमने वहाँ लंबे समय तक ‘ॐ नमः शिवाय’ का जाप किया, और भगवान को हृदय से धन्यवाद अर्पित किया।

लोकश्रुति है कि जब ब्रह्मा ने सृष्टि रची, तब संतुलन बनाए रखने के लिए शिव को हिमालय की गोद में तप के लिए आमंत्रित किया गया। शिव को चाहिए था मौन — और उन्होंने चुना यह स्थान, जिसे आज हम आदि कैलाश कहते हैं। यहीं उन्होंने ध्यान लगाया, यहीं माॅं पार्वती ने वर्षों तक तप किया। कहा जाता है, यही वह पवित्र भूमि है जहाँ शिव और पार्वती का प्रथम मिलन हुआ।
इस पर्वत की चुप्पी, इसकी ऊँचाई, और इसके चरणों में बहता पार्वती सरोवर — सब कुछ जैसे शिव की उपस्थिति को गूँजता है।
पार्वती कुंड – हिमालय की गोद में माँ की उपस्थिति
अब हमारा कारवां घोड़ों पर सवार होकर पार्वती सरोवर की ओर बढ़ा।
यह यात्रा 4,500 मीटर से 4,750 मीटर तक की चढ़ाई थी। हमारे दल में अधिकांश सीनियर सिटीज़न थे, इसलिए घोड़ा यात्रा ही सुरक्षित विकल्प था।
पार्वती कुंड — शांत, स्वच्छ, और हिमाच्छादित पर्वतों से घिरी
एक अद्भुत आध्यात्मिक झील है, जहाँ माँ पार्वती की उपस्थिति हर लहर में महसूस होती है। समूह के एक सदस्य राष्ट्रीय ध्वज तिरंगा लेकर आए थे, मंदिर के परिक्रमा स्थल पर आदि कैलाश के सम्मुख सभी ने तिरंगा फहराया, एवं फोटो लिए।
यहाँ से ब्रह्म पर्वत और पांडव पर्वत भी दृष्टिगोचर होते हैं। यह सब देखकर लगता है मानो महाभारत की कथाएं यहीं घटित हुई हों।
कैलाश मानसरोवर एवं आदि कैलाश – तुलनात्मक दृष्टिकोण
यात्रा के दौरान यह स्वाभाविक जिज्ञासा उत्पन्न होती है कि कैलाश मानसरोवर और आदि कैलाश में क्या अंतर है? इन प्रश्नों का उत्तर सरल नहीं, लेकिन श्रद्धा और लोकश्रुति के आलोक में कुछ इस प्रकार समझा जा सकता है:
कैलाश मानसरोवर
तिब्बत (विदेश) में स्थित यह स्थल भगवान शिव का स्थायी निवास माना गया है। यहीं पर शिव-पार्वती अपने परिवार सहित वास करते हैं।
मान्यता है कि मानसरोवर झील, ब्रह्मा की मानस कल्पना से प्रकट हुई थी।
इस पवित्र क्षेत्र में चतुर्मुख कैलाश, मानसरोवर तथा राक्षस ताल जैसे महत्त्वपूर्ण स्थल हैं।
शिव पुराण और स्कंद पुराण में इसका स्पष्ट उल्लेख मिलता है।
लोकश्रुति के अनुसार, इसकी एक परिक्रमा से मोक्ष की प्राप्ति संभव है। यह पर्वत शिव-तत्त्व का स्थायी और ब्रह्मांडीय प्रतीक माना जाता है।
आदि कैलाश
यह भारतवर्ष की गोद में, उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जनपद में स्थित है।
यह शिव का प्रथम ध्यान स्थल माना जाता है, जहाँ उन्होंने सृष्टि के प्रारंभिक काल में तप किया था।
यहाँ पार्वती की पृथक तपस्थली — पार्वती सरोवर — स्थित है, जो उनकी साधना से प्रकट हुआ माना जाता है।
इस क्षेत्र में गणेश पर्वत और ॐ पर्वत जैसे अद्वितीय दैवी संकेत स्थल भी हैं। हालाँकि पुराणों में “आदि कैलाश” का स्पष्ट उल्लेख नहीं मिलता, फिर भी श्रद्धालुओं की मान्यता है कि इसके दर्शन मात्र से ही पुण्य की प्राप्ति होती है।
संक्षिप्त में तुलना करें, तो कह सकते है –
“कैलाश मानसरोवर वहाँ है जहाँ शिव सपरिवार विराजते हैं —
और आदि कैलाश वहाँ है जहाँ शिव मौन साधक बनकर स्वयं से मिलते हैं।”
इतिहास में यह मोड़: प्रधानमंत्री की यात्रा
वर्ष 2019 से पहले यह पूरी यात्रा केवल पैदल ट्रेकिंग से ही संभव थी।
परंतु उसके बाद सड़क बनने के बाद, श्रृद्धालुओं का ध्यान इस ओर गया। फिर भी सीमावर्ती क्षेत्र होने से परमिट की जटिलता एवं सुलभ मार्ग न होने से इस क्षेत्र की जानकारी आम लोगों को नहीं थी। 2019 से 2023 के मध्य सड़क का काम तीव्र गति से चला। परमिट की सुविधा डिजिटल की गई।
प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी ने 12 अक्टूबर 2023 में पार्वती कुंड पहुंचकर पूजा-अर्चना की थी, एवं 25 मिनट ध्यान किया। वह आदि कैलाश का दर्शन करने वाले पहले प्रधानमंत्री बने। तब से ही इस यात्रा के प्रति देशवासियों का रुझान हुआ है। उनकी यात्रा टीवी पर देखकर हजारों श्रद्धालुओं की तरह मेरे मन में भी यह यात्रा करने का संकल्प जागा था। अब यह सपना 2025 में साकार हो रहा था।
पार्वती कुंड में दर्शन के बाद अनेक सहयात्रियों ने अपने ऑक्सीजन लेवल की जांच करवाई —
किसी का 99, तो किसी का 60।
इसके पश्चात गौरीकुंड की ओर जाने का निश्चय किया गया। परंतु मार्ग में एक सदस्य को चक्कर आने लगे। घोड़े से उतारकर उन्हें प्राथमिक उपचार दिया गया। फिर कुछ दूर जाने पर पुनः अस्वस्थता के कारण गौरीकुंड यात्रा स्थगित करनी पड़ी।
यद्यपि घोड़ेवाले पहले से ही गौरीकुंड न ले जाने के पक्ष में रहते हैं, (क्योंकि मेहनताना एक ही रहता है), फिर भी समूह के 14 में से 13 सदस्य वापसी का निर्णय लेकर आदि कैलाश लौट आए। मुझे स्वयं भी बहुत मन था गौरीकुंड जाने का, लेकिन घोड़े वाले द्वारा निरुत्साहित करने से नहीं जा पाया।
बहन का साहस – कांता की गौरीकुंड यात्रा
वापसी में पार्किंग स्थल पर आकर ज्ञात हुआ कि मेरी छोटी बहन कांता अकेले ही गौरीकुंड के लिए निकल पड़ी थी। हमने (मैं एवं एक और छोटी बहन निशा) आदि कैलाश में ही प्रतीक्षा करने का निर्णय लिया। शेष तीनों वाहन नाबी हेतु रवाना हो गए। कांता की गौरीकुंड से वापिस आने की झलक दूर से ही दिखाई दी , तब भय के बादल छट गये, एवं कांता के प्रति गौरवान्वित होने के भाव निर्मित हुए। जैसे ही वह घोड़े पर से उतरी, सजल नेत्रों से गले लगाकर शाबाशी दी।
प्रतीक्षा का पुरस्कार – पूर्ण दर्शन
कांता की प्रतीक्षा करते समय, आदि कैलाश पर्वत पर छाए बादल हट गए – और हमें पूर्ण दर्शन का अनुपम सौभाग्य मिला। कुछ देर बाद गौरीकुंड के दर्शन से अभिभूत हो कांता भी सकुशल लौट आईं थी।
हम तीनों ने मिलकर नाबी की ओर वापसी का सफर शुरू किया। रास्ते में एक गाड़ी रुकी दिखी – पता चला, सबसे छोटी सदस्य को ऑक्सीजन की कमी के कारण स्थानीय सरकारी डिस्पेंसरी में ऑक्सीजन दी जा रही थी। कुछ ही देर में उनके स्वस्थ होने पर दोनों गाड़ियाँ साथ-साथ नाबी पहुँचीं।
एक सपना साकार हुआ
आज की यह यात्रा केवल पर्वतों तक पहुँचना नहीं था – यह एक अंदरूनी चढ़ाई थी – संघर्ष, भक्ति, प्रकृति और आत्मा के संगम की यात्रा।
तीन वर्ष पूर्व संजोया सपना —
आज आदि कैलाश की गोद में पूर्ण हुआ।
(क्रमशः)
महेश बंसल, इंदौर
(कल के अंक में चित्र एवं वीडियो द्वारा ॐ पर्वत के दिव्य दर्शन)
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Travel Diary 4: धारचूला से नाबी गाँव – ऊँचाई की ओर शिवमय आरोहण /