
Travel Diary-7 : आदि कैलाश की अलौकिक यात्रा…
चौकोरी – सौंदर्य और हरियाली की गोद में विश्रांति
सातवां दिवस
महेश बंसल, इंदौर
आदि कैलाश एवं ॐ पर्वत की उस अलौकिक यात्रा के उपरांत, जब मन शिवमय हो चुका था और हृदय संतोष से परिपूर्ण था, तब शेष छह दिन उत्तराखंड की सुरम्य वादियों, मंदिरों, सरोवरों और फूलों के संग बिताने का अवसर मिला।
पुनः उन्हीं चार परिचित गाड़ियों और आत्मीय सारथियों संग हम धारचूला से अगले पड़ाव — चौकोरी — के लिए रवाना हुए, जहाँ दो रात्रियाँ विश्राम हेतु नियत थीं।

कुछ मार्ग जाना-पहचाना था, किंतु जो नया मार्ग मिला, वह और भी रमणीय था — एक हिल स्टेशन की शांति और सौंदर्य से भरपूर। जब हमारी चारों सफेद गाड़ियाँ एक साथ पहाड़ी मोड़ों पर लहराती हुई चलतीं, जब देवदारों की शाखाएं रास्ते पर झुकतीं, और नीचे दूर गांवों की टिमटिमाती छवियाँ दिखतीं — तब लगता मानो किसी स्वप्नलोक में प्रवेश कर चुके हों।
इसी सौंदर्य में खोए हुए कब दोपहर ढलकर साँझ हो गई, पता ही न चला। शाम 4 बजे हम चौकोरी पहुँच चुके थे।
चौकोरी की हरितिमा
चौकोरी, अपनी प्राकृतिक सुंदरता, सुव्यवस्थित चाय बगानों और घने देवदार–पाइन के जंगलों के लिए प्रसिद्ध है। ब्रिटिश काल में यहां चाय बगानों की नींव पड़ी थी, जो आज भी बेरीनाग और धरमघर क्षेत्र में अपने रंग-बिरंगे ढंग से लहराते हैं। सड़क किनारे छोटे-छोटे फूलों के बगीचे, रोडोडेंड्रॉन की झाड़ियाँ और पक्षियों की चहचहाहट इस स्थान को एक स्वर्गिक अनुभूति से भर देती हैं।
हमारा आश्रय स्थल था – Ojaswi Tea Garden Resort। यद्यपि नाम में ‘टी गार्डन’ है, लेकिन पूर्व में यहां टी गार्डन था, अब यह एक बगीचा संग एक रिसोर्ट बन चुका है – ऐसा बगीचा जो संभवतः चौकोरी के अन्य रिसॉर्ट्स की तुलना में अधिक सुंदर और सुसज्जित है।

एक बागवानी प्रेमी होने के नाते, यह गार्डन मेरे लिए एक स्वर्ग जैसा था। हर कोना सोच-समझकर संवारा गया था — फूलों का चयन, रंगों का संयोजन, पौधों की स्थिति और लैंडस्केपिंग सभी कुछ सुरुचिपूर्ण। मैंने रिसोर्ट मालिक को गमले से सूखे पत्ते हटाते देखा, और मुस्कुराकर कहा, “यह हमारी भी दिनचर्या का हिस्सा है।”
सच ही है — जो व्यक्ति किसी एक कार्य को सलीके से करता है, वह जीवन के हर क्षेत्र में वही अनुशासन ले आता है।
हैंगिंग रॉक्स और सूर्यास्त बिंदु
भोजन के उपरांत हम निकले पास के एक ट्रेकिंग स्थल — हैंगिंग रॉक्स की ओर। यह लगभग 400 मीटर की चढ़ाई वाला एक छोटा-सा ट्रेकिंग पथ है, जहाँ से देवदार के पेड़ों के पार हिमालय की चोटियाँ दृष्टिगोचर होती हैं। हालाँकि उस दिन बादलों के कारण पर्वत-शिखरों के दृश्य आंशिक ही मिल पाए, पर बर्फ से ढके कुछ शिखरों की झलक मिल ही गई थी।

इसके बाद सूर्यास्त व्यू पॉइंट की ओर प्रस्थान किया। यह स्थल सड़क के किनारे ही था, इसलिए गाड़ियों से उतरकर आस-पास के आने-जाने वाले वाहनों को देखते हुए बातचीत में समय बिताया। सूर्यास्त के समय क्लिक की गई एक तस्वीर में समीप का पेड़, उसके झुके हुए सिर पर एक आकृति — जैसे घोड़े पर सवार कोई योद्धा — और ठीक उसी फ्रेम में डूबता सूरज।

क्षणभर को लगा, जैसे वह घुड़सवार अस्त नहीं, सूर्य उदय का प्रतीक बन रहा हो।
दिन का भोजन पहले ही विलंब से हुआ था। अतः सफ़र के दौरान रास्ते से लिए आम और कुछ अन्य फल तथा घर से लाया गया अल्पाहार ही रात्रि भोज बना — और दिनभर की सुखद थकान लिए सभी अपने-अपने कमरों की ओर लौट गए।
विशेष स्मरण:
यह सातवाँ दिवस आदि कैलाश की ऊँचाई से उतरकर, हरियाली की गोद में विश्रांति और सौंदर्य को समर्पित रहा। चौकोरी न केवल हमारी यात्रा का पड़ाव बना, बल्कि एक ऐसी शांत जगह भी सिद्ध हुई, जहाँ हिमालय के आंचल में मन शांति और प्रकृति दोनों से आलिंगन कर सका।
(क्रमशः)

महेश बंसल, इंदौर
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