

Travel memoirs: सोनागिर जहाँ साढ़े 5 करोड़ मुनियों ने मोक्ष प्राप्त किया!
इस वर्ष हम कुछ परिवारों ने तीर्थ यात्रा के लिए थूबोनजी ,चंदेरी, सेरोनजी गोलाकोट, पचराई, सोनागिरजी ,और ग्वालियर का कार्यक्रम बनाया 13 मार्च,शाम 6:00 बजे हमारी ट्रेन रतलाम से थी जो सुबह 4:30 बजे हमें शिवपुरी पहुंचाने वाली थी। ट्रेन यात्रा काअलग ही आनंद है।आराम से लेटकर पत्रिका,पेपर पढ़िए । मोबाइल पर चैटिंग करिए।सुबह से देर रात तक के घर जैसे सौ काम भी नहीं दिखते हैं।
शाम का खाना हम सभी ने ट्रेन में खाया।सभी घर से पूर्व निर्धारित योजना के अनुसार अपनी कुशलता के अनुसार घर से खाना बनाकर लाए थे।मेरे हिस्से पुलाव बनाना आया।क्या करूं ? रतलाम में साधारणतया खाने जाने वाली तेल, मिर्च मेरी कल्पना में ही नहीं आ पाती है।बढ़ती उम्र में लचीलापन ली हुई समूह यात्रा में सुरक्षा, मनोरंजन,होटल बुकिंग,हारी- बीमारी में साथ,सभी में सहूलियत हो जाती है।
शिवपुरी में 17 सीटर ट्रैवलर हमारा इंतजार कर रही थी। ट्रैवलर में बैठते ही भक्तांबर स्त्रोत,मेरी भावना,बारह भावना जब बजने लगा तो वातावरण भक्तिमय हो गया ।6:00 बजे हम सभी को एक ढाबे पर मीठी,फीकी, चाय,कॉफ़ी,दूध पीने में 7:30 बजे गए।जब वहां से निकलकर और तैयार होकर थूबोनजीमंदिर पहुंचे तब तक मंदिर में अभिषेक,शांति धारा सब हो चुकी थी ।मन में बुरा लगा।दरअसल चाय में हमने बहुत समय व्यतीत कर दिया था। इससे हमने सबक सीखा कि बचे हुए दो दिन हम सभी 6:00 बजे तैयार होकर मंदिर दर्शन के लिए निकल लेंगे।
थूबोनजी में हमें 26 मंदिर मिले यह मंदिर 12वीं शताब्दी में पाड़ाशाहजी ने बनवाए थे।ज्यादातर मंदिरों के दरवाजे चार ,सवा चार फीट के ही थे और पत्थर से बनी प्रतिमा 12 फीट की।यानी 6 फीट तलघर में और 6 फीट ऊपर रहती है। इसके पीछे वजह होगी कि भगवान के सामने सर झुकाकर रहना है।और विदेशी आक्रमण से भी यह बचाती होगी। मुख्य मंदिर में भगवान आदिनाथ की एक 28 फीट ऊंची चित्ताकर्षक खडगासन प्रतिमा है।बुंदेलखंड और चंबल के इस इलाके में लोग मेहनती,सादगीपसंद दिखे।घर भी बाहर से तो ज्यादातर बिना पुते हुए साधारण से दिखे।शायद डकैतों से बचने के लिए।
यहां से चंदेरी पहुंचने में 1:00 बज गए थे।हमारे ग्रुप में एक सज्जन चंदेरी के ही थे। उनके घर धुलेंडी के दिन हम सब सुस्वादु भोजन के लिए निमंत्रित थे। उनकी परिचित दुकान से हम सबने 1 घंटे के निर्धारित समय में साड़ियां ली। फिर हमने चंदेरी का किला देखा। जहां सुई धागा और हॉरर कॉमेडी स्त्री,स्त्री2 फिल्म की शूटिंग हुई है। फिल्म में एक विशाल गेट कटीघाटी दिखाया गया है। एक ही रात में घाटी कटवा कर जिमान खान ने 1995में दरवाजा बनवाया था।एक मिस्त्री ने पूरी रात काम किया और विशाल गेट बना डाला। जमीन से 200 फीट की ऊंचाई पर यह गेट 80 फीट ऊंचा और 39 फीट चौड़ा है।ऐसा कहा जाता है,मिस्त्री को जब इनाम नहीं दिया गया तो उसने इस गेट से कूद कर जान दे दी। आज भी उस मिस्त्री की आत्मा उस गेट पर भटकती है।हमने चंदेरी में बेतवा नदी पर बना राजघाट बांध भी देखा।शूटिंग के चलते यहां पर पर्यटन,व्यापार और चंदेरी साड़ी उद्योग को नई दिशा मिली है ।
चंदेरी से फिर हम सेरोनजी तीर्थ गए।यहां 16 वें तीर्थंकर शांतिनाथ जी की 18 फीट ऊंची मूर्ति है। पांचवीं छठी शताब्दी में इस भूभाग पर विदेशी बर्बर हूड और मुसलमानों ने भीषण आक्रमण किया था।इसलिए युद्ध, विध्वंस से परेशान जनता ने शांति प्रदाता भगवान शांतिनाथ की प्रतिमा और उपासना को प्रोत्साहन दिया।यहां खंडित मूर्तियों के लिए मूर्ति संग्रहालय भी है ।शांतिनाथ माध्यमिक विद्यालय और आयुर्वेदिक औषधालय भी है ।
यहां से हम अतिशय क्षेत्र गोला कोट गए। यह गोलाकार पहाड़ी को काटकर बना है ।यहां यात्रियों की बहुत सघन चेकिंग होती है। प्रथम तीर्थंकर आदिनाथ भगवान जी के यहां 3000 वर्ष पुरानी अत्यंत ऊर्जावान प्रतिमा है। यहां कृत्रिम सरोवर के चारों ओर 25 संत कुटी ,पांच सितारा अतिथि यात्री निवास, वातानुकूलित भोजनशाला ,खुला रंगमंच जिसमें धार्मिक सांस्कृतिक कार्यक्रम व विवाह आदि संपन्न किए जाते हैं ।हेलीपैड और तितली के आकार का एक बगीचा भी है ,जिसमें एक लाख वृक्ष लगाये जा चुके हैं ।सभी बहुत रमणीय है।यह डेस्टिनेशन मैरिज के लिए पसंदीदा स्थान बन गया है।पुरुष वर्ग द्वारा की जाने वाली अभिषेक, शांति धारा को हमारे साथ की महिलाओं ने अपने बुजुर्ग माता-पिता और बच्चों को वीडियो कॉल करके दिखाया ।एक महिला ने किसी रिश्तेदार की जल्द शादी हो जाने के लिए दीपक जलाया।
गोलाकोट से हम पचराईजी गए। यहां लाल रंग के पत्थर से निर्मित प्रतिमाएं उन्नत मूर्ति कला की सूचक हैं।मूर्तियों में ऐसा लगता है मानो प्राण हैं और वह अब बस बोलने ही वाली हैं।कुछ प्रतिमाओं पर हीरे का पॉलिश है ।
सोनागिर तक पहुंचते रात होने आई थी रास्ते में हमने सबने टमाटर ककड़ी खरीद कर वहीं भेल बनाई वैसे भी सफर में रात्रि भोजन हल्का करना ही ठीक कर रहता है।रास्ते में ट्रैवलर में अंताक्षरी खेलते समय हमें भी अपने कॉलेज के दिन याद आ गए ।सोनागिरी में पर्वत पर 77 मंदिर और शहर में 27 मंदिर हैं। सुबह 6:00 बजे हमने पर्वत पर चढ़ना नंगे पैर चढ़ना शुरू कर दिया।सूर्य देव के आने का समय हो गया था। सफेद नीले आकाश में सूर्य की लालिमा पहले हल्की फिर गहरी हुई और पहाड़ी के पीछे से उछलकर आग का एक गोला ऊपर आ गया ।लाल भट्टी सा सूर्य,जो संपूर्ण विश्व के प्राणियों को जीवन देता है, उनमें चेतना जगाता है ।उसे देख हमारा सिर नतमस्तक हो गया।
पर्वत पर 57 नंबर का मंदिर प्रमुख मंदिर है इसमें 11 फीट ऊंची चंदा प्रभु भगवान की अतिशयकारी मूर्ति है।इस मंदिर में एक विशाल हाल है।जिसमें ध्यान किया जाता है। यहां बहुत भीड़ थी। अंतिम 77वें मंदिर में एकदम खड़ी सीढ़ियां थीं।पति महोदय जिनका सात माह पहले ही दोनों घुटने का ऑपरेशन हुआ था।हमने कहा डोली पर बैठ जाओ तो डोली वालों ने भी मना कर दिया बोले, बाबूजी को आप एक मंदिर के लिए डोली पर मत बैठाओ। जैन धर्म के आठवें तीर्थंकर चंदा प्रभु यहां 17 बार आए थे ।साढ़े पांच करोड़ मुनियों ने यहां से मोक्ष प्राप्त किया है ।नीचे जब हम 11:00 बजे उतरे तो रास्ता गरम हो गया था और पैर जलने लगे थे। नीचे हमने नवनिर्मित गुफा मंदिर और 20 पंथी मंदिर (भगवान जी को जिसमें फूल चढ़ा सकते हैं )के भी दर्शन किए। दोपहर के 3:00 बज गए थे।
ग्वालियर से हमारी ट्रेन शाम 6:50 की थी। हमें ग्वालियर में जय विलास पैलेस देखने की प्रबल इच्छा थी ।ज्यादातर का वह देखा हुआ था।फिर भी हमारी इच्छा को देखते हुए उन्होंने खुद की चाय पीने की इच्छा को रोके रखा और पैलेस के आगे ट्रैवलर रुकवाई।और हमें कहा,आप सीधे रेलवे स्टेशन आ जाना।पैलेस देखने के लिए हमने दौड़कर टिकट ली।
बाहरी प्रांगण की ही गुलाबी, रानी, पीले,सफेद रंग की बोगनवेलिया ने मन मोह लिया।महल में 400 कमरे हैं ।यह सिंधिया राज परिवार का वर्तमान निवास स्थल ही नहीं एक भव्य संग्रहालय भी है।जिसके 35 कमरों को संग्रहालय बना दिया गया है ।इस महल का प्रसिद्ध दरबार हाल भव्य अतीत का गवाह है ।इसमें एक प्रसिद्ध चांदी की रेल है जिसकी पटरिया डाइनिंग टेबल पर लगी है और विशिष्ट दावत में यह रेल रास्ते में पेय परोसते चलती है। यहां दो फानूस भी हैं ।जो दो-दो टन के हैं और इन्हें तब ही टांगा गया जब 10 हाथियों को छत पर चढ़ाकर मजबूती मापी गई।यहां इटली, फ्रांस,चीन तथा अन्य कई देशों की दुर्लभ कलाकृतियां हैं। यह 1874 में बना है और अब इसकी कीमत 4000 करोड रुपए है ।महाराजाओं के बिलियर्ड खेलने के लिए कक्ष है।राजकीय कक्ष भी है ,जहां राजा और उच्च अधिकारी मिलकर क्षेत्र के मुद्दों पर चर्चा करते थे। पारसनाथ भगवान और शांतिनाथ भगवान की पत्थर की बनी खंडित मूर्तियां हैं ।प्रांगण में संतरे का एक वृक्ष है जिसमें छोटे-छोटे संतरे पूरे वर्ष आते हैं। रसोई कक्ष में खाना बनाने के लिए कुछ बर्तन इतने भारी हैं कि हमसे दोनों हाथों से भी नहीं खिसक पा रहे थे ।खाने पीने के लिए सुंदर क्रॉकरी,चांदी के बर्तन हैं ।6 बजने वाले थे।हम रेलवे स्टेशन पहुंचे, जिसकी इमारत भी अंग्रेज शासको के समय की कोई बिल्डिंग थी। रानी लक्ष्मीबाई वीरांगना ट्रेन से जब हम 17 मार्च को सुबह 6:00 बजे रतलाम उतरे तब हमें ट्रेन के नाम पर ही गर्व हो उठा ।यहां पक्षी चहचहा रहे थे ।परिवारों की आपसी सामंजस्य की स्मृति,पहाड़ी पर चढ़ सकने का आत्मविश्वास और इस भावना को भाते हुए उतरे कि हे !भगवान!हमें अपने तीर्थ क्षेत्र में फिर बुलाना।तीर्थ स्थलों में रज ही कुछ ऐसी होती है कि बार बार जाने का मन होता है।
श्रद्धा जलज घाटे
9425103802
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