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रुक्मिणी मंदिर {Rukmini Temple} : “द्वारका धाम की यात्रा इस मंदिर के दर्शन के बिना पूर्ण नहीं मानी जाती है!”
सभी स्थानों व मंदिरों में कृष्ण के साथ राधा रानी का पूजन होता है। लेकिन मथुरा के द्वारकाधीश मंदिर व महाराष्ट्र के पंढरपुर नामक गांव में विट्ठल रुक्मिणी मंदिर है, जहां कृष्ण के साथ रुक्मिणी जी के साथ पूजा जाता है। ये 2 मंदिर ही ऐसे हैं पूरे देश में जहां इन दोनों की पूजा होती है।विस्तार से बता रहे हैं – लेखक श्री विक्रमादित्य सिंह ऐसे मंदिर के बारे में जहां केवल देवी रुक्मिणी की पूजा ही होती है।
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नागेश्वर ज्योतिर्लिंग का दर्शन करने के पश्चात, रुक्मिणी देवी के मंदिर का दर्शन हम लोगों के द्वारा किया गया। रुक्मिणी मंदिर भगवान कृष्ण की आठ पटरानियों में से प्रमुख पत्नी रुक्मिणी को समर्पित है, जिन्हें माता लक्ष्मी का अवतार माना जाता है। माता रुक्मणी विदर्भ देश( वर्तमान महाराष्ट्र का एक क्षेत्र) की राजकुमारी थी। भगवान कृष्ण ने उनकी इच्छा के अनुरूप हरण कर विवाह किया था। मंदिर के गर्भगृह में माता रुक्मणी का चतुर्भुजी सुंदर विग्रह है, माता इस विग्रह रूप में शंख, चक्र, गदा एवं पद्म धारण किए हुए हैं।
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मंदिर के शिखर पर लहराता विशाल ध्वज मंदिर की शोभा को दूर से ही सुशोभित करता है। शिखर पर यह ध्वजा प्रत्येक दिन तिथि एवं त्यौहारों के अनुरूप बदले जाते हैं। द्वारका के अधिकतर मंदिरों की ही तरह माता रुक्मिणी का यह मंदिर भी बलुआ पत्थर से निर्मित है।
द्वारका धाम की यात्रा करने वाले भक्तों के लिए कहा जाता है कि इस मंदिर के दर्शन के बिना यह यात्रा पूर्ण नहीं मानी जाती है। मंदिर के गर्भगृह में दर्शन से पहिले मंदिर के महंतों के द्वारा मंदिर से जुड़ी पौराणिक कथाओं एवं मान्यताओं का विस्तार से वर्णन किया जाता है, एवं यह भी बताया जाता है कि भगवान कृष्ण एवं रुक्मणी के विवाह के चार फेरे इस स्थान पर हुए थे, फेरे के समय लगाया गया द्वार एवं तोरण वही है जो मंदिर में लगा हुआ है, यह स्थानीय पंडित द्वारा बताया जाता है। इसके साथ-साथ दान से जुड़ी अवधारणाओं के बारे में भी बताया जाता है।
मंदिर का सबसे लोकप्रिय एवं धूम-धाम से मनाया जाने वाला त्यौहार निर्जला एकादशी है इसे रुक्मिणी हरण एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। रुक्मणी देवी मंदिर में पीने के पानी का दान सबसे बड़ा महत्वपूर्ण दान माना जाता है। अतः मंदिर में भक्त 1001, 1100 लीटर अथवा अपनी श्रद्धा एवं सामर्थ्य के अनुसार पानी का दान करते हैं। मंदिर के चारों ओर पेय जल की भारी कमी, हमें जल की महत्ता को समझाने क लिए प्रेरित करती है।
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नागेश्वर ज्योतिर्लिंग तथा बेट द्वारका के लिए ओखा की ओर जाते समय देवी रुक्मिणी का यह मंदिर द्वारका से निकलते ही रास्ते में ही पड़ता है। मंदिर, द्वारका से बाहरी ओर लगभग 2 किलो मीटर की दूरी पर समुद्र के किनारे स्थित है। मंदिर की दीवारों पर हाथी, घोड़े, देव और मानव मूर्तियाँ की नक्काशी की गई है, अनेक मूर्तियां खंडित है, स्पष्ट है कि इस्लामी आक्रांताओं ने ही यह खंडन किया होगा। वर्तमान मंदिर का अस्तित्व 12 वीं शताब्दी की संरचना माना जाता है।
इस मंदिर के आसपास भी स्वच्छता का अभाव पाया गया। जानकारी प्राप्त हुई कि उज्जैन के महाकाल लोक की भांति द्वारका, नागेश्वर, रुक्मिणी मंदिर का भी विकास किए जाने की योजना बन गई है। आशा है अगली यात्रा के समय इन क्षेत्रों का विकास व्यवस्थित ढंग से हुआ दिखेगा।
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विक्रमादित्य सिंह