श्रद्धांजलि : महेंद्र सेठिया ‘जो मुझे राह दिखाये वो सितारा न रहा!’

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वरिष्ठ पत्रकार जय नागड़ा के संस्मरण

यह स्वीकारने में मुझे कभी कोई संकोच नहीं रहा कि यदि मैं पत्रकारिता के क्षेत्र में आ सका, तो इसकी वज़ह सिर्फ़ और सिर्फ़ नईदुनिया के प्रबंध संपादक रहे महेन्द्र सेठिया ही रहे। मैंने कॉलेज से मेथ्स में एमएससी किया ही था और पापा प्रफुल्ल नागड़ा के साथ फोटोग्राफी में सक्रिय हो गया। पापा के फोटो देश की प्रमुख पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होते ही थे। मेरी वह शुरुआत थी। नईदुनिया में मेरे द्वारा खींचे गए फोटोग्राफ भी छपने लगे थे! लेकिन, कभी नईदुनिया प्रेस नहीं गया था! कभी इसके सम्पादको से कोई मुलाकात भी नहीं हुई थी।

मुझे अच्छे से वह तारीख आज भी याद है 21 मार्च 1988 को ओंकारेश्वर में मेरी पहली मुलाकात महेन्द्र सेठिया से नईदुनिया के प्रमुख छायाकार शरद पंडित ने करवाई थी। अवसर था अर्जुनसिंह पंजाब के राज्यपाल का पद से पुनः मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री बनाए गए थे और वे मुख्यमंत्री का पदभार ग्रहण करने के पहले ओंकारेश्वर में भोलेनाथ का आशीर्वाद लेना चाहते थे। यहाँ सेठिया जी ने मुझे बहुत प्रोत्साहित किया और कहा कि जनसमस्याओं से जुड़े फोटो, डिटेल केप्शन के साथ भेजते रहा करो। मैंने खंडवा की समस्याओं को फोटो फीचर के माध्यम से उठाना शुरू किया तो उसे बहुत प्रमुखता से प्रकाशित किया गया। इस तरह फोटो जर्नलिस्ट के बतौर मेरी नईदुनिया के साथ शुरुआत हुई।

इसके अगले ही माह वे खंडवा आए तो मुझे पूर्व सूचना दी गई कि मुझे उनके साथ दिनभर रहना है। मुझे नहीं पता था कि उनका क्या मंतव्य था! इसी दौरान तत्कालीन कलेक्टर राघवचंद्रा से भी मिलने वे मुझे साथ ले गए। यहाँ बातों ही बातों में राघवचंद्रा साहब ने मेरी तारीफ़ करते हुए महेन्द्रजी से पूछ लिया कि जय, बहुत अच्छा काम कर रहा है, आप इसका कोई उपयोग कर रहे है क्या! महेन्द्रजी ने सिर्फ मुस्कुरा कर गर्दन हिलाई और संकेतो में जवाब दे दिया। अभी कलेक्टर के कमरे से बाहर निकले ही थे कि महेन्द्रजी ने मुझसे कहा ‘अब काँटों का ताज़ तुम्हारे सर पर है … मैं फिर भी कुछ ज्यादा समझ नहीं पाया कि मैं नईदुनिया का सबसे कम उम्र (मात्र 23 वर्ष) में खंडवा में ‘नईदुनिया’ का ब्यूरो चीफ़ बना दिया जाऊंगा।

तब अखबारों के ब्यूरो प्रमुख अमूमन 45-50 वर्ष से कम उम्र के नहीं होते थे। ‘नईदुनिया’ उस दौर का सबसे ज्यादा प्रामाणिक और प्रभावी अखबार हुआ करता था जिसके लिखे शब्द की प्रमाणिकता शासन के गज़ेटियर से कम नहीं होती थी। मैंने सहज़ रूप से महेन्द्रजी से सवाल किया कि मैंने तो आज तक कभी ‘पत्र, संपादक के नाम’ वाले कॉलम में पत्र तक नहीं लिखा है, मैं कैसे यह बड़ी ज़िम्मेदारी निभा पाउँगा! उन्होंने कहा, मुझे विश्वास है कि तुम इसे अच्छे से कर लोगे! दरअसल, उन्हें मुझसे ज़्यादा स्वयं पर विश्वास था कि वे मुझसे यह सब करवा लेंगे।

इसके बाद कभी उनकी डांट और कभी स्नेह ने मुझे लगातार तराशा और जो कुछ भी बन सका सब सेठियाजी की ही वज़ह से। कभी-कभी तो अकारण भी उनकी बहुत डांट सुननी पड़ती! लेकिन, हम उसे प्रसाद समझकर ग्रहण कर लेते। बाद में जब वे शांत होकर हमारा पक्ष सुनते तो बिल्कुल सहज हो जाते जैसे कुछ हुआ ही नहीं हो। ऐसे ही एक बार जब ‘नईदुनिया’ में किसी काम से गया तो ऑफिस में सन्नाटा छाया था। मैं तो नमस्कार करने के बहाने महेन्द्रजी तक गया था, पता नहीं था कि उनका सारा गुस्सा मुझ पर ही उंडेल दिया जाएगा। मुझे लगा कि आज अपना दिन अच्छा नहीं है। बिना बात के फटकार सुननी पड़ी। थोड़ी देर बाद लंच का टाईम हुआ तो मुझसे पूछते है कि अभी क्या प्रोग्राम! मैंने कहा कुछ ख़ास नहीं। तब अपनी कार में साथ बैठाकर अपने घर ले गए और सीधे डायनिंग टेबल पर। जितना पेट भरकर उन्होंने डांटा उतना ही पेट भरकर उतने ही स्नेह से खाना भी खिलाया।

नईदुनिया से अलग होने के बावजूद उनसे रिश्ते नहीं छूटे। खंडवा का कभी कोई काम हो, तो वो पूरे अधिकार से मुझसे ही कहते। खंडवा जब भी आए तो सहज रूप से घर आते, यहीं भोजन साथ करते। आत्मीयता उनकी जैसी नहीं देखी, अपनों के लिए उतने ही फिक्रमंद भी। वे जब गरज़ते तो रूह कांप जाती और जब बरसते तो स्नेह से मन भिगो देते! सोचता हूँ कि यह कैसा अज़ीब व्यव्हार है पल में नाराज़ ,पल में असीम प्यार। दरअसल, जो लोग बहुत सीधे और सहज होते है उन्हें समझना उतना ही कठिन होता है। यह उनकी सहज़ता ही थी कि वे अपने मन के भावो को कभी छिपाते नहीं थे। कोई दुर्भावना नहीं थी, निष्कपट थे इसीलिए उनसे जो भी जुड़ा जीवन भर उनका मुरीद हो गया।

सच कहूं तो पत्रकारिता के जो संस्कार मुझे नईदुनिया से मिले आज जो कुछ भी पाया वह उन्ही की बदौलत। ‘नईदुनिया’ में रहकर कभी कोई पैसे से बहुत अमीर नहीं बना। लेकिन, पाठको के असीम प्यार ने उसे बहुत अमीर बना दिया। महेन्द्र जी उस किस्म के संपादक रहे जो अपने संवाददाता की गलती पर उसे फटकार लगाते तो उसके सही होने पर सरकार के प्रभावशाली मंत्री ही नहीं, मुखिया तक से भिड़ने की ताकत रखते। एक अभिभावक के तौर पर उनका सरंक्षण मिलता और इसीलिए नईदुनिया की पत्रकारिता की नर्सरी से ऐसी पौध निकली जिसने देश की पत्रकारिता को समृद्ध कर दिया। इस समय देश के किसी भी मीडिया समूह में यदि कही पत्रकारिता के संस्कार दिखे तो मान लीजिए कि वह नईदुनिया से ही आया कोई शख़्स है।

रहे न रहे वो, महका करेंगे पत्रकारिता के आँगन में!

महेन्द्र सेठिया जी को भावपूर्ण नमन!