पुष्पेंद्र पाल की श्रद्धांजलि सभा और वैदिक का जाना…

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पुष्पेंद्र पाल की श्रद्धांजलि सभा और वैदिक का जाना…

14 मार्च मंगलवार का दिन मध्यप्रदेश के लिए बहुत ही कष्टकारी रहा। माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय के एमपी नगर स्थित कैंपस में स्वर्गीय पुष्पेंद्र पाल सिंह की श्रद्धांजलि सभा रखी गई थी। पुष्पेंद्र पाल सिंह यानि पीपी सर के जाने के दु:ख से अभी मध्यप्रदेश और देशभर में फैले उनके प्रशंसक उबर भी नहीं पाए थे और मंगलवार को सुबह ही देश के पत्रकारिकता स्तंभ, मध्यप्रदेश के इंदौर निवासी वेदप्रताप वैदिक के जाने की खबर ने प्रदेशवासियों को गमगीन कर दिया। ऐसा लगा जैसे मध्यप्रदेश के पत्रकारिकता जगत पर ईश्वर ही कुपित हो गया हो।
वेदप्रताप वैदिक जी से मेरी भी कई बार मुलाकात हुई और बात भी हुई। वह बहुत ही सहज, सरल और स्पष्टवादी थे। 78 वर्ष की उम्र में नियमित निर्णायक लेखन करने वाले वैदिक जी की बराबरी कोई नहीं कर सकता। खबर यही थी कि वैदिक जी नहीं रहे। विस्तार यह है कि वरिष्ठ पत्रकार डाॅ. वेदप्रताप वैदिक अब इस दुनिया में नहीं रहे। वह करीब 78 साल के थे। बताया जा रहा है कि वह नहाने के समय बाथरूम में गिर गए थे, जिसके बाद तत्काल उन्हें नजदीकी अस्पताल ले जाया गया, जहां डॉक्टरों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया। डाॅ. वेदप्रताप वैदिक की गणना उन राष्ट्रीय अग्रदूतों में होती है, जिन्होंने हिंदी को मौलिक चिंतन की भाषा बनाया और भारतीय भाषाओं को उनका उचित स्थान दिलवाने के लिए सतत संघर्ष और त्याग किया। महर्षि दयानंद, महात्मा गांधी और डाॅ. राममनोहर लोहिया की महान परंपरा को आगे बढ़ानेवाले योद्धाओं में वैदिकजी का नाम अग्रणी है।
पत्रकारिता, राजनीतिक चिंतन, अंतरराष्ट्रीय राजनीति, हिंदी के लिए अपूर्व संघर्ष, विश्व यायावरी, प्रभावशाली वक्तृत्व, संगठन-कौशल आदि अनेक क्षेत्रों में एक साथ मूर्धन्यता प्रदर्शित करने वाले अद्वितीय व्यक्त्तिव के धनी डाॅ. वेदप्रताप वैदिक का जन्म 30 दिसंबर 1944 को पौष की पूर्णिमा पर इंदौर में हुआ। वे सदा प्रथम श्रेणी के छात्र रहे। वे रुसी, फारसी, जर्मन और संस्कृत के भी जानकार थे। उन्होंने अपनी पीएच.डी. के शोधकार्य के दौरान न्यूयार्क की कोलंबिया यूनिवर्सिटी, मास्को के ‘इंस्तीतूते नरोदोव आजी’, लंदन के ‘स्कूल ऑफ ओरिंयटल एंड एफ्रीकन स्टडीज़’ और अफगानिस्तान के काबुल विश्वविद्यालय में अध्ययन और शोध किया। वैदिकजी नेे जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के ‘स्कूल ऑफ इंटरनेशनल स्टडीज’ से अंतरराष्ट्रीय राजनीति में पीएच.डी. की उपाधि प्राप्त की। वे भारत के ऐसे पहले विद्वान हैं, जिन्होंने अपना अंतरराष्ट्रीय राजनीति का शोध-ग्रंथ हिन्दी में लिखा। पिछले 60 वर्षों में हजारों लेख और भाषण! वे लगभग 10 वर्षों तक पीटीआई भाषा (हिन्दी समाचार समिति) के संस्थापक-संपादक और उसके पहले नवभारत टाइम्स के संपादक (विचारक) रहे। फिलहाल दिल्ली के राष्ट्रीय समाचार पत्रों तथा प्रदेशों और विदेशों के लगभग 200 समाचार पत्रों में भारतीय राजनीति और अंतरराष्ट्रीय राजनीति पर डाॅ. वैदिक के लेख हर सप्ताह प्रकाशित होते थे।
फिलहाल तो वैदिक जी का जाना, पत्रकारिता जगत को अपूरणीय क्षति कर गया। वह जहां भी रहे, उन्होंने मंच को सुशोभित किया।‌ किसी भी राज्य में जाएं, राजनेता उनके व्यक्तिगत प्रशंसक ही रहे। और मध्यप्रदेश के लिए तो वह गौरव थे। पत्रकारिता जगत में उनका नाम हमेशा गौरव से लिया जाएगा। पीपी सर और वैदिक जी दोनों का जाना मध्यप्रदेश के लिए बहुत बड़ी क्षति है, जिसकी कभी भी भरपाई नहीं की जा सकती।