UNESCO Heritage Site: होयसल के पवित्र समूह विश्व विरासत सूची में शामिल

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UNESCO Heritage Site: होयसल के पवित्र समूह विश्व विरासत सूची में शामिल

ई दिल्ली, कर्नाटक के होयसलों के पवित्र समूह को संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक और सांस्कृतिक संगठन (यूनेस्को) की विश्व विरासत सूची में जगह दी गई। होयसला के पवित्र समूह में कर्नाटक के बेलूर, हलेबिड और सोमनाथपुरा के होयसला मंदिर शामिल हैं।यूनेस्‍को की विश्‍व धरोहर स्‍थलों की सूची में भारत से एक और नाम शामिल हो गया है। नया नाम ‘होयसल के पवित्र मंदिर समूह’ है। इसी के साथ ही भारत में यूनेस्‍को विश्‍व धरोहर स्‍थलों की संख्‍या बढ़कर 42 हो गई है।
इससे पहले पश्चिम बंगाल के शांति निकेतन को भी यूनेस्‍को की विश्‍व धरोहर सूची में जगह मिली थी। अब होयसल के पवित्र मंदिर समूह को यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल के रूप में मान्यता प्रदान की गई है।

होयसल मंदिर का इतिहास

होयसल मंदिर 12वीं-13वीं शताब्दी में बनाए गए थे। कला एवं साहित्य के संरक्षक माने जाते होयसल राजवंश की यह राजधानी थी। तीन होयसला मंदिर भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) के तहत संरक्षित स्मारक हैं। इसलिए एएसआई इसका संरक्षण और रखरखाव करता है। होसयल के पवित्र मंदिर समूह बेलूर, हलेबिड और सोमनाथपुरा में स्थित है। इस राजवंश को कला और साहित्य के संरक्षक माना जाता है। इसका संरक्षण भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण यानी ASI करता है। भगवान शिव को समर्पित होयसल मंदिर का निर्माण 1150 ईस्वी में होयसल राजा द्वारा काले शिष्ट पत्थर से बनवाया गया था। मंदिर में हिंदू धर्म से संबंधित देवी देवताओं के चित्रों, मूर्तियों को उकेरा गया है।

Hoysala साम्राज्य के मंदिर UNESCO की वर्ल्ड हेरिटेज की लिस्ट में शामिल

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने इसे भारत के लिए गौरव का क्षण बताया है।

प्रधानमंत्री मोदी ने एक्स पर पोस्ट में कहा, भारत के लिए यह और भी गौरव की बात है! होयसल के शानदार पवित्र स्मारकों को यूनेस्को की विश्व धरोहर सूची में शामिल किया गया है। होयसल मंदिरों की शाश्वत सुंदरता और जटिल विवरण भारत की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत और हमारे पूर्वजों की असाधारण शिल्प कौशल का प्रमाण हैं।

  • हैलेबिडु नगर का सर्वाधिक महत्वपूर्ण मंदिर भगवान शिव को समर्पित होयसलेश्वर मंदिर है। इसका निर्माण राजा विष्णुवर्धन के एक अधिकारी केतुमल्ला सेट्टी ने किया था। केतुमल्ला सेट्टी ने यह मंदिर राजा विष्णुवर्धन एवं उनकी प्रिय रानी शांतला देवी के सम्मान में बनवाया था। यह मंदिर भगवान शिव के दो स्वरूपों को समर्पित है, होयसलेश्वर एवं शांतलेश्वर।
  • इस मंदिर का निर्माण सन् 1121 में आरंभ हुआ था। ऐसा कहा जाता है कि इसका निर्माण कार्य एक सदी तक जारी था। कुछ इतिहासकारों का कथन है कि इस का निर्माण कार्य अब भी अपूर्ण है क्योंकि मदिर में शिखर नहीं है। मंदिर के कुछ भाग ऐसे हैं जो अब भी पूर्ण नहीं हैं। किन्तु कुछ लोगों की राय है कि शिखर को ध्वस्त किया गया है।
  • होयसलेश्वर मंदिर का निर्माण एक ऊँचे प्लेटफॉर्म पर हुआ है और इस प्लेटफॉर्म पर 12 नक्काशीदार परतें बनी हुई हैं। यह होयसल वास्तुशिल्प का बेहतरीन उदाहरण है कि इन 12 परतों को जोड़ने में न तो चूना सीमेंट का उपयोग हुआ और न किसी अन्य तरह के पदार्थ का, बल्कि इन्हें इंटरलॉकिंग तकनीक के माध्यम से आपस में जोड़ा गया है। मंदिर की बाहरी दीवार पर बेहद खूबसूरत नक्काशी की गई है और प्रतिमाओं का निर्माण किया गया है। होयसलेश्वर मंदिर में स्थापित मूर्तियों को बनाने में सॉफ्ट स्टोन का उपयोग किया गया है जो समय के साथ कठोर हो जाता है।
  • होयसलेश्वर मंदिर की वास्तुकला ‘बेसर शैली’ से प्रेरित मानी जाती है। यह मंदिर निर्माण की द्रविड़ शैली और नागर शैली, दोनों से ही भिन्न है और इस शैली का उपयोग अक्सर होयसल राजा ही किया करते थे। मंदिर के अंदर पत्थर के स्तंभ स्थित हैं और इन स्तंभों पर गोलाकार डिजाइन बनाई गई है। इसके अलावा मंदिर में भगवान शिव की एक मूर्ति विराजमान है। शिव जी की इस मूर्ति के मुकुट पर मानव खोपड़ियाँ बनी हैं, जो मात्र 1 इंच चौड़ी हैं। इन छोटी-छोटी खोपड़ियों को इस तरह से खोखला किया गया है कि उससे गुजरने वाली रोशनी आँखों के सुराख से होती हुई मुँह में जाकर कानों से बाहर लौट आती हैं।
  • भगवान शिव को समर्पित इस मंदिर की नक्काशियों और उत्कृष्ठ कलाकृतियों को देखकर ही इस मंदिर के संबंध में अक्सर यह कहा जाता है कि मंदिर के निर्माण में मशीनों का उपयोग किया गया था। क्योंकि जिस तरीके से मंदिर की दीवारों पर मूर्तियों को उकेरा गया है और स्तंभों की गोलाई को जिस सूक्ष्मता से बनाया गया है, वह मनुष्य के हाथों से बनाया जाना थोड़ा मुश्किल मालूम होता है। हालाँकि मंदिर के निर्माण में किसी भी प्रकार की मशीन के उपयोग की कोई पुख्ता जानकारी उपलब्ध नहीं है, लेकिन स्थानीय मान्यताएँ ऐसा ही कुछ कहती हैं।
  • होयसलेश्वर मंदिर परिसर में दो जुड़वा मंदिर हैं जिनके गर्भगृह में शिवलिंग स्थापित हैं और दोनों ही मंदिरों के गर्भगृह पूर्वाभिमुख हैं। दोनों ही गर्भगृह के बाहर नंदी हॉल है जहाँ अपने आराध्य की ओर मुख किए हुए नंदी विराजमान हैं। मुख्य मंदिर होयसलेश्वर मंदिर के नाम से जाना जाता है और दूसरा जुड़वा मंदिर शांतलेश्वर मंदिर। मुख्य मंदिर से जुड़ा हुआ एक सूर्य तीर्थ भी है। हालाँकि इतिहासकारों का मानना है कि इस पूरे परिसर में कई अन्य छोटे मंदिर भी थे जो अब यहाँ मौजूद नहीं हैं\
  • प्रस्तुति -रूचि बागड़देव 
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