Uttarakhand Assembly Elections: Change of CM pays BJP: उत्तराखंड में CM बदलने का दांव भाजपा की जीत का एक कारण बना

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अजय कुमार चतुर्वेदी की विशेष रिपोर्ट

उत्तराखंड की राजनीति में एक साल के अंदर जबरदस्त बदलाव देखने को मिला। पिछले साल मार्च अप्रैल तक हर तरफ यही चर्चा थी कि 2022 के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस सत्ता में वापसी करेगी।

हरक सिंह रावत और सुनील आर्य और उनके मंत्री पिता ने कुछ महीनों पहले ही भाजपा छोड़ कांग्रेस का दामन थाम लिया।

कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और मुख्यमंत्री का चेहरा हरीश रावत ने कहा था कि भाजपा को उसी के तरीके अपना कर चुनावों में पटकनी दी जाएगी। लेकिन चुनाव घोषणा के ठीक पहले हाईकमान ने हरीश रावत को ही किनारे लगाया शुरू कर दिया।

मुख्यमंत्री बदलना भाजपा की जीत का एक कारण बना

तीन साल तक उत्तराखंड के मुख्यमंत्री रहे त्रिवेंद्र सिंह रावत की कार्यप्रणाली से भाजपा की उत्तराखण्ड इकाई में जबर्दस्त विरोध था और अगर वे अपने पद पर बने रहते तो भाजपा हार सकती थी।

उन्हें हटाकर तीरथ सिंह रावत को मुख्यमंत्री बनाया गया लेकिन कोविद के कारण खड़ी हुई कानूनी बाध्यता के कारण उन्हें पांच महीने में ही त्यागपत्र देना पड़ा।

भाजपा ने जुलाई में पुष्कर सिंह धामी को करीब सात महीने पहले राज्य का मूख्यमंत्री बनाया। जानकारों का कहना है धामी ने कम समय में ही साफ सुथरा शासन दे कर जनता का विश्वास जीतने में सफल साबित हुए।

यह भी कहा जा रहा है कि हरीश रावत की उपेक्षा और कांग्रेस की अंदरुनी खींच तान का खामियाजा पार्टी की हार मे मददगार साबित हुआ।

उत्तराखंड की तराई के किसानों ने साल भर तक दिल्ली बॉर्डर पर धरने में शामिल हुए लेकिन उनका गुस्सा जनता को सालभर हुई परशानियों के आगे काफूर हो गया और उन्हें सबक सिखा दिया।

किसान आंदोलन मे उनका खुल कर साथ देने वाली कांग्रेस और आप भी जनता को उस दौरान हुई परेशानियों को भापने मे असफल साबित हुईं।

विश्लेषकों की अगर माने तो उत्तराखंड में कांग्रेस के कुछ नेता पार्टी छोड सकते हैं और हरीश रावत राजनीत से सन्यास लेने की घोषणा कर सकते हैं।

मध्यप्रदेश की दृष्टि से देखा जाए तो भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय उत्तराखंड में पार्टी की ओर से काम देख रहे थे और माना जा रहा है कि जीत में उनकी कहीं ना कहीं भूमिका रही है।