Vallabh Bhawan Corridors To Central Vista: दिग्विजय सिंह की अपनी अलग की राजनीतिक शैली!

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Vallabh Bhawan Corridors To Central Vista: दिग्विजय सिंह की अपनी अलग की राजनीतिक शैली!

ब्यूरोक्रेसी को साधने और अपने पक्ष में करने की दिग्विजय सिंह की अपनी अलग ही स्टाइल है। वे जब मुख्यमंत्री थे, तब जिले के कलेक्टरों से सीधे फोन लगाकर बात किया करते थे। जबकि, इससे पहले वाले मुख्यमंत्रियों ने इसके लिए प्रोटोकॉल बना रखा था।

 

 

अब उन्होंने प्रदेश की ब्यूरोक्रेसी को अपने पाले में लाने के लिए एक बात कह कर सनसनी फैला दी है। उन्होंने कहा कि बीजेपी उन अफसरों की ACR बिगाड़ती रही है, जो मंत्रियों और पार्टी के बड़े नेताओं की बात नहीं सुनते! बात नहीं सुनने से उनका आशय था कि नियम से अलग हटकर किसी काम के दबाव डालना। लेकिन, कुछ ऐसे प्रशासनिक अफसर हैं, जो ऐसे काम की रिस्क नहीं लेते। यही कारण है कि उनकी ACR सही नहीं लिखी जा रही।

 

दिग्विजय सिंह ने यह कहकर प्रदेश के उन ब्यूरोक्रेट्स को अपने पक्ष में करने का प्रयास किया है, कि हमारी सरकार आई तो हम उनकी बिगड़ी हुई ACR को सुधारेंगे। इस बात में एक छुपी चेतावनी यह भी है कि जो अफसर बीजेपी के पाले में खड़े हैं, उनके लिए भी कांग्रेस गंभीरता से कुछ सोचेगी!

जातीय समीकरण साधने में कांग्रेस ने कसर नहीं छोड़ी!

कांग्रेस की 144 की लिस्ट में 4 जैन उम्मीदवार हैं। ये पहली बार हुआ कि कांग्रेस ने जातीय समीकरण का इतना ध्यान रखा। जबकि, अभी तक भाजपा जैन समाज को साधने में कोई कसर नहीं छोड़ती थी। इस बार वही काम कांग्रेस ने किया है।

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कांग्रेस ने उज्जैन संभाग से ही तीन जैन नेताओं को टिकट दिया। उज्जैन जिले के महिदपुर से दिनेश जैन, मंदसौर से विपिन जैन और मनासा से पुराने नेता नरेंद्र नाहटा को टिकट दिया। जबकि, बासौदा सीट से निशंक जैन को उम्मीदवार बनाया गया। इसलिए कि मालवा के उज्जैन, मंदसौर, नीमच और रतलाम में जैन समाज का दबदबा रहा है।

जिस तरह से कांग्रेस ने 144 की लिस्ट बनाई है उससे लगता है कि इस बार कांग्रेस कोई रिस्क लेने या सिफारिश से एक भी टिकट देने के मूड में नहीं है। जातिगत, सामाजिक और आर्थिक नजरिए का भी खास ध्यान रखा गया है। अभी 86 सीटों के नाम घोषित होना बाकी है। आगे आने वाली लिस्टों में हो सकता है कोई और जैन उम्मीदवार दिखाई दें।

टिकट मांग रहे थे पिता, पार्टी ने बेटी को दे दिया!

इस बार इंदौर जिले की सांवेर विधानसभा सीट का चुनाव बेहद दिलचस्प होने वाला है। क्योंकि, यहां से कांग्रेस उम्मीदवार बनने के लिए प्रेमचंद गुड्डू ने टिकट मांगा था। वे पहले भी यहां से चुनाव लड़ चुके हैं। लेकिन, जीते नहीं थे। वे फिर मुकाबला करना चाहते थे, पर बात नहीं बनी।

लेकिन, पार्टी ने उनकी जगह उनकी बेटी रीना बौरासी सेतिया को टिकट देकर उनकी उम्मीदों पर पानी फेर दिया। पिछले कुछ समय से बाप-बेटी में टिकट को लेकर भारी खींचतान मची थी। घर की यह लड़ाई घर से बाहर भी आ गई थी। लेकिन, पार्टी ने जीतने की उम्मीद में रीना को उम्मीदवार बनाया।

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प्रेमचंद गुड्डू को कुछ दिन पहले जब लगने लगा कि सांवेर में उनका पलड़ा कमजोर है, तो उन्होंने आलोट सीट से टिकट मांगा। आलोट से इसलिए कि वे पहले यहां से जीते भी थे। लेकिन, वहां से कांग्रेस ने वर्तमान विधायक मनोज चावला को टिकट दे दिया और जारी हुई लिस्ट में यह नाम भी है। पिछला चुनाव जीते किसी विधायक का टिकट काटकर रिस्क लेना पार्टी ने ठीक भी नहीं समझा। प्रेमचंद गुड्डू पार्टी छोड़कर बीजेपी का भी दामन थाम चुके हैं और भाजपा में दाल नहीं गलने के बाद वापस कांग्रेस में आए हैं, लेकिन यहां पर भी उनकी दाल नहीं गल रही है।

अभी किसी की लिस्ट में IAS-IPS अधिकारी का नाम नहीं!

मध्य प्रदेश के विधानसभा चुनाव से पहले कई पूर्व प्रशासनिक अधिकारियों के नाम टिकट की चर्चा में रहे। कुछ ने तो मान लिया था कि उनको टिकट मिलना तय है। पर, भाजपा के घोषित 136 नाम में कोई पूर्व IAS या IPS नहीं है। कांग्रेस के 144 नामों में भी किसी अफसर का नाम नहीं है।

दरअसल, पुराने अफसरों को टिकट देना राजनीतिक रूप से रिस्की होता है। क्योंकि, वे समाजसेवी तो होते नहीं। ऐसी स्थिति में उनके कार्यकाल से सभी खुश हों, ये भी जरुरी नहीं। शायद यही कारण है कि दोनों ही पार्टियों ने अभी तक तो अफसरों से दूरी ही बनाई है।

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भाजपा में तो कई दावेदार थे। लेकिन, लगता है सभी को निराश होना पड़ेगा। हां अभी भी राजगढ़ से पूर्व आईएएस अधिकारी शिवनारायण सिंह चौहान का नाम चल रहा है। लेकिन, इधर कांग्रेस में हाल ही में ज्वाइन हुए राजीव शर्मा को भिंड से टिकट मिलने की चर्चा जरूर गर्म है। माना जा रहा है कि शायद वे इसमें सफल भी हो जाएं। IAS सेवा से वीआरएस लेने के बाद पहली बार राजीव शर्मा के भिंड पहुंचने पर उनका जिस तरह स्वागत सत्कार हुआ उससे लगता है कि उन्हें टिकट मिलने की संभावना पूरी पूरी है। कांग्रेस से ही शहडोल जिले में कोतमा से विनोद सिंह बघेल का नाम भी चर्चा में है। वे पूर्व राज्यपाल और कांग्रेस के किसी समय रहे कद्दावर नेता पूर्व मंत्री कृष्णपाल सिंह के बेटे हैं और क्षेत्र में उनकी अच्छी पकड़ बताई जा रही है। ऐसे में यह देखना दिलचस्प होगा कि आखिर किस IAS अधिकारी को किस पार्टी से टिकट मिलता है।

दो हंसों का जोड़ा यानी IAS-IPS बिछड़ गया!

शहडोल संभाग के कमिश्नर पद से तबादले के बाद वीआरएस लेने के बाद शहडोल संभाग में यह चर्चा गर्म है कि ‘दो हंसों का जोड़ा बिछड़ गया रे!’ दरअसल, वहां जिस तरह की कार्यशैली को तत्कालीन कमिश्नर राजीव शर्मा और अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक दिनेश सागर ने विकसित की थी, उससे वहां प्रशासनिक कार्यों में आसानी होती थी।

प्रधानमंत्री से लेकर मुख्यमंत्री और आए दिन होने वाले वीआईपी कार्यक्रमों मैं दोनों के बीच इतना गहरा सामंजस्य था कि कभी भी किसी प्रकार की कोई समस्या नहीं हुई और न कोई गलतफहमी ही हुई जिससे कार्य में कोई पर अवरोध आया हो।

लेकिन, अब राजीव शर्मा की शहडोल से विदाई के बाद एडीजी दिनेश सागर अपने आपको अकेला महसूस कर रहे हैं। क्योंकि, जिस तरह का तालमेल उनका राजीव शर्मा के साथ था, वो किसी दूसरे के साथ तो होना संभव नहीं है। सुना है कि इस अकेलेपन को दूर करने के लिए उन्होंने 58 साल की उम्र में अपनी रुकी हुई पीएचडी फिर शुरू कर दी है।

दिल्ली के सत्ता के गलियारों में केवल चुनावी चर्चा

पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव की घोषणा के साथ ही राजनीतिक गतिविधियां भी उन्ही राज्यों में तेज हो गई है। जिन केंद्रीय मंत्रियों को विधानसभा चुनावों में उतारा गया है उनके मंत्रालयों मे केवल रूटीन के काम ही हो रहे हैं। सत्ता के गलियारों में भी इन्हीं चुनावों की चर्चा चल रही है। कृषि मंत्रालय में केबिनेट मंत्री नरेंद्र सिंह मध्य प्रदेश से ओर कृषि राज्य मंत्री राजस्थान से चुनाव लड़ रहे हैं। एक अन्य राज्य मंत्री शोभा करंदलाजे ही मंत्रालय के कामकाज को देख रही हैं।

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Suresh Tiwari
सुरेश तिवारी

MEDIAWALA न्यूज़ पोर्टल के प्रधान संपादक सुरेश तिवारी मीडिया के क्षेत्र में जाना पहचाना नाम है। वे मध्यप्रदेश् शासन के पूर्व जनसंपर्क संचालक और मध्यप्रदेश माध्यम के पूर्व एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर रहने के साथ ही एक कुशल प्रशासनिक अधिकारी और प्रखर मीडिया पर्सन हैं। जनसंपर्क विभाग के कार्यकाल के दौरान श्री तिवारी ने जहां समकालीन पत्रकारों से प्रगाढ़ आत्मीय रिश्ते बनाकर सकारात्मक पत्रकारिता के क्षेत्र में महती भूमिका निभाई, वहीं नए पत्रकारों को तैयार कर उन्हें तराशने का काम भी किया। mediawala.in वैसे तो प्रदेश, देश और अंतरराष्ट्रीय स्तर की खबरों को तेज गति से प्रस्तुत करती है लेकिन मुख्य फोकस पॉलिटिक्स और ब्यूरोक्रेसी की खबरों पर होता है। मीडियावाला पोर्टल पिछले सालों में सोशल मीडिया के क्षेत्र में न सिर्फ मध्यप्रदेश वरन देश में अपनी विशेष पहचान बनाने में कामयाब रहा है।