Vallabh Bhawan Corridors To Central Vista:शिवराज और वीडी की नजदीकियां बढ़ी!

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Vallabh Bhawan Corridors To Central Vista:शिवराज और वीडी की नजदीकियां बढ़ी!

विधानसभा चुनाव के नजदीक आने के साथ ही भाजपा में अब यह लगभग तय माना जा रहा है, कि चुनाव तो शिवराज सिंह चौहान के चेहरे पर ही लड़े जाएंगे। अब वो सारे कयास लगभग गलत साबित हो रहे है कि चुनाव से पहले कोई बड़ा बदलाव होगा। शायद यही कारण है प्रदेश भाजपा अध्यक्ष वीडी शर्मा जो कुछ समय पहले तक कुछ अलग अंदाज में दिखाई दे रहे थे, अब CM शिवराज सिंह चौहान के साथ कदमताल करते दिखाई देने लगे हैं।

Vallabh Bhawan Corridors To Central Vista:शिवराज और वीडी की नजदीकियां बढ़ी!

दोनों नेता नजदीक आते जा रहे हैं। दोनों कई कार्यक्रमों में साथ साथ शिरकत कर रहे हैं। होली पर वीडी सीएम हाउस पर देखे गए और बाद में शिवराज वीडी के बंगले पर गए। शिवराज सिंह भी अपने सकारात्मक व्यवहार के मुताबिक वीडी शर्मा से मेलजोल बढ़ाने लगे। दोनों त्योहारों पर एक दूसरे से मिलने जाने लगे और हंसते मुस्कुराते दोनों के फोटो भी दिखाई दे रहे हैं। यह सब इसलिए हुआ कि कई लोगों के अनुमान के विपरीत न तो शिवराज सिंह चुनाव से पहले बदले जा रहे हैं और संभवत वीडी शर्मा भी बने रहेंगे।

जब दोनों नेता चुनाव रहेंगे तो ऐसी स्थिति में जरूरी है कि दोनों के बीच सामंजस्य का बना रहना जरूरी है। दोनों ने समझ लिया है कि यह संदेश भी पार्टी नेताओं को जाना जरूरी है ताकि किसी को भी टीका-टिप्पणी करने का मौका नहीं मिले। दोनों नेता आगामी विधानसभा चुनाव की तैयारियां भी साथ में करते दिखाई दे रहे हैं। सीएम हाउस में लगातार बैठकों का सिलसिला जारी है। दोनों के नजदीक आने से अब वे नेता किनारे हो गए जो दोनों में से किसी का भी विकल्प बनने के लिए दिल्ली तक जुगाड़ करते दिखाई देते थे।

दिग्गी राजा की सक्रियता के नए मायने!

जैसे-जैसे विधानसभा चुनाव नजदीक आ रहे हैं कांग्रेस का माहौल बदलता दिखाई दे रहा है। अभी तक कमलनाथ को भावी मुख्यमंत्री की तरह पेश किया जा रहा था। लेकिन, अब वो आवाज़ धीमी हो गई है। अब कमलनाथ से नाराज नेताओं की संख्या भी बढ़ती दिखाई दे रही है। कुछ तो खुलकर बोल रहे हैं, कुछ दबे सुर में और कुछ अभी बदलाव का इंतजार कर रहे हैं। लेकिन, यह तय है कि अब कांग्रेस के नेता और कार्यकर्ताओं ने यह समझ लिया है कि कमलनाथ में अब वह स्पार्क नहीं बचा कि वे अगले विधानसभा चुनाव में भाजपा का मुकाबला कर सकें।

Vallabh Bhawan Corridors To Central Vista:शिवराज और वीडी की नजदीकियां बढ़ी!

कमलनाथ के प्रति कांग्रेस के नेताओं के मन उचाट का सबसे बड़ा कारण यह है कि उनकी सेना कमजोर लगने लगी। इसके अलावा कांग्रेस में यह भी कहा जाने लगा है कमलनाथ कान के कच्चे हैं। वे किसी की भी बातों पर भरोसा कर लेते हैं। वे कार्यकर्ताओं को भी उतनी तवज्जो नहीं देते, जितनी दी जाना चाहिए और उनकी प्रतिद्वंदी पार्टी भाजपा में दी जा रही है। अभी भी लोगों को कमलनाथ से मिलने का समय नहीं मिलता।

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ऐसी स्थिति में दिग्विजय सिंह का ग्राफ बढ़ता दिखाई दे रहा है। वे लगातार कार्यकर्ताओं से संपर्क में हैं और उनके आसपास भीड़ बढ़ती जा रही है। उनसे मिलने वालों की संख्या भी अब पहले से कहीं ज्यादा होने लगी। वे लगातार प्रदेश के दौरे भी कर रहे हैं। हाल ही में उन्होंने 3 दिन का विंध्य क्षेत्र का दौरा किया और उसका असर भी दिखाई दिया। कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि कमलनाथ के ग्राफ का नीचे आना और दिग्विजय सिंह का ग्राफ उठना यह सब अपने आप नहीं हो रहा। यह कहीं न कहीं ऊपर से आने वाला संकेत है। क्योंकि, 31 मई को कमलनाथ का प्रदेश अध्यक्ष का कार्यकाल पूरा हो रहा है, उसके बाद जो भी होगा वह मध्यप्रदेश में कांग्रेस का भविष्य तय करेगा। भविष्य जो भी हो दिग्विजय सिंह का पलड़ा फिलहाल भारी तो दिखाई देने लगा।

सिंधिया और तोमर की हदबंदी!

ग्वालियर-चंबल संभाग में भाजपा राजनीति में अब समीकरणों का उलझाव दिखाई देना करीब-करीब बंद हो गया है। ज्योतिरादित्य सिंधिया और नरेंद्र सिंह तोमर के बीच में जो खींचतान की खबरें लम्बे समय से सामने आती थी, वे पिछले कुछ दिनों से एकदम थम सी गई। बताते हैं कि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने इन दोनों दिग्गज नेताओं के बीच में एक समझौता जैसा करवा दिया कि सिंधिया ग्वालियर में सक्रिय रहेंगे और तोमर मुरैना में।

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दोनों बड़े नेताओं के बीच के संभावित मतभेदों को दूर करने के लिए यह सबसे अच्छा रास्ता था जो मुख्यमंत्री ने निकाला। यही कारण है कि दोनों अब एक-दूसरे के काम में दखलंदाजी करते हुए भी दिखाई नहीं देते। सिंधिया ग्वालियर के विकास कार्यों की समीक्षा करते दिखाई देते हैं, तो उसमें तोमर का कोई दखल नहीं होता। इसका कारण यह था कि सिंधिया ग्वालियर में सक्रिय होना चाहते थे, ताकि अगले लोकसभा चुनाव के लिए तो ग्वालियर को अपने लिए सुरक्षित कर सकें और उनके काम में कोई दखलंदाजी न हो और वही हुआ भी।

तोमर और सिंधिया के बीच की खींचतान से भाजपा के वे नेता खुश थे जो दोनों खेमे से अलग थे। उन्होंने इनके बीच के तनाव को खूब हवा भी दी। लेकिन, जब से मुख्यमंत्री ने बीच का रास्ता निकालकर दोनों की हदबंदी कर दी, सारा विवाद ही शांत हो गया। दोनों के इलाके अलग होने से अब ऐसी ख़बरें भी थम गई।

इस बार पुलिस-प्रशासन ने जमकर खेली होली!

इस बार की होली का एक अलग ही रंग दिखाई दिया। कोरोना काल के बाद यह उत्साह तो होना ही था। लेकिन, प्रदेश के करीब हर जिले में एक अलग नजारा और दिखाई दिया। वो नजारा यह था कि प्रदेश के हर जिले में पुलिस और जिला प्रशासन ने जमकर होली खेली। होली के दिन तो पुलिस और प्रशासन ख़ास ही मुस्तैद रहता है कि कहीं, कोई अप्रिय घटना न घटे। लेकिन, होली के अगले दिन जब होली का माहौल सड़कों को ठंडा हो जाता है, तो पुलिस और प्रशासन की होली होती है।

इस बार करीब हर जिले में होली हुई और जमकर हुई। इस होली में प्रशासन और पुलिस साथ दिखाई दिए। उच्च स्तर के अफसरों से लगाकर छोटे स्तर तक के कर्मचारियों ने साथ में मिलकर होली खेली। देखा जाए तो यह एक अच्छी शुरुआत है। क्योंकि अभी तक पुलिस की अलग होली होती थी और जिला प्रशासन के अफसर अलग होली खेलते थे। लेकिन, इस बार दोनों ने मिलकर होली खेली।

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होली के रंग में इस बार इंदौर जैसे बड़े शहर की होली पूरे प्रदेश में छाई। कमिश्नर डॉ पवन शर्मा, कलेक्टर इलैया राजा,इंदौर के पुलिस कमिश्नर हरिनारायण चारी मिश्रा समेत करीब सभी बड़े अफसरों ने रंगों की औपचारिक होली नहीं खेली, बल्कि होली का पूरा मजा लिया। जिन लोगों ने इंदौर के कलेक्टर को होली पर रंगे हुए देखा होगा, वे जानते हैं कि इस बार होली सिर्फ रंग और गुलाल से नहीं खेली गई।


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कलेक्टर की भविष्य को लेकर पहल

अकसर देखा गया है कि सामान्यतः जिला कलेक्टर की सक्रियता प्रशासनिक काम तक सीमित होती है। उससे आगे यदि वे निकलते हैं, तो समाज सेवा के क्षेत्र में कुछ पहल करते हैं। लेकिन हरदा कलेक्टर ऋषि गर्ग ने कुछ अलग ही काम किया। उन्होंने सामाजिक बदलाव को किताबों से जोड़ा और हर स्कूल और पंचायत में एक कमरा पुस्तकालय के लिए बनाने की पहल शुरू की। वास्तव में यह ऐसी पहल है जिसमें लंबा भविष्य देखा जा सकता है।

हरदा कलेक्टर ऋषि गर्ग
जिला प्रशासन की इस पहल पर जिले में शिक्षा को बढ़ावा देने, किताबों के प्रति बच्चों का रुझान बढ़ाने, उनमें किताबें पढ़ने की आदत डालने, जिज्ञासा और वैज्ञानिक सोच विकसित करने के लिए जिले की ग्राम पंचायतों में भी सामूहिक सहयोग से किताबघर स्थापित किए जाने की पहल की जा रही है। हरदा जिला पंचायत भी कलेक्टर की इस मुहिम में कोशिश कर रही है।

जिला पंचायत ने जनप्रतिनिधियों, नागरिकों, प्रबुद्धजनों, सामाजिक-धार्मिक-शैक्षणिक और व्यापारिक संगठनों से अनुरोध किया है कि वे इन किताब घरों में बच्चों के पढ़ने के लिए पाठ्य सामग्री पुस्तकें आदि दान करें और बच्चों के भविष्य निर्माण में सहयोग करें। इस बारे में कलेक्टर ऋषि गर्ग का कहना है मुझे कई समाजसेवी संगठनों से इसका समर्थन मिला है। लोग स्टडी मटेरियल और किताबें दान करना चाहते हैं उन्होंने इसके लिए उनका स्वागत किया है।

दस्तखत करने के बाद ही फाईल राजभवन भेजें

सत्ता के गलियारों में इन दिनों अरविंद केजरीवाल के नेतृत्व वाली दिल्ली की आप सरकार की चर्चा जोरों पर है। पूर्व उप मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया की कथित भ्रष्टाचार के आरोप में हुई गिरफ्तारी के बाद तो तरह तरह की बातें तैर रही है। जानकारों का कहना है कि मुख्यमंत्री केजरीवाल सरकारी फाइलों पर दस्तखत किए बिना राजभवन भेज दिया करते थे।

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ऐसा करने के पीछे उनकी मंशा शायद यह रही होगी कि अगर कुछ गलत हुआ भी तो दस्तखत करने वाला ही जिम्मेदार होगा। इसी कारण पहले सतेन्द्र जैन और अब सिसोदिया को जेल जा पड़ा क्योंकि फाईल पर इन्हीं के पास से गयी थी। इसलिए सरकार के मुखिया होने के बावजूद केजरीवाल पर अभी तक आंच नहीं आई है। विशेषज्ञ वर्तमान उप राज्यपाल के उस निर्देश को सही और कानून सम्मत मान रहे हैं जिसमे उन्होंने मुख्यमंत्री से अपने दस्तखत करने के बाद ही फाईल को राजभवन भेजने को कहा है।

दिल्ली पुलिस के खाली पड़े पदों पर कई IPS अधिकारियों की नजर

दिल्ली पुलिस में कुछ बड़े पद खाली होने और उन्हें पाने के लिए कई IPS अधिकारी अधिकारी जोड तोड़ में लग गए हैं।

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दिल्ली पुलिस में विशेष आयुक्त, कानून – व्यवस्था के दो पद और इन पर तैनात अधिकारियों की समयावधि पूरी हो रही है। इसी महीने नये अधिकारी तैनात हो सकते हैं।

ED के स्टाफ में पिछले सालों में चार गुना वृद्धि

मोदी सरकार में इंन्फोर्समेंट डाईरेक्टोरेट यानी ईडी सबसे ताकतवर जांच एजेंसी है। इसके स्टाफ में भी पिछले आठ सालों में चार गुना वृद्धि हुई है।

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यूपीए काल में इसे चलाने के लिए लगभग 600 का स्टाफ़ था और इसे दंत विहीन संस्था कहा जाता था लेकिन अब चार गुना अधिक स्टाफ के साथ सबसे अधिक प्रभावशाली जांच एजेंसी है। यही कारण है कि ईडी लगभग सभी विरोधी दलों के निशाने पर हैं।