Waterman IAS Officer : यह है वाटरमैन IAS अधिकारी, कई मृत नदियों को जीवित कर दिया! 

सिंगरौली की कंचन नदी को फिर जीवित करने का कमाल किया, भारत सरकार से भी सम्मानित 

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Waterman IAS Officer : यह है वाटरमैन IAS अधिकारी, कई मृत नदियों को जीवित कर दिया! 

Singrauli : सिंगरौली जिला पंचायत के सीईओ गजेंद्र सिंह इन दिनों चर्चा में हैं। उन्हें ‘एमपी का वाटरमैन’ कहा जाता है। अपनी पोस्टिंग के दौरान उन्होंने कई नदियों को जीवित किया है। जिले में कंचन नदी एक बार फिर से कल-कल बहने लगी। इस समय देश और प्रदेश में नदी जोड़ो परियोजनाएं चल रही हैं। ऐसे में सिंगरौली जिला पंचायत और जिला प्रशासन द्वारा ‘नदियों के पुनर्जीवन’ की चर्चा हैं।

भारत के जलपुरुष का खिताब राजेंद्र सिंह को मिला है। उनका जल संरक्षणवादी मॉडल दुनियाभर में प्रसिद्ध है। कुछ इसी तरह मध्यप्रदेश के एक आईएएस अफसर ने 8 नदियों को पुनर्जीवित करने का काम शुरू कर दिया। प्रदेश में चल रहे जल गंगा संवर्धन अभियान के दौरान यह अफसर चर्चा में आ गए।

छिंदवाड़ा में उनके द्वारा किया गया जल प्रबंधन के मॉडल के चलते उन्हें भारत सरकार ‘जल प्रहरी सम्मान’ से सम्मानित कर चुकी है। अब सिंगरौली में भी उन्होंने एक नदी को पुनर्जीवित कर दिखाया है। सिंगरौली जिला उत्तर पूर्व में स्थित मध्य प्रदेश का सीमांत जिला है, इसका ढाल दक्षिण से उत्तर की ओर गंगा कछार की और है। छत्तीसगढ़ की मतिरंगा पहाड़ियों से लेकर मैकल की श्रृंखला में बहने वाली अनेक नदियों के द्वारा सींचा जाता रहा है।

कंचन नदी को जीवित कर दिया 

यहां बहने वाली कंचन नदी सिर्फ बारिश में ही बहती थी। दिसंबर से पहले ही नदी सूख जाती थी। लेकिन, यहां कार्यभार संभालने के बाद सीईओ गजेंद्र सिंह ने ‘नदियों के पुनर्जीवन’ का अभियान प्रारंभ किया। जिला पंचायत सिंगरौली द्वारा जिले में वर्ष 2022-23 से 8 छोटी, बड़ी नदियों के पुनर्जीवन परियोजनाओं पर कार्य किया जा रहा है। ‘रिज टू वैली’ के सिद्धांत पर किये जा रहे नदी संरक्षण अभियान पर आईएएस गजेंद्र सिंह ने बताया कि मनरेगा योजना (महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम) अपने बनावट में ही मुख्यतः मिट्टी और पानी के संवहनीय संरक्षण का मॉडल प्रस्तुत करती है।

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कंचन नदी जिसका उद्गम जिले के ही फुलवारी टोला की पहाड़ियों से होता है। 1975 में बने कंचन बांध के बाद यह नदी लगभग विलुप्त हो गई थी। लगभग 29 किलोमीटर के अपने अपवाह में पड़ने वाले गांवों फुलवारी टोला, गड़ेरिया, तेलदह, पौडी नौगई, चोकरा, गड़हरा, देवरी आदि में लगभग 476 एकड़ में नदी पर अतिक्रमण हो चुका था। इस स्थिति में कैचमेंट क्षेत्र में भूगर्भीय जलस्तर में व्यापक गिरावट दर्ज की गई।

कंचन नदी को ऐसे मिला पुनर्जीवन

गजेंद्र सिंह ने बताया कि नदी पुनर्जीवन के प्रथम चरण में इन चिन्हित ग्रामों में नदी में गाद निकासी, तटों की प्रोफाइलिंग के कार्य वर्षा काल के पूर्व कराए गए। चूंकि नदी के दोनों तरफ ज्यादा हिस्सों में निजी भूमियां थीं। अतः उनसे समन्वय कर, मेड़ बंधान और नदी की परिसीमा बनाने का कार्य किया गया। वर्षा काल में चिह्नित शासकीय भूमियों पर व्यापक पौधारोपण का कार्य किया गया। कटे घाटों को प्लग कर सुदृढ़ करने कार्य किया गया। जिला खनिज प्रतिष्ठान से नदी की संरचना में ग्राम गडहरा में गैवियन सह स्टॉप डैम 50 लाख की लागत से स्वीकृत किया गया।

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चुनौतीपूर्ण कार्य को ऐसे किया पूरा

इस नदी पर ऐसा कोई भी कार्य इसलिए भी कठिन और चुनौती पूर्ण था। क्योंकि, नदी का आधार रेतीली मिट्टी का है। साथ ही नदी लगभग 80 से 120 मीटर की चौड़ाई में बहती है। खर्च को सीमित करने की दृष्टि से 4 मीटर गहरे एवं 6 मीटर चौड़े गेबियन में कंक्रीट की कॉपिंग की जाकर उसे मजबूती प्रदान की गई। पृथक से किसी प्रकार के स्टील का उपयोग नहीं किया गया। यह एक चुनौतीपूर्ण कार्य था। इस कार्य के पूर्णता के पश्चात 120 मीटर की चौड़ाई में लगभग 550 मी लंबाई में जल पूरी तरह से भर चुका हुआ है।

अलग-अलग संरचनाओं से जल संरक्षण

उन्होंने बताया कि इसी प्रकार के तीन अन्य स्ट्रक्चर भी नदी में स्वीकृत किए गए हैं। जल के स्थाई भरण से भूगर्भीय जलस्तर में व्यापक सुधार दृष्टिगत हुआ है। सूखे हुए हैंडपंप और कुओं में जल की धारा प्रवाहित हो पाई है। विशेषकर कृषकों को पानी की उपलब्धता होने से उनके द्वारा भी नदी पुनर्जीवन के कार्य में रुचि प्रकट की जा रही है। व्यापक जन समर्थन की प्राप्त हो रहा है। उनके मध्य इस प्रकार के संरक्षण कार्य तथा मानव दखल को कम से कम करने के लिए प्रेरित किया जा रहा है, ताकि व्यवस्थाएं निरंतर रह सकें।